Published On : Sat, Sep 5th, 2020

सच्चे शिक्षक होते हैं त्याग की प्रतिमूर्ति और सद्गुणों की खान: डॉ. प्रितम गेडाम

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(राष्ट्रिय शिक्षक दिवस विशेष- 5 सितंबर 2020)

नागपुर– शिक्षक को राष्ट्र निर्माता कहा जाता है। शिक्षकों की ज़िम्मेदारी है कि वे अबोध बच्चों में ऐसी स्फूर्ती और चेतना संचार करें कि वे संस्कारी सभ्य नागरिक बन कर जीवन जीने की सभी कलाओं में पारंगत हो सकें और एक सुदृढ समाज का निर्माण कर सकें। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन को हर साल शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। डॉ. राधाकृष्णन पहले उपराष्ट्रपति थे और बाद में देश के राष्ट्रपति बने। वह पेशे से शिक्षक थे और उनका मानना था कि एक मजबूत राष्ट्र के निर्माण में शिक्षक की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका है। हमारे देश में शिक्षा के क्षेत्र में कई महान हस्तियां हुई हैं, जिन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों के कल्याण और विकास के लिए समर्पित किया है और देश का नाम दुनिया भर में रोशन किया है। जैसे- सावित्रीबाई ज्योतिबा फुले, परमहंस, स्वामी विवेकानंद, रवींद्रनाथ टैगोर, साने गुरूजी, डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम और अन्य। 1962 से हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। सभी प्रकार के शिक्षण संस्थानों में शिक्षक दिवस कार्यक्रम उत्साह के साथ मनाया जाता है।

सावित्रीबाई ज्योतिबा फुले- सावित्रीबाई फुले एक अखंड भारत की पहली महिला शिक्षक, बालिका विद्यालय की प्रधानाध्यापिका और किसान स्कूल की संस्थापक, समाज सुधारक और कवयित्री थीं। शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी रहते हुए, सावित्रीबाई फुले को बहुत ही उग्र सामाजिक विरोध का सामना करना पड़ा। लोग उनपर कीचड़, पत्थर, गोबर फेंक कर मारते थे, कोसते थे, गाली गलौज करते, फब्तियां कसते, तिरस्कार और घृणा से देखते थे। इतने असहनीय अत्याचारों के बाद भी, लड़कियों के लिए देश का पहला स्कूल शुरू किया, उस समय महिलाओं को पढ़ाने पर प्रतिबंध था। उनके पति महात्मा ज्योतिबा फुले इस महान कार्य में उनके साथ थे।

स्वामी विवेकानंद- स्वामी विवेकानंद बहुत ही प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के धनी थे। विवेकानंद ने हिंदू धर्म, भारतीय दर्शन, धर्मशास्त्र के साथ-साथ पश्चिमी दुनिया के लिए योग की पेशकश करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। दुनिया की धार्मिक संसद शिकागो में अपने गुणवत्तापुर्ण व्याख्यान और प्रवचन प्रस्तुत किए। वह बहादुर, तपस्वी और त्याग की मूर्ति थे। जब पश्चिमी सभ्यता भारतीयों को वहशी समझती थी तब उन्होंने अमेरिका में भारतीय संस्कृति का झंडा लहराया था। विवेकानंद ने अपना पूरा जीवन देश के लिए समर्पित कर दुखी और पिछड़े वर्ग के लिए काम किया। देश में 12 जनवरी को विवेकानंद के जन्मदिन को युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम- देश के ग्यारह वें राष्ट्रपति, जीवनभर प्रेरणास़्त्रोत और मिसाइल मैन नाम से जाने जाते रहें। वें बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। लोगों के इस प्यारे राष्ट्रपति को जाने-माने लेखकों और महान शिक्षकों में से एक के रूप में गिना जाता है। देश में उनकी एक अलग पहचान थी, वह युवाओं के लिए आदर्श थे और हमेशा छात्रों का मार्गदर्शन करते थे।

बाज़ारीकरण के युग में भी हैं, कुछ सच्चे शिक्षा दाता:- प्रसिद्ध सुपर 30 के नाम से कोचिंग क्लास चलानेवाले आनंद कुमार जिन्हें गणितज्ञ शिक्षक के रूप में जाना जाता है वे नि:शुल्क पढ़ाते हैं। साइकिल चलाकर शिक्षा का प्रचार कर विश्व रिकॉर्ड बनाने वाले आदित्य कुमार, आजीवन बेसहारा बच्चों को निःशुल्क पढ़ा रहे हैं। राजेश कुमार शर्मा, जो दिल्ली में मेट्रो पुल के नीचे आसपास के झुग्गी-झोपड़ी के बेसहारा बच्चों को पढ़ाते हैं। अब्दुल मलिक, जो हर दिन मल्लापुरम में गंदे नाले को तैरकर पार करके समय पर पहुँचकर बच्चों को पढ़ाते । अरविंद गुप्ता जो कागज की सुंदर और आसान कलाकृति बनाकर बच्चों को खेल-खेल में पढ़ाते। मुंबई की लोकल ट्रेन में अखबार बेचने वाले प्रो. संदीप देसाई, ताकि महाराष्ट्र और राजस्थान के ग्रामीण हिस्सों में असहाय बच्चों की शिक्षा के लिए धन जुटा सके। दिल्ली की विमला कौल शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्त होने के बाद पिछले 23 वर्षों से निराश्रित बच्चों को पढ़ा रही हैं। पटना के मोतिहार रहमान खान, जो सिर्फ ग्यारह रुपये लेकर आईएएस, आयपीएस, आयआरएस की परीक्षा कोचिंग देते हैं। मेरठ में सरकारी प्राथमिक विद्यालय की शिक्षिका, डॉ. कौसर जहाँ ने अपना जीवन गरीब बच्चों के लिए समर्पित कर दिया। वह पूरे जीवन अविवाहित रहकर गरीब बच्चों को पढ़ा रही हैं। छत्तीसगढ़ में महासमुंद जिला मुख्यालय के कोकरी प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक गेंदालाल कोकडिया और उनकी पत्नी अपने वेतन का 90 प्रतिशत खर्च गाँव के गरीब बच्चों की पढ़ाई में मदद करते हैं। इन शिक्षकों ने अपने निस्वार्थ सेवा कार्य को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान दी है, ऐसे कई महान लोग हैं जो ज़रूरतमंद बच्चों को मुफ्त में पढ़ाते हैं, जो सच्चे अर्थों में शिक्षक बनकर बेसहारा बच्चों के भविष्य को सुधारकर उन्हें उज्ज्वल जीवन दे रहे और एक मजबूत भारत का निर्माण कर रहे हैं। हर परिस्थिति में एक मजबूत शिक्षित समाज का निर्माण करना, एक सच्चे शिक्षक की भूमिका है है। पूरा देश “शिक्षक दिवस” पर ऐसे शिक्षकों को सलाम करता है।

