Published On : Sat, Aug 4th, 2018

मोदी सरकार के काम से संतुष्ट नहीं RSS, फिर भी देगी 2019 में साथ- वॉल्टर एंडरसन

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‘द आरएसएस: ए व्यू टू द इनसाइड’ किताब अगले हफ्ते रिलीज होने वाली है. इस किताब में एंडरसन और उनको सहयोगी श्रीधर दामले ने आरएसएस के विश्व दृष्टिकोण और संगठन के विकास पर फोकस किया है. वॉल्टर के. एंडरसन ने अपनी नई किताब को लेकर News18 से खास बातचीत की…

जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर वॉल्टर के. एंडरसन और अमेरिकी मूल के राइटर श्रीधर डी. दामले ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) पर दूसरी किताब लिखी है. ‘द आरएसएस: ए व्यू टू द इनसाइड’ किताब अगले हफ्ते रिलीज होने वाली है. इस किताब में एंडरसन और उनको सहयोगी श्रीधर दामले ने आरएसएस के वैश्विक दृष्टिकोण और संगठन के विकास पर फोकस किया है.

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एंडरसन के मुताबिक, वक्त बदल चुका है. कभी बीजेपी आरएसएस पर निर्भर हुआ करती थी. लेकिन, अब आरएसएस भगवा पार्टी (BJP) पर निर्भर है. आने वाले लोकसभा चुनाव में आरएसएस कुछ मुद्दों पर भगवा पार्टी से ‘नाखुश’ होने के बावजूद उसका साथ देने को मजबूर है.

वॉल्टर के. एंडरसन जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी में साउथ एशिया स्टडीज़ के एडज़क्ट प्रोफेसर (कॉन्ट्रैक्ट प्रोफेसर) हैं. वह आरएसएस पर अपने लेख के लिए खास तौर पर जाने जाते हैं. इसके पहले एंडरसन डिपार्टमेंट ऑफ साउथ एशिया डिवीजन के चीफ भी रह चुके हैं. एंडरसन दिल्ली के यूएस एंबेसी में एंबेसडर के स्पेशल असिस्टेंट के तौर भी काम कर चुके हैं.

वॉल्टर के. एंडरसन ने अपनी नई किताब को लेकर News18 से खास बातचीत की. इस दौरान उन्होंने कश्मीर मुद्दे, गौ-हत्या, राम मंदिर और आने वाले चुनावों पर भी चर्चा की. बीजेपी पर आरएसएस की निर्भरता को स्पष्ट करते हुए एंडरसन कहते हैं, ‘आरएसएस वैसे तो खुद को गैर-राजनीतिक संगठन बताती है. इसके लक्ष्य और उद्देश्य मौजूदा सरकार के फ्रेमवर्क में फिट नहीं बैठते. लिहाजा आरएसएस को सत्ता में रहने के लिए ज़ाहिर तौर पर बीजेपी की जरूरत थी, क्योंकि संबद्ध संगठनों को अक्सर उन मुद्दों से निपटना पड़ता है, जहां सरकार की भूमिका निभानी होती है. कृषि ऐसा ही एक क्षेत्र है.

उनके मुताबिक, आरएसएस को इन मुद्दों से निपटना है, इसलिए वह चाहती है कि सरकार उसकी तरफ हो. एंडरसन के मुताबिक, आरएसएस ब्यूरोक्रेसी या डीप स्टेट को लेकर भी चिंतित है, क्योंकि ये उसके लिए आगे जाकर मुश्किलें खड़ी कर सकता है.

वॉल्टर एंडरसन के मुताबिक, ‘आरएसएस सरकार के प्रति स्वीकार्य रूप से प्रतिबद्ध है. हालांकि, ये बहस का विषय है कि बीजेपी पर आरएसएस की निर्भरता कितनी है और आरएसएस बीजेपी पर कितना भरोसा करता है.’ इसे हम प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के उदाहरण से समझ सकते हैं. सरकार एफडीआई इसलिए चाहती थी, क्योंकि इससे विदेश का पैसा है और देश में नौकरियों के नए अवसर पैदा होते. लेकिन, एफडीआई को लेकर आरएसएस और बीजेपी में आम सहमति नहीं थी. आरएसएस को लगता था कि एफडीआई से भारतीय संस्कृति, मूल्यों, नैतिकता, उपभोक्तावाद और स्वदेशी अर्थव्यवस्था कमजोर होगी. फिर भी आरएसएस ने एफडीआई का आइडिया स्वीकार किया.

मोदी सरकार के चार साल पूरे होने को आरएसएस कैसे देखता है के सवाल पर एंडरसन ने कहा, ‘इसे लेकर मिली-जुली राय है. हालांकि, विजयादशमी पर आरएसएस में दिए गए मोहन भागवत के भाषण से कई चीजें साफ होती हैं. भागवत ने अपने हालिया भाषण में कहा था कि एनडीए सरकार के चार साल में से आखिरी साल काफी चुनौतीपूर्ण रहा. खास तौर पर आर्थिक मामलों में.’ एंडरसन कहते हैं, ‘मेरे ख्याल से आरएसएस भी ऐसा महसूस करती है कि सरकार को नौकरियों को लेकर जो काम करने चाहिए थे, वो काम उसने नहीं किए.

वॉल्टर एंडरसन का यह भी कहना है कि भले ही आरएसएस बीजेपी के कामों से संतुष्ट न हो, फिर भी वो चाहती है कि अगले साल फिर से बीजेपी ही केंद्र की सत्ता में आए, क्योंकि चुनावों को लेकर बीजेपी शॉर्ट टर्म उद्देश्यों पर ही फोकस करती है, लेकिन आरएसएस लंबी अवधि के उद्देश्यों पर काम करती है. इसके लिए उसे बीजेपी जैसी सरकार की जरूरत है ही.

वॉल्टर एंडरसन का कहना है कि इस दौर को आरएसएस का गोल्डन पीरिएड कहा जा सकता है. मौजूदा वक्त में आरएसएस की देशभर में 70 हजार से ज्यादा शाखाएं चलती हैं. देश का सबसे बड़ा प्राइवेट स्कूल सिस्टम भी आरएसएस से जुड़ा है. इसमें करीब 40 से 50 हजार छात्र मुस्लिम हैं. हालांकि, ये बहस का विषय है कि आरएसएस के स्कूलों में दी जाने वाली संघ की ट्रेनिंग इन छात्रों के विचारों को कैसे प्रभावित करते है.

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