नागपुर: राज्य और केंद्र सरकार की ओर से छोटे बच्चों के स्कूल के बस्तों का बोझ कम करने की पहल की गई थी. कई स्कूलों में कुछ प्रमाण में बच्चों के बस्तों का बोझ कम भी हुआ. लेकिन बेसा स्थित सीबीएसई की एक बड़ी स्कूल ने बस्ते का बोझ कम करने के लिए एक अलग ही तरह का फरमान जारी किया है. पालकों को किताबों को पीरियड के हिसाब से फाड़कर लाने के लिए कहा गया है. जिसके कारण स्कूल का यह बेतुका फरमान ही सभी जगह चर्चा का विषय बन गया है.
सवाल यह उठता है कि इतनी महंगी किताबें फाड़ने से इस समस्या का हल हो सकता है क्या? पिछले साल इसी मांग को लेकर संविधान चौक पर एक बच्चा अनशन पर बैठा था. उस समय शिक्षा उपसंचालक और आरटीई एक्शन कमेटी के चेयरमैन मोहम्मद शाहीद शरीफ ने उसका अनशन तुड़वाया था. जिसके बाद स्कूलों में पिछले वर्ष ही बस्तों का वजन किया गया था. लेकिन इस साल किसी भी स्कूल में बस्तों का वजन करने की मुहीम नागपुर के शिक्षा विभाग की ओर से नहीं की गई.
किताबे फाड़कर उसके निर्धारित हिस्से के साथ ही बच्चों को स्कूल भेजने की ऐसी बेतुकी हिदायत स्कूल प्रशासन की ओर से दी गई है. यही नहीं स्कूल द्वारा बाकायदा सिलेबस के हिसाब से फाड़ी गई किताबों का टाइम टेबल भी जारी किया गया है. बस्तों के बोझ को लेकर मुंबई उच्च न्यायलय के नागपुर खण्डपीठ में इसे लेकर याचिका भी दायर की गई थी.
याचिका के कारण शिक्षा विभाग ने बस्तों का बोझ कम करने के लिए शिक्षा संचालक की अध्यक्षता में समिति भी गठित की गई थी. समिति में भी पाया की वजन ज्यादा है. पालक और स्कूलों को भी वजन कम करने के आदेश दिए गए थे. लेकिन फिर भी हालात नहीं सुधरे. इतनी महंगी किताबें फाड़ने के फरमान से भी पालक सकते में हैं.
इस बारे में आरटीई एक्शन कमेटी के चेयरमैन मोहम्मद शाहिद शरीफ ने बताया कि किताबें फाड़कर लाने का फरमान जारी करने से यह समस्या हल नहीं होगी. इसके लिए सरकार और शिक्षा विभाग ने ठोस कदम उठाने चाहिए. उन्होंने कहा कि शासन ने स्कूलों को कुछ निर्देश दिए हैं. लेकिन उस नियम के तहत स्कूल पालन नहीं कर रहे है. शिक्षा विभाग की ओर से पूरी तरह से उदासीनता दिखाई जा रही है.