नागपुर: परिवर्तन की साक्षी दीक्षाभूमि फिर एक बार ऐतिहासिक ‘घर वापसी’ की गवाह बनी जब क्रिसमस के यादगार दिन ओबीसी समुदाय से जुड़े हज़ारों लोगों ने हिंदू धर्म त्यागकर बौद्ध धर्म स्वीकार किया। मराठवाड़ा एवं कोंकण क्षेत्र के हजारों लोगों के साथ विदर्भ के सैकड़ों ओबीसी समुदाय से जुड़े लोगों ने बरसों पुराने अपने धर्म आवरण का त्यागकर खुद को मुक्त घोषित किया। सार्वजनिक धम्मदीक्षा परिषद की ओर से आयोजित इस धम्म दीक्षा कार्यक्रम में मराठा, तेली, चर्मकार, मातंग, लिंगायत, धनगर और कुनबी समुदाय के लोगों को भंते नागार्जुन सुरई ससाई ने बौद्ध धर्म की दीक्षा दी। इन नव-दीक्षितों ने डॉक्टर बाबासाहब आंबेडकर की २२ प्रतिज्ञाओं का सस्वर वाचन किया।
सत्यशोधक ओबीसी परिषद की ओर से आयोजित ‘घर वापसी’ अभियान को प्रचंड प्रतिसाद मिलने का दावा यहाँ जारी विज्ञप्ति में किया गया है कहा गया है कि संगठन के आह्वान पर हज़ारों ओबीसी बांधवों ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। संगठन के अध्यक्ष हनुमंत उपरे के अनुसार ”यह ओबीसी समुदाय के लोगों की घर वापसी है क्योंकि ओबीसी मूलतः नागवंशी हैं, जो बौद्ध धर्म पर ही यकीन करती रही है।”
श्री उपरे ने अफ़सोस जाहिर किया कि ”हिंदू धर्म में उन्हें बहुत भेदभाव झेलने पड़े, जबकि धर्म ऐसा मंच होता है, जहाँ सबके साथ समान और न्यायसंगत व्यवहार होना चाहिए। सत्यशोधक ओबीसी परिषद के आह्वान पर बौद्ध धर्म में दीक्षा लेने पहुंचे लोगों ने भी भेदभाव से मुक्त होने के लिए ही बौद्ध धर्म स्वीकारने का फैसला किया है।”
सुबह एक जुलुस की शक्ल में दीक्षार्थी संविधान चौक से दीक्षाभूमि पहुँचे थे। बौद्ध धर्म में दीक्षित होने कई लोग सपरिवार यहाँ पहुंचे थे। शाम के वक़्त दीक्षाभूमि पर ‘युगयात्रा’ नाटक का मंचन किया गया।
बौद्ध धर्म स्वीकारने के बाद नव-दीक्षितों ने हर तरह की गुलामी से मुक्त होने की बेबाक बात कही। सभी नव-दीक्षितों की आँखें अद्भुत अनुभूतियों की वजह से नम थी। उल्लेखनीय है कि क्रिसमस की पूर्व संध्या से नगर के एक हिस्से में त्रिदिवसीय धर्म संसद आयोजित थी, वहीं शहर के दूसरे हिस्से में हजारों लोग धर्म त्याग को मानसिक गुलामी से मुक्ति मानकर हर्षित महसूस कर रहे थे।