अपनी ज़िम्मेदारी को समझें:- हर साल लाखों छात्र उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाते हैं जबकि हमारा देश सबसे ज्यादा शैक्षिक संस्थानों में दुनिया के तीसरे नंबर पर हैं। देश की हर गली में कोचिंग कक्षाएं खुली गई हैं और दूसरी तरफ सालोसाल शिक्षा विभाग में भर्तियां नहीं होती हैं। हम सभी अपने देश के अधिकांश राज्यों में सरकारी स्कूलों की वास्तविक स्थिति से अवगत हैं। आज शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत सरकारी कर्मचारी या सरकारी स्कूलों के अधिकांश शिक्षक अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाते हैं, महंगी कोचिंग क्लास लगवाते हैं। अगर महंगे निजी शिक्षण संस्थान गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देते हैं तो सरकारी संस्थान पीछे क्यों हैं? सभी राज्यों के जिला परिषद, नगर निगम, आश्रम स्कूल और अन्य सरकारी स्कूल केंद्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय की भांती विकसित होने चाहिए। ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में शिक्षा की स्थिति अधिक गंभीर हो गई है। ऐसी स्थिति में शिक्षा के दो अलग-अलग हिस्से सामने आते हैं, मतलब गरीब बच्चों के लिए एक सरकारी स्कूल और अमीर बच्चों के लिए एक निजी स्कूल, साथ ही गुणवत्ता भी बटी हुई नजर आती है। बड़े शहरों में, सरकारी स्कूल अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। अमीर और गरीब सभी के पास समान गुणवत्तापुर्ण शिक्षा हो। एक देश, एक शिक्षा, एक-सी गुणवत्ता होनी चाहिए, चाहे स्कूल सरकारी हो या निजी। आज के कोरोना महामारी में भी, देश का कोई भी छात्र ऑनलाइन शिक्षा से वंचित न हो, यही समान शिक्षा सुअवसर है।

शिक्षक हो सद्गुणों की खान:- हमारे यहां गुरु को भगवान का स्थान दिया गया है। शिक्षा जैसे पवित्र क्षेत्र में, कलंकित करनेवाली घटनायें कभी घटित नहीं होनी चाहिए, यह पूरी ज़िम्मेदारी शिक्षक की है, लेकिन क्या आज का शिक्षक अपने पद और पेशे के साथ 100 प्रतिशत न्याय कर रहा है या उसे आत्मचिंतन की आवश्यकता है? आज हर ओर, अपराधीकरण, स्वार्थ, सिफारिश, भ्रष्टाचार, लालच व्याप्त हैं। शिक्षा क्षेत्र से जुड़ी ऐसी कई ख़बरें हैं। हम पहले से ही विश्वस्तर की शिक्षा में पिछड़े हुए हैं।

समाज के शिल्पकार यानी शिक्षक कभी अपने लिए नहीं, बल्कि समाज के उज्ज्वल भविष्य को ऊर्जावान बनाने के लिए जीते हैं। शिक्षक को कौशलपुर्ण, मार्गदर्शक, दूरदर्शी, शोधकर्ता, विश्लेषक, विशेषज्ञ, मृदुभाषी, सहकारी, अनुशासित, समयनिष्ठ, ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ, समर्पित, परोपकारी और मेहनती होना चाहिए। शिक्षक का व्यवहार छात्रों के सामने आजीवन आदर्श चरित्र का होना चाहिए। शिक्षक हमेशा घृणित व्यवहार, लालच, अभिमान, दिखावा, नशा और भ्रष्टाचार से दूर रहता हो, बुरी परिस्थितियों में भी कभी डगमगाए नहीं और हमेशा सच्चाई का पथ प्रदर्शित करता हो। अच्छे कार्यों के लिए हमेशा पहल करें, छात्रों के विकास के बारे में सोचें और समाज में एक आदर्श स्थापित करें। शिक्षक में इन सभी गुणों का होना अत्यावश्यक है। एक अच्छी शिक्षा किसी को भी बदल सकती है, लेकिन एक अच्छा शिक्षक सब कुछ बदल सकता है। ऐसे शिक्षक कभी कार्य रिक्त या सेवानिवृत्त नहीं होते हैं, बल्कि जीवनभर ज्ञान की ज्योत जलाते हैं और शिक्षा जैसे पवित्र ज्ञान के व्यापारीकरण के युग में ऐसे शिक्षक आज “शिक्षक दिवस” पर वास्तव में सम्मान के हक़दार से कई बढकर हैं।

डॉ. प्रितम भी. गेडाम
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