Published On : Wed, Jul 5th, 2017

बढ़ते बिजली बिल से झुलस रहा है आम आदमी

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Electric Bill

नागपुर: नागपुर शहर का सामान्य ग्राहक मासिक बिजली बिल के बढ़ते क्रम से क्षुब्ध है, इसकी खास वजह यह है कि पिछले 3 वर्षों में बिजली की दर लगभग दोगुनी हो चुकी है। बिल देखकर सभी ग्राहक वर्ग हैरान-परेशान है। 90 यूनिट के लिए जुलाई 2012 में 327 रुपये चुकाए थे और वर्तमान में 613 चुकाने पड़े। साथ ही मीटर किराया भी दोगुना हो गया, वर्ष 2012 में 30 रुपये था और अब 60 रुपये कर दिया गया। 2012 में विद्युत शुल्क 15% और अब 16% कर दिया गया।

विद्युत शुल्क बिजली बिल की कुल राशि पर लिया जाता है। जबकि युति गठबंधन पिछले आघाडी सरकार में चीख-चीख कर दावा किया करती थी कि जनता ने हमें सरकार में रहने का मौका दिया तो आम ग्राहकों को न सिर्फ बिजली बिल से राहत दिलवाई जाएँगी, बल्कि एसएनडीएल जैसे बिजली वितरण व्यवस्था सँभालने वाली ठेकेदार कंपनी को शहर से खदेड़ देंगी। लेकिन जब जनता ने युति गठबंधन के हाथों राज्य का कार्यभार सौंपी तो इन्होंने पहली अपनी कथनी और करनी में फर्क रहने का अहसास करवा दिया। जबकि नागपुर जिले में बड़ी मात्रा में बिजली निर्माण के साथ ही साथ राज्य के बिजली मंत्री भी स्थानीय है.

भीषण गर्मी भरा मई माह के बिजली बिल ने कमर तोड़ कर रख दिया है। मई माह में भीषण गर्मी के कारण कूलर,एसी, पंखे का अत्याधिक उपयोग हुआ है। इससे बिजली की खपत में इजाफा हुआ है। वही महावितरण ने महाराष्ट्र विद्युत नियामक आयोग के आदेशानुसार बहुवर्षीय विद्युत दर लागू कर दी। आग में घी का काम ईंधन समायोजन शुल्क ने कर दिया। इससे उपभोक्ताओं का बिजली बिल सीधे करीब 20% से अधिक बढ़ गया। नई दरें महावितरण के मुम्बई में वितरण क्षेत्र सहित प्रदेश के सभी उपभोक्ताओं पर लागू है। फिर उन्हें चाहे फ्रेंचायसी से बिजली मिल रही हो या फिर महावितरण से। इसके अलावा कुछ राशि विद्युत शुल्क के रूप में भी बढ़ रही है।

उल्लेखनीय यह है कि राज्य सरकार बिजली पर घरेलू उपभोक्ताओं से 16% की दर से विद्युत शुल्क वसूलती है। जबकि व्यावसायिक उपभोक्ताओं से 21% की दर से विद्युत शुल्क लिया जाता है। विद्युत शुल्क उपभोक्ताओं से सम्पूर्ण बिल पर वसूला जाता है। पिछले माह तक पहले अतिरिक्त वसूली के कारण ईंधन समायोजन शुल्क उपभोक्ता को वापस मिल रहा था। इससे इस राशि पर विद्युत शुल्क नही देना पड़ रहा था। बल्कि एफएसी की राशि उपभोक्ताओं को मिलने से बिजली बिल की राशि कम हो रही थी तो विद्युत शुल्क भी घट रहा था। मई के बिल में करीब 2% विद्युत दरों तथा करीब 18% ईंधन अधिभार शुल्क जुड़ने से शुल्क में भी वृद्धि हुई है। इससे उपभोक्ता के बिल पर करीब 23% तक का भार बढ़ गया है।

ग़ौरतलब सितंबर 2010 में बिजली दरें तय की गई थी। यह दर जुलाई 2012 तक रही। अगस्त 2012 में एमिआरसी ने 36% और बढ़ाकर मंजूरी दे दी। नवंबर 2016 में नई दर मार्च 2017 तक जारी रही। अप्रैल 2017 में बहुवर्षीय विद्युत दरें लागू हुई,जो अगली विद्युत दर वृद्धि तक लागू रहेंगी।बिजली विभाग को शिकायतकर्ता ज्यादा सक्षम दिखा तो उन्हें अपारंपरिक ऊर्जा याने सोलर सिस्टम लगाने की सलाह दे दी जाती है.यहाँ हज़ारों के मासिक बिल देख हंगामा करने वालों को लाखों ( नगदी या कर्ज ) खर्च कर खुद का खपत निर्माण करने की सुझाव दी जाती है.ऐसा लगता है मानो बिजली विभाग को सोलर सिस्टम की बिक्री बढ़ाने का जिम्मा सरकार ने थोंपा है.सोलर सिस्टम लगाने वाले अधिकांश सरकार से जुड़े अप्रत्यक्ष लोग ही है.

