Published On : Mon, Feb 21st, 2022
By Nagpur Today Nagpur News

हजारो मातृ भाषाओं का अस्तित्व खत्म होने के कगार पर

Advertisement

(अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस – 21 फेब्रुवारी 2022)

बचपन में जो हम पहली भाषा सीखते है, जिस भाषाई परिवेश में बढ़ते है वह बोली-भाषा मातृभाषा कहलाती है, यह भाषा हमें घर परिवार के सदस्यों से प्राप्त होती है, साथ ही नाते-रिश्तो के लोगों द्वारा यह मातृभाषा बढ़ती जाती है। हर साल 21 फेब्रुवारी को “अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस” के रूप में संपुर्ण विश्व में भाषाई सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषावाद को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है। 2022 के अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की थीम, “बहुभाषी शिक्षा के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग : चुनौतियां और अवसर” है, बहुभाषी शिक्षा को आगे बढ़ाने, सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षण और सीखने के विकास का समर्थन करने के लिए प्रौद्योगिकी की संभावित भूमिका को बढ़ाना है।

Gold Rate
25 April 2025
Gold 24 KT 96,300 /-
Gold 22 KT 89,600 /-
Silver / Kg 97,100 /-
Platinum 44,000 /-
Recommended rate for Nagpur sarafa Making charges minimum 13% and above

16 मई 2007 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अपने संकल्प में सदस्य राष्ट्रों से “दुनिया के लोगों द्वारा उपयोग की जाने वाली सभी भाषाओं के बचाव और सुरक्षा को बढ़ावा देने” का आह्वान किया। इसी संकल्प द्वारा, महासभा ने बहुभाषावाद और बहुसंस्कृतिवाद के माध्यम से विविधता और अंतर्राष्ट्रीय समझ में एकता को बढ़ावा देने के लिए 2008 को अंतर्राष्ट्रीय भाषा वर्ष के रूप में घोषित किया और संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन को प्रमुख एजेंसी के रूप में नामित किया। यूनेस्को अनुसार वर्तमान में कम से कम 2680 देशी भाषाओं के लुप्त होने का खतरा है। हर दो हफ्ते में एक भाषा अपने साथ पूरी सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत लेकर गायब हो जाती है। डिजिटल दुनिया में सौ से भी कम भाषाओं का उपयोग किया जाता है।

भाषा जनसंख्या का एक महत्वपूर्ण गुण है, और भारत जैसे बहु-भाषाई और बहु-जातीय भूमि में इसकी बहुत प्रासंगिकता और महत्व है, देश में “कोस कोस पर बदले पानी, चार कोस पर बानी” ऐसी सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषावाद का अस्तित्व है। भारत की जनगणना एक सदी से भी अधिक समय से लगातार दशकीय जनगणनाओं में एकत्रित और प्रकाशित भाषा डेटा का सबसे समृद्ध स्रोत रही है। 2011 की जनगणना की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत देश में मातृभाषा के रूप में 19,569 भाषाएँ या बोलियाँ बोली जाती हैं। 121 भाषाएँ हैं जो 10,000 या उससे अधिक लोगों द्वारा बोली जाती हैं, जिनकी आबादी 121 करोड़ है। हालांकि, देश में 96.71 प्रतिशत आबादी की मातृभाषा 22 अनुसूचित भाषाओं में से एक है। संविधान की आठवीं अनुसूची में निम्नलिखित 22 भाषाएँ शामिल हैं- असमिया, बंगाली, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलुगु, उर्दू, बोडो, संथाली, मैथिली और डोगरी।

