मेलघाट (अमरावती)। आंकड़ें भयावह कहानी कह रहे हैं. 1993 में पहली बार अमरावती जिले के पहाड़ी क्षेत्र मेलघाट और धारणी से कुपोषण से बच्चों और शिशुओं की असमय होती मृत्यु की खबर अ़खबारों की सुर्खियां बनीं. उस व़क्त 500 से अधिक बच्चों की मौत की खबर आयी थी. तब से अब तक राज्य सरकार कई बार बदल गई, लेकिन मेलघाट और धारणी के नौनिहालों की तकदीर नहीं बदली. पिछले २०वर्ष में कुपोषण ने इस क्षेत्र के बीस हजार से ज्यादा बच्चों को बचपन देखने से पहले ही लील लिया है. हर साल जुलाई से सितम्बर के महीने इस क्षेत्र के बच्चों के लिए कहर बनकर टूटते हैं. हर साल हल्ला होता है, मीडिया में ख़बरें आती हैं, मंत्रीविधायक संतरी चुस्ती दिखाते हैं. जाने किन-किन और कैसे-कैसे संसाधनों की खरीद-फरोख्त की बात की जाती है. कुपोषित बच्चों की चिक्तिसा-उपचार और पोषण आहार की बातें- वादें की जाती हैं लेकिन नतीजा ढांक के तीन – पात वाला ही निकलता है.
विष्णु सावरा अब आदिवासी कल्याण मंत्री है. जब विपक्ष में थे तो कुपोषण से होने वाली एक-एक मौत के लिए सत्तासीन सरकार और उनके कारिंदों को जिम्मेदार ठहराते थे. अब देखना है कि जंगल और आदिवासियों के दशा और हालात की सही समझ रखने वाले हमारे मंत्री महोदय कुपोषण से नौनिहालों को बचाने के लिए कौन-कौन से हितकारी कदम उठाते हैं.
पिछले बीस साल में महाराष्ट्र के अमरावती जिले के मेलघाट और धारणी से कुपोषण मिटाने के नाम पर अरबों रुपए खर्च हो चुके हैं. दोनों ही क्षेत्र दर्जनों स्वयंसेवी संगठनों से अटे पड़े हैं. ये स्वयंसेवी संगठन
पिछले ढाई दशक से इन क्षेत्रों में आदिवासियों के बीच कुपोषण, पोषाहार और स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर जन-जागरण कर रहे हैं लेकिन इन सेवाभावी संगठनों की सेवा का परिणाम होता यहाँ कतई दिखाई नहीं देता. जब हमने मेलघाट और धारणी में सेवारत कुछ सेवाभावी संगठनों के संचालकों से बात करनी चाही तो वे नकार गए. कुछ ने अनौपचारिक बातचीत में स्वीकार किया कि उनके संगठन इन क्षेत्रों में कुपोषण पर जनजागरण करने में नाकामयाब सिद्ध हुए हैं लेकिन इसके लिए वे आदिवासियों और उनकी प्रथाओं को ही दोषी ठहराते हैं.
एक और तथ्य उल्लेखनीय है कि कोरकू जनजाति बहुल इस क्षेत्र में आदिवासियों की तादाद तेजी से घट रही है. कहने की आवश्यकता नहीं कि राज्य की भाजपा-शिवसेना गठबंधन सरकार से कुपोषण से निजात की उम्मीद मेलघाट और धारणी के साथ राज्य के प्रत्येक उस क्षेत्र को है जो पहाड़ या पहाड़ के पास आबाद हैं.