एसएनडीएल का कहर
– मासांत याने माह के अंतिम दिन बिजली का मीटर रीडिंग लेने के बजाय सप्ताहभर पहले रीडिंग ले जाते है,जबकि इनका “स्लैब” माह के १ तारीख से लेकर ३० तारीख का होता है.इससे ग्राहकों को जबरन बिजली का बिल लाध दिया जाता है.जब ग्राहक को माह के पहले सप्ताह में बिल थमाया जाता है तब वे हैरान रह जाते है.बिजली वितरण व्यवस्था का निजीकरण से ग्राहकों को अपनी समस्या/शिकायतें करने हेतु विभाग निहाय कोई दूरभाष क्रमांक या शिकायत केंद्र क्रमांक नहीं है.ठेकेदार कंपनी ने ग्राहकों से बचने के लिए टोल फ्री नंबर को प्रचारित किया है,जो बेकाम है,जिसका कंट्रोल शहर के बहार है,जिसे शहर या समय पर जनता की समस्या की कोई जानकारी नहीं होती है.

– अत्याधिक बिजली बिल / बड़े बकायेदारों से बकाया राशि भरने के लिए सफेदपोश वसूली ठेकेदार तैनात किये है.
– ठेकेदार कंपनी की फ्लाइंग स्क्वॉड छापामार कार्यवाही में पकडे गए ग्राहकों से सेटिंग के शिवाय कुछ नहीं करती है.बिजली चोरी के लिए ग्राहकों को पहले रिझाना,फिर पैसे ऐंठ बिजली चोरी के उपकरण लगाना और फिर कुछ माह बाद पकड़वा देना,फिर लम्बी-चौड़ी वसूली करना आदत सी हो गई है.
– ठेकेदार कंपनी को जब भी बढ़ते बिजली बिल की शिकायत मिलती है,वे जाँच की रकम सर्वप्रथम वसूलते है,संतोष नहीं हुआ तो काफी कहासुनी के बाद नया मीटर कभी निशुल्क तो कभी अत्याधिक शुल्क वसूल लगा देते है.यह मीटर भी पुराने मीटर से ज्यादा तेज भागता देख ग्राहक वर्ग सर पीटते रह जाते है.

कोयला आपूर्ति संदेह के घेरे में
राज्य के ऊर्जा इकाइयों को बिजली निर्माण हेतु कोयले की पूर्ति कोयला मंत्रालय अंतर्गत इकाइयों के जरिये होता है.इन इकाइयों के वेकोलि अग्रणी है.वेकोलि निम्न दर्जे के कोयले (पत्थर – मिटटी से लबरेज) को उच्च स्तरीय कागजों पर दर्शाकर राज्य ऊर्जा इकाइयों को वर्षो से थमा रहा है.कुछ वर्षो पूर्व तक (मनमोहन सरकार) वेकोलि अपने से जुड़े ‘कोल वासरी’ को खदान से निकले कोयले को ज्यादा धोने या साफ़ करने की सख्त मनाई किया करता था. उक्त सभी अवैध कृत को सभी विभाग से सम्बंधित ‘केमिस्ट’ अपने जेबे गर्म कर आपूर्ति की जा रही कोयलों को उच्च स्तरीय दर्शाया करती थी.कोयले आपूर्ति के दौरान किये जा रहे गड़बड़ियों से ऊर्जा निर्मिति निम्न व स्तरीय नहीं हो पा रही थी.पत्थर युक्त कोयला व निम्न दर्जे के कोयले को जलाने के लिए करोड़ों रूपए के तेल का उपयोग किया जाता था.माननिर्मिति पर कम ऊर्जा निर्मिति का दबाव दिनों-दिन बढ़ते जा रहा था.उक्त मामले ( कोयला आपूर्ति सम्बन्धी) से सम्बंधित एक प्रकरण सुको के निगरानी में महानिर्मिति व गुप्ता कोल् के मध्य चल रहा है.जिसका अंतिम निर्णय इसी वर्ष नवंबर २०१७ तक हो जाने की उम्मीद है.जिसमें गुप्ता कोल का पक्ष ठोस होने कारण महानिर्मिति सकते में है.

ऊर्जा-कोल मंत्रालय संयुक्त होने से खुल रहे है पोल
मोदी सरकार के पूर्व तक केंद्रीय स्तर पर कोयला और ऊर्जा मंत्रालय अलग-अलग हुआ करता था. दोनों के नेतृत्व कर्ता अलग-अलग होने के साथ कभी एकमंच को साझाकर ऊर्जा निर्मिति के उत्थान में कोई ठोस कदम नहीं उठाते थे. नतीजा अधिकांश मामला या सुझाव मुख पर या फिर कागजों तक सिमित रह जाया करता था. मोदी सरकार ने ऊर्जा निर्मिति मामले की गंभीरता को देख कोयला व ऊर्जा निर्मिति विभाग के लिए एक ही नेतृत्वकर्ता को जिम्मा सौंपा।जिसकी वजह से दोनों विभागों की गड़बड़ियां आये-दिन सामने आते जा रही है. साथ में इन गड़बड़ियों को सुलझाने के लिए दोनों विभागों की ओर से सफल संयुक्त प्रयास किये जा रहे है.