वर्ल्ड डाटा डॉट इन्फो प्रोजेक्ट दर्शाता है कि, विश्व स्तर पर सबसे ज्यादा बोली जाने वाली शीर्ष पांच मातृभाषा निम्नलिखित है – चीनी 1,349 मिलियन (17.4%), हिन्दी 566 मिलियन (7.3%), स्पेनिश 453 मिलियन (5.8%), अंग्रेज़ी 409 मिलियन (5.3%), अरबी 354 मिलियन (4.6%) अर्थात यह विश्व के 40.4 प्रतिशत लोगों की मातृभाषा है। उच्च भाषाई विविधता का एक क्षेत्र पापुआ-न्यू गिनी है, जहां लगभग 3.9 मिलियन की आबादी द्वारा बोली जाने वाली अनुमानित 832 भाषाएं हैं। इससे वक्ताओं की औसत संख्या लगभग 4,500 हो जाती है, जो संभवत: दुनिया के किसी भी क्षेत्र में सबसे कम है। ये भाषाएँ 40 से 50 अलग-अलग परिवारों से संबंधित हैं। विश्व स्तर पर छोटे-छोटे देशो की मातृभाषायें भी सभी ओर प्रचलित है, शिक्षा, व्यवसाय और हर क्षेत्र में, यहाँ तक की डिजिटल स्वरुप में भी उन भाषाओं में बड़े स्तर पर कार्य किये जाते है, जबकि दुनिया में दूसरे क्रमांक का सबसे बड़ी आबादी वाले हमारे देश की हिंदी भाषा, हिंदी दिवस और हिंदी पखवाड़ा या कुछ कार्यक्रम मनाने तक सिमित नजर आती है। अगर हम ही अपने मातृभाषाओं को प्रोत्साहन नहीं देंगे तो दूसरो से क्या उम्मीद करेंगे। हमारे देश में अधिकतर लोग अपनी मातृभाषा में बात करने को कतराते है, जबकि प्रत्येक नागरिक को खुद के मातृभाषा पर गर्व महसूस होना चाहिए। आज हम जिस आधुनिक और उन्नत समाज में रह रहे हैं, उसमें कुछ लोग इतने छोटे सोच के हो गए हैं कि अगर कोई व्यक्ति अपनी मातृभाषा में बोलता है, तो उसके शैक्षिक कौशल को कम करके आंका जाता है। अगर हम खुद अपनी मातृभाषा को बढ़ावा न देकर, मातृभाषा में बात करने को शर्म महसूस करेंगे, तो विश्व में भाषाई और सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषावाद का अस्तित्व ही हम खुद खत्म कर देंगे, वैसे भी तेजी से भाषाएँ लुप्त हो रही है।

बच्चे की मातृभाषा में प्रारंभिक स्कूली शिक्षा, सीखने में सुधार कर सकती है, छात्रों की भागीदारी बढ़ा सकती है और स्कूल छोड़ने वालों की संख्या को कम कर सकती है, जैसा कि दुनिया भर से सबूतों पर इंडियास्पेंड द्वारा किए गए विश्लेषण में बताया गया है, साथ ही नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी सिफारिश की गई है। माता-पिता अपने बच्चों को शिक्षा की गुणवत्ता की परवाह किए बिना ‘अंग्रेजी-माध्यम’ स्कूलों में भेजना पसंद करते हैं क्योंकि यह धारणा है कि अंग्रेजी भाषा की महारत बाद के जीवन में सफलता सुनिश्चित करती है। बच्चे जिस भाषा को अच्छी तरह समझते जानते है उस भाषा में शिक्षा से बच्चों में एक सकारात्मक और निडर वातावरण निर्मित होता है। बच्चों में उच्च आत्म-सम्मान होता है” तभी वह अच्छी शिक्षा कहलाती है। अगर बच्चे को ऐसी भाषा में पढ़ाया जाता है जिसे वे नहीं समझते हैं, तो परिणाम विपरीत होंगे। यदि ऐसी भाषा में पढ़ाया जाता है, जो समझ नहीं आती है तो इसके परिणामस्वरूप रटकर याद किया जाता है और इसे कॉपी करके लिखा जाता है। प्रारंभिक वर्षों में मातृभाषा की उपेक्षा करने वाले शिक्षा के मॉडल अनुत्पादक, अप्रभावी हो सकते हैं और बच्चों के सीखने पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं। शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 में यह भी कहा गया है कि जहां तक संभव हो, स्कूल में शिक्षा का माध्यम बच्चे की मातृभाषा होनी चाहिए।

लोगों की सोच और भावनाओं को तैयार करने में मातृभाषा महत्वपूर्ण है। अपनी मातृभाषा को अच्छी तरह जानना गर्व की बात है। यह आत्मविश्वास को बढ़ाती और व्यक्ति के दिमाग में जागरूकता पैदा करती है जबकि उन्हें बेहतर तरीके से अपनी सांस्कृतिक पहचान से जुड़ने में मदद करती है। किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व को परिभाषित करने में मातृभाषा का बहुत बड़ा सकारात्मक प्रभाव होता है। मातृभाषा बौद्धिक विकास के साथ, अतिरिक्त सीखने के लिए एक मजबूत आधार विकसित करती है, वाणिज्यिक लाभ, संचार कौशल विकसित करना और समझना, व्यवसाय व नौकरी के अवसर पैदा करती है, मजबूत पारिवारिक बंधनों का विकास करती है, मातृभाषा गौरवास्पद महसूस कराती है। शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए भाषा नीतियों को मातृभाषा सीखने पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

यदि आप किसी व्यक्ति से उस भाषा में बात करते हैं जिसे वह समझता है, तो आपकी बात उसके दिमाग में जाती है। अगर आप उससे उसकी भाषा में बात करते हैं तो आपकी बात उसके दिल तक जाती है -नेल्सन मंडेला

Advertisement
Advertisement