नागपुर: हमारे देश को टाइम टैक्जेशन प्रणाली की जरूरत है। हमारी कर प्र्रणाली भी अच्छी है, लेकिन वह देश के विशाल बजट के प्रबंधन के अनुसार नहीं है। हम जितना टाइम लिमिट लगाएंगे यह बजट के लिए उतना ही कठिन साबित होता जाएगा। यह बात रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के केंद्रीय बोर्ड सदस्य नचिकेत मोर ने एनएडीटी (भारतीय प्रत्यक्ष कर अकादमी) व्याख्यान माला में बतौर वक्ता बोल संबोधित कर रहे थे। व्याख्यान माला का विषय ‘भारतीय वित्तीय समावेशन की वादे और चुनौतियां’ रखा गया था जिस पर केंद्रीत उनका भाषण था। व्याख्यान में हालांकि वे डिमोनिटाइजेशन के निर्णय पर सीधे टिप्पणी करने से बचते दिखाई देते रहे। प्रशिक्षु आईआरएस अधिकारियों द्वारा भी किए गए डिमोनिटाइजेशन के निर्णय पर उन्होंने टिप्पणी करने से साफ इंकार कर दिया।
उन्होंने कहा कि विदेशों में कर संग्रहण को लेकर कहा कि यूके (युनाइटेड किंग्डम) बहुत उंचे टैक्स सिस्टम से चलता है ताकि जनता को बेहतर सेवाएं उपलब्ध करा सके। जबकि जर्मनी बहुत कम टैक्स लेकर इंश्योरेंस पॉलिसी सिस्टम को बढ़ावा देकर लोगों को बेहर सेवाएं देती हैं। साथ ही बताया कि हमारे देश की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में कर संग्रहण का आकार 17 प्रतिशत है। लेकिन कई देशों में यह 40 से 45 प्रतिशत तक की हिस्सेदारी रखता है।
उन्होंने कहा कि व्यवस्था को सुधारने के िलए कुछ उपाय करना जरूरी था जिसमें प्रीपेड सिस्टम की ओर बढ़ना शुरू किया गया। अगर कर उगाही का प्रतिशत 17 प्रतिशत बना रहा तो आनेवाले समय में स्वास्थ्य क्षेत्र बदतर हालात की दिशा में जाना शुरू कर देगा। हमारा देश 9 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के साथ दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा आर्थ व्यवस्थावाला देश हो जाता है। व्यवस्था को सही ढंग से चलाने के लिए सरकार के हाथ में पैसा होना जरूरी है। इसलिए कर विभाग की जिम्मेदारी आनेवाले समय में और बढ़ेगी। डिजिटाइजेशन अगर हकीकत में तब्दील हुआ तो कर विभाग की योग्यता को भी आनेवाले समय में विकसित करने की जरूरत होगी।
नचिकेत ने देश के नागरिकों के लिए उपलब्ध कराई जानेवाली स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर कहा कि देश की अर्थ व्यवस्था से भी बुरी स्थिति देश के स्वाश्थ्य क्षेत्र की है। तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने का दावा करनेवाले देश में इतनी बड़ी आबादी के लिए जीडीपी में 1 प्रतिशत से भी कम स्वास्थ्य क्षेत्र की हिस्सेदारी रखी जाती है। वित्तमंत्री अरुण जेटली से स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए साढ़े चार लाख करोड़ रुपए मांगे जाने पर केवल डेढ़ करोड़ रुपए दिए जाते हैं। सरकार की मंशा गलत नहीं है लेकिन ऐसे निर्णय के पीछे कर से होनेवाली कम आय को जिम्मेदार ठहराया जाता है। उन्होंने आयआरएस अधिकारियों को कर संग्रहण के िलए दृष्टिकोण में बदलाव लाने की अपील करते हुए कहा कि कर संग्रहण सरकार के िलए ना करते हुए जनहितों को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए। स्वास्थ्य क्षेत्र को सुधारने के िलए कर प्रणाली को नए सिरे से नए विचार के साथ लागू करने पर उन्होंने जो दिया।