Published On : Fri, Jan 28th, 2022
nagpurhindinews | By Nagpur Today Nagpur News

प्रमोशन में SC-ST को आरक्षण पर SC का फैसला, समझिए पूरा विवाद और कोर्ट ने क्या कहा?

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SC/ST Reservation in Promotion: 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी वर्ग को प्रमोशन में आरक्षण देने को लेकर तीन पैमाने तय किए थे. राज्य और केंद्र सरकार ने कोर्ट के पुराने फैसलों को चुनौती दी थी. इसी पर सुप्रीम कोर्ट ने आज फैसला दिया और पैमानों में छेड़छाड़ करने से मना कर दिया.कोर्ट ने ये भी कहा कि सरकार को समय-समय पर इस बात की समीक्षा जरूर करनी चाहिए कि नौकरियों में अनुसूचित जाति और जनजातियों को सही प्रतिनिधित्व मिला है या नहीं.

जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बीआर गवई की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही थी. बेंच ने कहा कि प्रमोशन में आरक्षण को लेकर जो पहले के फैसलों में पैमाने तय किए गए थे, उन्हें हल्का नहीं किया जाएगा.

ये पूरा विवाद क्या है? उसे जानने से पहले संविधान के उस अनुच्छेद को समझना जरूरी है जिसमें नौकरियों में आरक्षण का प्रावधान है.

संविधान का अनुच्छेद 16 अवसरों की समानता की बात कहता है. अगर सरकार के पास नौकरी है तो उस पर सभी का बराबर हक है. जो योग्य है, उसे नौकरी दे दी जाएगी. हालांकि, अनुच्छेद 16(4) कहता है कि अगर सरकार को लगे कि किसी वर्ग के लोगों के पास सरकारी नौकरी में प्रतिनिधित्व नहीं है तो वो आरक्षण दे सकती है. वहीं, अनुच्छेद 16(4A) इस बात की छूट देता है कि नौकरियों में प्रतिनिधित्व की कमी दूर करने के लिए सरकार अनुसूचित जाति और जनजाति को प्रमोशन में आरक्षण दे सकती है.

फिर दिक्कत कहां है?
– संविधान के मुताबिक, राज्य सरकारें प्रमोशन में अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के लोगों को आरक्षण दे सकती है. लेकिन रिजर्वेशन क्यों दिया गया? इसके पक्ष में आंकड़े देना जरूरी है. राज्य सरकारें इसी के खिलाफ हैं.

– बताया जाता है कि 80 के दशक में राज्य सरकारें प्रमोशन में आरक्षण देने लगी थीं. इन पर रोक लगी 1992 में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले से. तब इंदिरा साहनी केस में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा था कि आरक्षण की व्यवस्था भर्ती के लिए है न कि प्रमोशन के लिए. इस केस को मंडल केस के नाम से भी जाना जाता है.

– लेकिन सरकार ने संविधान संशोधन कर इसका तोड़ निकाल लिया. 1995 में संविधान में 77वां संशोधन किया गया और प्रमोशन में आरक्षण की व्यवस्था जारी रखी. ये मामला सुप्रीम कोर्ट चला गया. 2001 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि राज्य सरकारें और केंद्र सरकार प्रमोशन में आरक्षण तो दे सकती है लेकिन वरिष्ठा नहीं मिलेगी. हालांकि, इस फैसले को भी संविधान संशोधन के जरिए पलट दिया गया.

– इसके बाद 77वें और 85वें संशोधन को सवर्ण वर्ग के लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. इसे एम. नागराज केस के नाम से जाना जाता है. इस मामले में 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना. कोर्ट ने संवैधानिक संशोधनों को तो सही ठहराया लेकिन प्रमोशन में आरक्षण के लिए तीन पैमाने तय कर दिए.

क्या हैं वो तीन पैमाने?

1. पिछड़ापनः अनुसूचित जाति और जनजाति का सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा होना जरूरी है.
2. अपर्याप्त प्रतिनिधित्वः सरकारी पदों पर एससी-एसटी वर्ग का सही प्रतिनिधित्व न होना.
3. प्रशासनिक कार्यक्षमताः इस तरह की आरक्षण नीति से कामकाज पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.

सरकारें इन्हीं पैमानों के खिलाफ थी

– 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में साफ कर दिया कि प्रमोशन में आरक्षण दिया जा सकता है लेकिन सरकार को पहले आंकड़े जुटाने होंगे कि ये वर्ग कितने पिछड़े रह गए हैं? इनका प्रतिनिधित्व कितना कम है और कामकाज पर इसका क्या असर पड़ेगा?

– लेकिन राज्य और केंद्र सरकार ने इन्हीं पैमानों के खिलाफ थीं. राज्य और केंद्र की कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में थीं, जिसमें सरकारों ने दलील दी थी कि प्रमोशन में आरक्षण के मामले में अभी अस्पष्टता है, जिस कारण कई नियुक्तियां रुकी हुई हैं.

– सुनवाई के दौरान कोर्ट ने केंद्र से पूछा था कि वो प्रमोशन में आरक्षण क्यों सही मानते हैं? तो एडिशनल सॉलिसिटर जनरल बलबीर सिंह ने बताया कि नौकरियों में एससी

-एसटी वर्ग की संख्या कम है. उन्होंने बताया कि 19 मंत्रालयों में ग्रुप A, B और C की नौकरियों में एससी का प्रतिनिधित्व 15.34% और एसटी का प्रतिनिधित्व 6.18% है.

– हालांकि, कोर्ट इन आंकड़ों और दलील से संतुष्ट नहीं थी. कोर्ट ने 26 अक्टूबर को इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था. प्रमोशन मे आरक्षण देने का मसला दशकों से चला आ रहा है.

कोर्ट का ताजा फैसला क्या?

– सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने फैसलों में दखलंदाजी करने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकारें प्रमोशन में आरक्षण दे सकती हैं लेकिन ऐसा करने से पहले उन्हें आंकड़े जुटाने होंगे.
– कोर्ट ने कहा कि सरकार समय-समय पर रिव्यू करे कि एससी-एसटी को प्रमोशन में आरक्षण में सही प्रतिनिधित्व मिला है या नहीं. ये रिव्यू कब होगा, इसकी अवधि भी तय करनी होगी.