नागपुर: सभी विभागों के सचिवों ने अपने-अपने विभाग में लापरवाही व भ्रष्टाचार की शिकायत तथा जांच के लिए 2 सदस्यीय न्यायालयीन समिति गठित की थी. इस समिति को राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी. न्या. अजय खानविलकर व न्या. दीपक गुप्ता ने समिति पर स्थगिती दी है. इससे राज्य सरकार को बड़ी राहत मिली है.
यवतमाल जिले के घाटंजी, रालेगांव व केलापुर तहसील में महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के अंतर्गत किये गये कार्यों में लापरवाही होने का आरोप लगाते हुए घाटंजी के सामाजिक कार्यकर्ता मधुकर निस्ताने ने जनहित याचिका दाखिल की थी. याचिका के अनुसार इन तहसीलों में मनरेगा योजना के अंतर्गत ११९ करोड़ रुपये के काम किये गये. कार्य मशीनों द्वारा किये गये और मजदूरों के कार्ड दिखाकर निधि उठाई गई. इस संबंध में सरकार से शिकायत के बाद भी योग्य कार्रवाई नहीं की गई. पिछली सुनवाई के दौरान न्यायालय ने सरकारी विभागों में गैरव्यवहार व उनकी जांच के लिए स्वतंत्र मैकानिज्म बनाने संबंधी मत दिया था.
नहीं की जाती योग्य कार्रवाई
उक्त गैर व्यवहार २०१२ में उजागर हुआ था. तब से लेकर अब तक किसी भी तरह की कार्रवाई नहीं की गई. अब सरकार की ओर से बताया जा रहा है कि कुछ दस्तावेज गायब हो गये हैं. वहीं इन मामलों में अपराध दर्ज होने का प्रावधान होने के बाद आरोप पत्र प्रलंबित है. इससे पहले भी गैरव्यवहार के कई मामले सामने आये. इन घोटालों में केवल जनता के पैसों की लूट होती है और कार्रवाई के नाम पर केवल सरकार और न्यायपालिका की ऊर्जा खर्च की जाती है. वर्तमान परिस्थितियों में इस तरह के घोटालों पर योग्य कार्रवाई नहीं की जा रही है.
4 सप्ताह के भीतर सुनवाई
इस वजह से सरकार व प्रशासन के दबाव में न रहने वाली स्वतंत्र जांच प्रणाली से निर्माण करने की आवश्यकता होने का मत देते हुए उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्या. आर.सी. चव्हाण व सदस्य सचिव सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश के.बी. झिंझार्डे की समिति गठित की गई थी. समिति ने सभी विभागों में गैरव्यवहार के शिकायत की जानकारी न्यायालय से मांगी थी. इस पर कोई भी आदेश जारी होने से पूर्व सरकार ने उच्च न्यायालय के निर्णय को चुनौती दी थी. इस पर सोमवार को सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई हुई. इस पर न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश पर स्टे लगा दिया. साथ ही मधुकर निस्ताने सहित अन्य को नोटिस भी जारी किया है. अब याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय में 4 सप्ताह के भीतर सुनवाई होगी. सरकार की ओर से एड. निशांत काटनेश्वारकर ने पक्ष रखा.