Published On : Mon, Jun 13th, 2022
By Nagpur Today Nagpur News

शहर से तालाबों का अस्तित्व समाप्ति की ओर

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– मनपा,नासुप्र की अनदेखी से जलसंपदा संकट में

नागपुर – नागपुर महानागरपालिका और नागपुर सुधार प्रन्यास ने ऐतिहासिक तालाबों का संरक्षण कर पर्यटकों को आकर्षित करने की बजाय लापरवाही कर रही है और शहर की कुछ तालाब लुप्त हो चुकी हैं. खास बात यह है कि मनपा, नागपुर सुधार प्रन्यास ही नहीं, बल्कि नागरिकों की खामोशी और उदासीनता से तालाबों की अहमियत ख़त्म होती जा रही.

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वर्ष भर में सिर्फ पर्यावरण दिवस पर सिर्फ दो-चार पर्चे बांटे गए और व्याख्यान देने के अलावा कोई ठोस उपाययोजना शहर में न सरकारी और न गैर सरकारी तौर पर की जाती हैं। फुटाला, गांधीसागर तालाब के सौंदर्यीकरण के लिए दिखाई जा रही राजनीतिक इच्छाशक्ति, शहर की अन्य तालाबों को उनके बदहाली पर छोड़ दिया गया हैं,ऐसा क्यों ?

शहर में राजा बख्त बुलंद शाह और राजा रघुजी भोसले का इतिहास है। उन्होंने पानी की आपूर्ति के लिए शहर के विभिन्न हिस्सों में तालाबों का निर्माण किया था। उनके बाद ब्रिटिश शासन के दौरान भी उन तालाबों को संरक्षित रखा गया था। लेकिन शहर के शहरीकरण और आधुनिकीकरण के बाद तालाबों का क्षेत्रफल कम होता गया और उनके अस्तित्व को नियमित सरकारी स्तर पर खतरा पहुंचाई जा रही,आज कुछ तालाब तो कागजों तक सिमित रह गए ?

इनमें से एक संजय गांधीनगर तालाब पूरी तरह से नष्ट हो चुकी है ,उसी तालाब की जगह पर हुडकेश्वर थाना भवन है। लेंडी ,नाइक तालाब का अधिकांश हिस्सा अतिक्रमण ने निगल लिया है और पंढराबोडी तालाब नाम का रह गया,इस जगह पर रहवासी क्षेत्र बस चूका हैं.

शहर सिमा में बचे तालाब छोटे-छोटे पोखर का रूप ले चुके हैं,मनपा , नासुप्र प्रशासन, बिल्डर लॉबी इन जगहों को निपटाने के लिए अपने अपने स्तर से भिड़े हुए हैं.

पर्यावरणविदों द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, पिछले 20 वर्षों में शहरीकरण के कारण लगभग 12 से 15 छोटी तलबे नष्ट हो गई हैं। 2000 में रहाटे कॉलोनी से जेल तक के क्षेत्र में दिखाई देने वाली दो छोटी तालाब वर्ष 2019 में नष्ट हो गईं। उत्तर नागपुर में नवी मंगलवारी तालाब की पहचान भी मिट चुकी है।

उत्तर नागपुर में नाइक और लेंडी तालाब की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है। नागरिकों ने लेंडी तालाब को मिट्टी से भर दिया और उस पर घर बना लिए। इस पर क्षेत्र के नगरसेवक या विधायकों सुस्त होने से तालाबों का अस्तित्व समाप्ति पर हैं। पंढराबोडी तालाब पर सवा करोड़ खर्च किए गए।लेकिन तालाब का न तो सौंदर्यीकरण हो पाया और न ही इसे पुनर्जीवित किया गया। तालाब के नाम पर सभी संबंधितों ने अपना उल्लू सीधा करते रहे। सक्कराड़ा तालाब पर पिछले तीन साल से काम चल रहा है। यह ऐतिहासिक तालाब बेहद संकट में है। बाकी काम ‘सीएसआर फंड’ वाली संस्था से इस तालाब पर काम करने का विकल्प है।लेकिन मनपा की आनकानी कायम हैं, सोनेगांव तालाब का भी यही हाल है।

शहर के पास की तालाब भी गायब
वर्ष 2000 में शहर से सटे वाडी क्षेत्र में लगभग 4 छोटी तालाब थीं। इसे बुझा कर बस्ती बसा दिया गया। 2002 में हिंगना क्षेत्र में 3 छोटी तालाब स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं। गूगल अर्थ पर साफ है कि तालाब 2019 में मिट्टी डंप होने के कारण नक्शे से गायब हो गई थी।

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