— कोर्ट ने 25 मई तक जांच के दिए निर्देश
नागपुर। सिम्बायोसिस लॉ स्कूल, नागपुर ने एक एलएलबी अंतिम वर्ष की छात्रा को इंस्टाग्राम पर “ऑपरेशन सिंदूर” को लेकर भारत सरकार के आधिकारिक वक्तव्य के विपरीत पोस्ट करने और अन्य अनुशासनात्मक कारणों के चलते 10 मई 2025 को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। यह आदेश संस्थान के निदेशक द्वारा जारी किया गया था।
छात्रा द्वारा इस निलंबन के खिलाफ बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच में याचिका दायर की गई। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने स्कूल प्रबंधन को 25 मई तक जांच प्रक्रिया पूरी कर छात्रा को उसी दिन निर्णय से अवगत कराने के निर्देश दिए हैं। साथ ही छात्रा को जांच में पूर्ण सहयोग करने का आदेश भी दिया गया है।
इंस्टाग्राम पोस्टों पर अदालत की टिप्पणी
सुनवाई के दौरान स्कूल की ओर से छात्रा के इंस्टाग्राम हैंडल की पोस्ट अदालत के रिकॉर्ड पर रखी गईं। अदालत ने अवलोकन किया कि इनमें से अधिकतर पोस्ट राजनीतिक स्वरूप की प्रतीत होती हैं। हालांकि एक पोस्ट ऑपरेशन सिंदूर से जुड़ी है, लेकिन चूंकि जांच प्रक्रिया चल रही है, इसलिए कोर्ट ने फिलहाल इन पोस्ट्स पर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।
शैक्षणिक गतिविधियों से पूर्ण प्रतिबंध
छात्रा को निलंबित किए जाने के बाद उसे सभी शैक्षणिक और गैर-शैक्षणिक गतिविधियों से वंचित कर दिया गया है। मामला बाद में कैम्पस अनुशासन समिति (CDC) को सौंपा गया, जिसने छात्रा को आंतरिक, सेमेस्टर और बैकलॉग परीक्षाओं में बैठने से भी रोक दिया। हालांकि यह स्पष्ट किया गया कि यदि जांच में छात्रा निर्दोष पाई जाती है, तो उसके लिए विशेष परीक्षा आयोजित की जाएगी ताकि उसे किसी प्रकार की शैक्षणिक हानि न हो।
याचिकाकर्ता की दलील: प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन
छात्रा की ओर से अधिवक्ता कुलकर्णी ने कोर्ट में दलील दी कि सीडीसी और प्रबंधन का यह निर्णय “प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों” का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि किसी छात्र को बिना निष्पक्ष जांच के निलंबित करना और परीक्षा में बैठने से रोकना अनुचित है। उन्होंने सिम्बायोसिस इंटरनेशनल (डीम्ड यूनिवर्सिटी) की 2023 की आचार संहिता का हवाला देते हुए कहा कि ऐसे मामलों में पहले निष्पक्ष जांच अनिवार्य है।
कोर्ट का रुख: निलंबन सजा नहीं, प्रशासनिक कार्रवाई है
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब तक जांच लंबित है, तब तक निलंबन को “सजा” नहीं माना जा सकता। यह एक प्रशासनिक कदम है, जो जांच निष्पक्ष रूप से पूरी होने तक उठाया जा सकता है। अनुशासनात्मक प्राधिकारी को ऐसा आदेश पारित करने का पूरा अधिकार है।