Published On : Wed, Apr 25th, 2018

आरटीओ घोटाला : फर्जी पंजीयन करके वेकोलि को लगाई लाखों की चपत!

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– पुलिस की जांच और सूचना अधिकार कार्यकर्ता को मिली जानकारी से खुली पोल
– आरटीओ और वेकोलि प्रबंधन नहीं कर रहा कार्रवाई
– एक चेचिस क्रमांक महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश के परिवहन विभाग में पंजीकृत कैसे?

नागपुर: नागपुर आरटीओ में राज्य परिवहन कानून की धज्जियां उड़ाता एक बड़ा घोटाला उजागर हुआ है। नागपुर आरटीओ की नाक के नीचे वर्षों से इस घोटाले को अंजाम दिया जा रहा है। फर्जी कागजात पेश कर फर्जी वाहनों का पंजीयन करवाता फिर उसी के आधार पर वेकोलि के संबंधितों को पक्ष में लेकर निविदा हासिल कर सालाना प्रति वाहन वेकोलि को न सिर्फ लाखों का चूना लगाया जा रहा है बल्कि मासूम बच्चों की ज़िंदगी से खिलवाड़ भी हो रहा है क्योंकि इन वाहनों में स्कूल बस शामिल है। ‘मोदी फाउंडेशन’ ने राज्य के गृह विभाग, परिवहन विभाग और केंद्रीय कोयला मंत्रालय से ऐसे संगठित अपराध पर शीघ्र लगाम लगाने की अपील की हैं. उक्त संगठित वाहन कानून के अपराधी को सहयोग करने वाले आरटीओ और वेकोलि के अधिकारियों पर भी सख्त कार्रवाई समय की मांग की गयी है।

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सूत्रों द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार गोंदिया निवासी व बालाजी ट्रेवल्स के संचालक संदीप कुमार गुप्ता पर अनेक मामले दर्ज हैं, जैसे धारा 420,धारा 468 व धारा 471 आदि-आदि। हुआ यूं कि वर्ष 2014-15 में वेकोलि प्रबंधन ने वेकोलि खदान में कार्यरत कर्मियों के बच्चों को स्कूल लाने-ले जाने के लिए किराये के बस हेतु निविदा निकली गई थी। वेकोलि में गुप्ता की स्कूल बस, ट्रक, सूमो आदि वाहन किराये पर चल रहे हैं।

कागजी सबूत – १

गिरफ्तार हो चुका है गुप्ता
यहां तक सब सामान्य था,लेकिन इस बीच वेकोलि बल्लारपुर और बल्लारपुर पुलिस को गुप्त सूचना मिली कि गुप्ता द्वारा संचलित बस जो वेकोलि में सेवा दे रही हैं, उसके कागजात भी फर्जी हैं। उक्त सूचना के आधार पर बल्लारपुर पुलिस ने खुद ब खुद गुप्ता पर मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी। जांच के दौरान पता चला कि गुप्ता की एमएच 35 के-3866 क्रमांक की बस वेकोलि में स्कूली बच्चों के लिए सेवारत हैं,इसी क्रमांक की बस गोंदिया के पोद्दार इंटरनॅशनल स्कूल में स्कूली बच्चों के आवाजाही के लिए गुप्ता द्वारा चलाई जा रही हैं। उक्त जानकारी के आधार पर बल्लारपुर पुलिस ने गुप्ता को न सिर्फ गिरफ्तार किया बल्कि गोंदिया स्थित उसके घर में छापा मार सबूत भी इकट्ठा किए। पुलिस ने चार्टशीट दाखिल कर पहले पीसीआर फिर एमसीआर हासिल किया।

कागजी सबूत – २

वेकोलि ने भी किया था बैन
बाद में गुप्ता ने दोबारा उक्त गलती न दोहराने का शपथपत्र पेश कर जमानत हासिल की। इस दौरान वेकोलि ने एक वर्ष के लिए गुप्ता को प्रतिबंधित कर दिया। इसके पूर्व गुप्ता ने वर्ष 2009 में वेकोलि,उमरेड में टेंडर फाड़ दिया था,जिसके बाद उस पर मामला दर्ज हुआ था।तब भी वेकोलि ने टेंडर में भाग न ले इसलिए ‘डिबार’ किया था। इस वक़्त भी गुप्ता ने न्यायालय के समक्ष माफीनामा पेश कर राहत हासिल की थी। तब गोंदिया के एसबीआर ट्रेवल्स का पार्टनर गुप्ता हुआ करता था।

कागजी सबूत – ३

फर्जी कागज़ से बना दिया लेटेस्ट मॉडल’
गुप्ता की एमएच 35 के-3866 वाहन के साथ साथ एमएच 36-1236 क्रमांक की बस फर्जी मामले में धरी गई थी। यह बस 10 वर्ष पुरानी थी,जिसका फर्जी कागजात तैयार कर ‘लेटेस्ट मॉडल’ दर्शाया गया था। जबकि वेकोलि टेंडर शर्तो के अनुसार 3 वर्ष पुरानी बस की अनिवार्यता की गई थी। 3 वर्ष पुरानी बसों का वेकोलि अच्छा खासा किराया देती हैं। संबंधितों ने इस बस पर भी कार्रवाई की,साथ ही गुप्ता के सभी वाहन जो वेकोलि में किराए पर चल रहे थे,उनकी जांच-पड़ताल की।इसके बाद वेकोलि ने गुप्ता के 2 गाड़ियों का ‘आर्डर टर्मिनेट’ किया। शेष सभी वाहनों का पूर्ण भुगतान कर दिया।

