नागपुर। नागपुर जिले के शंकरपुर स्थित सर्वे नंबर 116/1 की 1.13 हेक्टेयर जमीन पर मालिकाना हक का दावा करते हुए मैध्युज एवं अन्य की ओर से हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल की गई थी। याचिकाकर्ताओं ने इस जमीन को शहरी भूमि सीलिंग (यूएलसी) अधिनियम के तहत अधिग्रहित मानने से इनकार करते हुए राजस्व पंजीकरण को हटाने और स्वयं को जमीन का एकमात्र मालिक घोषित करने की मांग की थी। साथ ही 5 सितंबर 2024 को कोर्ट द्वारा दिए गए मौखिक आदेश की समीक्षा करने की याचना की गई थी। लंबी सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने समीक्षा याचिका को खारिज कर दिया।
याचिकाकर्ता की दलीलें
याचिकाकर्ताओं की ओर से बताया गया कि 26 सितंबर 2006 को उक्त जमीन को गैर-कृषि (NA) उपयोग के लिए परिवर्तित किया गया था, लेकिन यह आदेश 17 मार्च 2010 को रद्द कर दिया गया। इसके चलते यूएलसी अधिनियम की धारा 20 के अंतर्गत 31 जुलाई 2006 को मंजूर की गई योजना को लागू नहीं किया जा सका।
याचिकाकर्ताओं ने यह भी तर्क दिया कि कोर्ट ने महाराष्ट्र चैंबर ऑफ हाउसिंग इंडस्ट्री बनाम महाराष्ट्र राज्य के मामले में पूर्ण पीठ द्वारा दिए गए निर्णय को इस मामले में अनुचित रूप से लागू किया। साथ ही यह भी कहा गया कि राज्य सरकार ने जमीन पर वास्तविक कब्जा नहीं लिया है, न ही याचिकाकर्ताओं को योजना लागू करने हेतु कोई नोटिस जारी किया गया।
वकील की दलील – जमीन स्वतः मुक्त हो चुकी
याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट में दलील दी कि एक बार जब यूएलसी की धारा 20 के तहत स्वीकृत योजना के अनुसार रिटेन्शन का आदेश पारित हो जाता है, तो जमीन याचिकाकर्ताओं के पक्ष में मुक्त मानी जाती है। साथ ही विस्तार आदेश के अनुसार भूखंडों की बिक्री भी तय समयसीमा में की जा सकती है, जिससे याचिकाकर्ता राहत के हकदार हैं।
सरकारी पक्ष का विरोध
सरकारी वकील ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि समीक्षा के लिए जो आधार प्रस्तुत किए गए हैं, वे एक नए मुकदमे की तरह हैं। ये तर्क पहले ही रिट याचिका के दौरान प्रस्तुत हो चुके हैं और उन्हें ही दोहराने की कोशिश की गई है। अतः समीक्षा की अनुमति नहीं दी जा सकती।
दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद हाई कोर्ट ने कहा कि समीक्षा याचिका में कोई ठोस आधार नहीं है और इसे खारिज कर दिया गया।