
प्यारे खान ने स्पष्ट किया कि इस्लाम में किसी को कष्ट देने की कोई अवधारणा नहीं है। उन्होंने कहा, “मेरी जानकारी के अनुसार, कुरान इतनी धीमी आवाज में पढ़ने की सलाह देता है कि पास बैठे व्यक्ति को भी वह सुनाई न दे। इस्लाम में किसी को तकलीफ पहुंचाने की कोई शिक्षा नहीं दी गई है।”
सार्वजनिक स्थानों पर नमाज अदा करने का मुद्दा हमेशा से बहस का विषय रहा है। कई स्थानों पर यह यातायात बाधित करने और सार्वजनिक असुविधा का कारण बनता है, जिस पर आपत्ति जताई जाती रही है। इस संबंध में प्यारे खान ने कहा कि धर्म का उद्देश्य संयम और शांति का मार्ग दिखाना होता है।
इसके साथ ही, उन्होंने इस मुद्दे को धार्मिक के बजाय सामाजिक और कानूनी दृष्टिकोण से देखने की आवश्यकता पर जोर दिया। उनका मानना है कि किसी भी धार्मिक परंपरा को सामाजिक संतुलन और कानूनी ढांचे के भीतर रहकर निभाया जाना चाहिए।
			


    
    




			
			