इसी कार्यकाल में एमएच 31 सीक्यू-4540 क्रमांक की बस गुप्ता द्वारा वेकोलि बल्लारपुर में वर्ष 2014 से 2016 तक चली,जो की फर्जी दस्तावेजों के आधार पर लगाई गई थी। तब इसका मामला सामने नहीं आया।इसका फर्जी होने का मामला प्रकाश में न आने के कारण वेकोलि ने इसका तय किराया लगभग 40 लाख का भुगतान कर दिया।

सूचना के अधिकार ने फोड़ा भांडा
28 सितंबर 2017 को नागपुर सिटी आरटीओ ने सूचना अधिकार के तहत कुछ गाड़ियों की जानकारी दी कि एमएच 31 सी क्यू-4540 क्रमांक की बस का फर्जी दस्तावेज के आधार पर आरटीओ में पंजीयन और बाद में वेकोलि के हासिल किये गए टेंडर में गैरकानूनी रूप चलाया गया। इसके तह में जाने पर सबूत सह जानकारी मिली कि 16 जनवरी 2015 के आरटीओ के सरकारी दस्तावेज के अनुसार संदीप गुप्ता के नाम एमएच 31 सी क्यू-4540 क्रमांक की बस पंजीकृत हैं, जिसका नागपुर शहर आरटीओ में चेचिस क्रमांक 441276एमविजेड010420 हैं।इसका मॉडल 2008 का दर्शाया गया है। वहीं दूसरी ओर आंध्र प्रदेश ट्रांसपोर्ट विभाग के ऑनलाइन सेवा के रिकॉर्ड यही चेचिस क्रमांक बी.गणेश्वर (एपी28डब्लू0839) के नाम दर्ज हैं और इसका मॉडल 1 फरवरी 2005 दर्शाया गया हैं।सवाल यह हैं कि चेचिस क्रमांक एक और 2 राज्यों के आरटीओ में पंजीयन नागपुर आरटीओ के कार्यप्रणाली पर उंगली उठा रही हैं, क्योंकि आंध्र प्रदेश की आरटीओ काफी वर्ष पूर्व ऑनलाइन सेवा देनी शुरू कर दी थी,महाराष्ट्र के आरटीओ में हस्त लिखित कामकाज पुराने ढर्रे पर जारी था।

पंजीयन फर्जी होने का तर्क
संदीप कुमार गुप्ता ने सतना के अग्रवाल मोटर्स का लेटरहेड का नमूना का इस्तेमाल कर फर्जी बिक्री पत्र बनाया।इस पत्र द्वारा यह दर्शाया गया कि अग्रवाल मोटर्स ने 31 मई 2008 को उक्त चेचिस गुप्ता को बेची। इतना ही नहीं तब इसका ‘इनवॉइस’ भी फर्जी तैयार किया गया था। इसके बाद आज़ाद कोच प्राइवेट लिमिटेड से 3 मई 2009 आज़ाद बॉडी निर्माण संबंधी कागजात आरटीओ में प्रस्तुत की,जबकि सिर्फ उसका लेटरहेड का नमूना का उपयोग कर फर्जी कागजात तैयार किया गया था।उक्त गड़बड़ी को सही ठहराते हुए गुप्ता ने 50 रुपये के प्रतिज्ञा पत्र दिया कि उक्त गाड़ी उसकी और प्रस्तुत सभी कागजात सही हैं। सवाल यह उठता हैं कि नागपुर आरटीओ में गुप्ता द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों का जांच हुई या नहीं, गर हुई तो उक्त मामलात सामने कैसे नहीं आये। ‘आरसी पर्टिकुलर’ में सीरियल क्रमांक 8 में मॉडल का वर्ष 2008 कैसे बिना जांच के अंकित किया गया जबकि आंध्र प्रदेश में मॉडल वर्ष 2005 अंकित हैं।

वेकोलि ने कैसे कर दिया भुगतान?
उक्त तर्क-वितर्क को एक बार सही ठहराते हुए उक्त गाड़ी को वर्ष 2008 का मान लिया जाए तो वेकोलि टेंडर के हिसाब से वर्ष 2008 की बस वर्ष 2015 में किस बिना पर चली और वेकोलि ने लाखों में भुगतान किया। यह बस परमिट के हिसाब से वेकोलि में चल रही तो इसी चेचिस की बस आंध्र प्रदेश में (एपी28डब्लू0839) पंजीकृत कैसे हैं। अर्थात गुप्ता द्वारा प्रस्तुत अग्रवाल मोटर्स का बिक्री पत्र बोगस हैं, इसलिए नागपुर आरटीओ में गुप्ता द्वारा प्रस्तुत कागजात फर्जी प्रतीत होता हैं।’मोदी फाउंडेशन ‘ ने उक्त सभी सम्बंधित विभाग के मंत्रियों व विभाग प्रमुखों से मांग की हैं कि शीघ्र ही उक्त मामले की गंभीरता को देखते हुए ठोस कार्रवाई नहीं की गए तो जल्द ही वे न्यायालय की शरण में जाकर न्याय की गुहार करेंगे ताकि उक्त प्रकार के अपराध,सरकारी राजस्व का नुकसान सह मासूम बच्चों के साथ खिलवाड़ हमेशा के लिए बंद हो सके.

– राजीव रंजन कुशवाहा

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