नागपुर: शहर में आवारा श्वानों की जनसंख्या को नियंत्रित रखने के लिए नागपुर महानगर पालिका की ओर से श्वानों की नसबंदी की मुहीम शुरू की जा रही है. हालांकि इससे कुछ वर्ष पहले भी यह मुहीम शुरू की गई थी, लेकिन वह अभियान पूरी तरह से सफल नहीं हो पाया था. पिछले बार कई जगहों पर यह भी देखने में आया था कि श्वानों की नसबंदी करने के तुरंत बाद उन्हें छोड़ दिया गया था. जबकि नियम यह है कि नसबंदी होने के बाद उसे करीब 3 दिनों तक उसकी देखभाल करनी होती है. कुछ दिन पहले द पीपल फॉर एनिमल्स संस्था की ओर से प्राणियों के साथ होनेवाली क्रूरता और मनपा द्वारा स्वानों की नसबंदी को लेकर प्रदर्शन किया गया था. श्वानों की नसबंदी को लेकर मानद पशु कल्याण अधिकारी करिश्मा गलानी ने बताया कि 50 हजार श्वानों की नसबंदी के लिए करीब साढ़े तीन करोड़ रुपए मंजूर किए गए हैं. लेकिन नसबंदी करने के लिए सेंटर ही नहीं बनाए गए हैं. वर्ष 2013 में एबीसी (एनिमल बर्थ कंट्रोल) की ट्रेनिंग के लिए भी 14 लोग ऊटी गए थे, जिसमें मनपा के पशु अधिकारी डॉ. महल्ले भी थे. लेकिन 4 साल बाद नागपुर महानगर पालिका को नसबंदी की याद आई है. निधि मिले हुए भी 6 से 7 महीने हो चुके हैं. बावजूद इसके अब तक नसबंदी शुरू नहीं हो पाई है.
नागपुर महानगर पालिका के स्वास्थ विभाग ने अभी निविदा जारी की थी, जिसमें एक श्वान की नसबंदी के लिए 700 रुपए दिए जाने के साथ ही इसके ऐसी शर्त भी रखी कि संस्थाओं को नसबंदी के साथ जख्मीं श्वानों का इलाज भी कराना होगा. गलानी ने कहा की यह शर्त हटनी चाहिए. उन्होंने कहा कि अभी शहर में एक ही एनिमल शेलेटर है. जिसका महीने का खर्च 60 हजार रुपए है. शेल्टर में ही एबीसी सेंटर खोलने से दूसरे श्वानों की गिनती भी एबीसी में होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. उन्होंने कहा कि 50 हजार श्वानों की नसबंदी के लिए कम से कम 4 सेंटर शुरू करने होंगे.
एक संस्था 3 पशु चिकित्सकों को अपाइंट करेगी, जिससे एक दिन में 3 डॉक्टर 30 श्वानों की नसबंदी करेगी. 4 सेंटर में 120 श्वानों का ऑपरेशन होगा. जिससे लगभग 20 महीने में लगभग 50 हजार श्वानों की नसबंदी हो सकती है. लेकिन इसके लिए मनपा के पशु चिकित्सक डॉ. महल्ले ने बिलकुल भी व्यस्व्था नहीं की है. इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार नहीं है. गिलानी का कहना है कि हर सेंटर पर 4 कमरे होने चाहिए, साथ ही करीब 90 क्यानेस चाहिए होंगे. एक क्यानेस में दो से तीन श्वानो को रखा जाता है. उन्होंने बताया कि एबीसी सेंटर और शेल्टर को जोड़ने का काम किया जा रहा है. शहर में जो स्कूल बंद है, वहां अवैध गतिविधियां होती हैं. इससे अच्छा यह है कि ऐसी स्कूल में एबीसी सेंटर शुरू किया जाए. गिलानी ने कहा कि हमने शहर की करीब 15 स्कूलों का दौरा किया था और मनपा आयुक्त को सुझाव भी दिया था.
तो वहीं इस बारे में मनपा के पशु चिकित्सक गजेंद्र महल्ले ने बताया कि अब तक फाइनल नहीं हुआ है. अभी टेंडर प्रक्रिया शुरू है. अभी दो संस्थाओं को नागपुर गिट्टीखदान स्थित एसपीसीए और सातारा की एक संस्था है जिन्हें श्वानों की नसबंदी का काम दिया जा रहा है. करीब 50 हजार श्वानों के लिए 3. करोड़ 50 लाख रुपए मंजूर किए गए हैं. डेढ़ साल में यह नसबंदी करनी है. इस पूरी मुहीम में ज्यादा से ज्यादा एनजीओ को शामिल करने की भी योजना चल रही है. महल्ले ने कहा कि शहर में एबीसी के लिए करीब चार सेंटर शुरू करने होंगे. संस्थाओं से एग्रीमेंट होने के बाद संस्थाओं के साथ मीटिंग और प्लानिंग करेंगे और उसके बाद नसबंदी की शुरुआत की जाएगी.
दिल्ली के पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ़ एनिमल्स ( पेटा ) के निकुंज शर्मा ने बताया कि नागपुर महानगर पालिका अगर श्वानों की नसबंदी कर रही है तो यह अच्छी बात है. 2001 के श्वान कानून के अनुसार एनिमल बर्थ कंट्रोल ही श्वानो की जनसंख्या पर रोक लगाने का एकमात्र वैज्ञानिक विकल्प है. श्वानों की नसबंदी करने के बाद किसी भी तरह का उन्हें इन्फेक्शन न हो इसका ख्याल रखना होगा. उन्होंने कहा कि जयपुर, तिरुवनंतपुरम और चेन्नई महानगर पालिका ने बहुत ही अच्छे तरीके से श्वानों की जनसंख्या पर नसबंदी के माध्यम से नियंत्रण किया था. महानगर पालिका इन तीनों महानगर पालिकाओं से भी संपर्क कर मार्गदर्शन ले सकती है. उन्होंने बताया कि शेल्टर में भी ऑपरेशन हो सकते हैं. लेकिन उसमें श्वानों की सुरक्षा को लेकर सभी इंतजाम होने चाहिए.