– उनकी 3 साल बाद कामठी विस से चुनाव लड़ने की इच्छा
नागपुर – आगामी 10 दिसंबर को होने जा रही स्थानीय स्वराज संस्था से विधानपरिषद के लिए चुनाव में फ़िलहाल दोनों प्रमुख पक्षों में असमंजस नज़र आ रही हैं,इसलिए कि भाजपा नेतृत्व बावनकुले का जड़ रौंदने की कोशिश में लगे हैं तो दूसरी ओर कांग्रेस में गुटबाजी सर चढ़ के बोल रही,गर राजेंद्र मूलक की जगह अन्य किसी कांग्रेसी को कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाया तो यह समझ बन जाएगी कि कांग्रेस के साथ समझौता हो गया ?
मंगलवार को उक्त चुनाव के लिए आचार संहिता लागु होने के बाद नए-नए समीकरण शहर व जिले में हिचकोले खा रहे हैं.
भाजपा सूत्रों के अनुसार उक्त चुनाव के लिए स्थानीय भाजपा नेतृत्व पूर्व ऊर्जा मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले को चुनाव लड़ने के लिए दबाव बना रही,इसके पीछे का तर्क यह बताया जा रहा कि इस चुनाव में बावनकुले की जीत निश्चित है,इससे कामठी विधानसभा चुनाव क्षेत्र से बावनकुले को दूर किया जा सकता हैं.जबकि बावनकुले की यह चुनाव लड़ने की कतई इच्छा नहीं है,वे 3 साल बाद कामठी अपने पारंपरिक चुनावी क्षेत्र से पुनः चुनाव लड़ने को इच्छुक हैं.
बावनकुले के पुरजोर विरोध बाद उनकी जगह मनपा के पूर्व स्थाई समिति सभापति विक्की कुकरेजा को चुनाव लड़वाने हेतु भाजपा का एक प्रभावी गुट योजना बना रहा.अगर विक्की कुकरेजा को उम्मीदवारी भाजपा ने दी तो भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस और अंशतः नितिन गडकरी कुकरेजा के पक्ष सक्रीय नज़र आएंगे।यह चुनाव काफी सिमित मतदाताओं में और ऊँचे खर्चों वाली बतलाई जाती है,इसके लिए कुकरेजा सबसे उत्तम भाजपाई उम्मीदवार हो सकता हैं.
सूत्र बतलाते हैं कि भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस आज शहर में हैं,वे उक्त चुनाव के सन्दर्भ में क्या क्या पहल करते हैं,इस पर भाजपाइयों की नज़र हैं.
उल्लेखनीय यह हैं कि भाजपा उम्मीदवार को डर सिर्फ मनपा के भाजपाई नगरसेवकों से ही है,वह इसलिए कि भाजपा शहर नेतृत्व ने आगामी मनपा चुनाव के मद्देनज़र यह घोषणा की थी कि आगामी मनपा चुनाव में आधे से अधिक नगरसेवकों की टिकट काटी जा सकती हैं,इस क्रम में खुद को देखने वाले नगरसेवक/नगरसेविका आदि उक्त विधानपरिषद चुनाव में भाजपा के खिलाफ बगावत कर सकते है,क्यूंकि यह चुनाव गुप्त मतदान पद्द्ति से होने वाला हैं,ऐसे में बगावत करने वालों को पकड़ना आसान नहीं होगा।
दूसरी ओर कांग्रेस में काफी असमंजस है,फिर चाहे मतदाता हो या फिर इच्छुक उम्मीदवार।क्यूंकि जिले में कांग्रेस का नेतृत्व मंत्री द्वय नितिन राऊत और सुनील केदार एवं विधायक विकास ठाकरे कर रहे हैं.इन तीनों में केदार-ठाकरे दोनों राऊत के कट्टर विरोधी हैं.कांग्रेस कोटे के शत-प्रतिशत मतदाता केदार-ठाकरे के गुट में हैं,क्यूंकि जिले के पालकमंत्री राऊत है इसलिए पक्ष तीनों को संयुक्त एक मंच पर लाकर और तीनों के सलाह मशविरा से उम्मीदवार को फ़ाइनल करने की कोशिश करेगा।यह बात और है कि तीनों के मध्य पक्ष हित में मनोमिलन हो पाती है या नहीं ….. इसका भी सकारात्मक-नकारात्मक असर चुनाव पर पड़ने वाला है.
उल्लेखनीय यह है कि फ़िलहाल दूर-दूर तक कांग्रेस के पास राजेंद्र मूलक के अलावा कोई तगड़ा उम्मीदवार नज़र नहीं आ रहा,इसके पूर्व भी मूलक ने यह चुनाव जीत चुके है,तब भी उन्हें कांग्रेस के कुल मत में से लगभग 4 दर्जन मत कम मिले थे,इसके बावजूद भाजपा मतदाताओं में सेंध लगाने में मूलक सफल हुए थे.
इसके पीछे यह भी कड़वा सत्य था कि भाजपा ने अशोक मानकर को उम्मीदवार बनाया था,वह गडकरी के काफी करीबी थे,चुनाव जितने के बाद जिनकी नीव हिलने वाली थी,वैसे जिले के विधायक ने मानकर से खर्चा-पानी लेकर जिले के आधे मतदाताओं को बांटा ही नहीं,इन नाराज भाजपाई मतदाताओं ने कांग्रेस उम्मीदवार द्वारा सराहने पर उन्हें मतदान किया था.
कांग्रेस खेमे में यह चुनाव मंत्री सुनील केदार के इर्द-गिर्द विचरण कर रहा हैं,वह इसलिए कि उनके गुट में अधिकांश मतदाता के साथ जातिगत समीकरण को तवज्जों देने का आरोप लगता रहा.इस क्रम में वे क्या राजेंद्र मूलक का साथ देंगे,यह फिर जिले में दूसरा नया नेतृत्व पैदा नहीं होने देंगे।
जानकारों का मानना है कि कांग्रेस ने पिछले स्नातक चुनाव की रणनीति की भांति केदार-राउत-ठाकरे ने एकता का परिचय देते हुए राजेंद्र मूलक को मैदान में उतरा और मदद की तो पुरानी ‘राजीव सेना’ अपने गुट में एक और विधायक की संख्या बढ़ाने के लिए पूर्ण ताकत झोंक देंगी।गर कांग्रेस ने उम्मीदवार बदला तो यह साफ़ हो जाएगा कि भाजपा उम्मीदवार की जीत के लिए कांग्रेस नेताओं का भाजपा नेताओं संग बड़े स्तर पर समझौता हो गया हैं. ऐसी सूरत में भाजपा उम्मीदवार को उक्त कांग्रेसी नेताओं को उनके मनमाफिक संतुष्ट करना होगा ?
