बारिश में जमकर उछाल रहे कीचड़
मुंबई/नागपुर: केंद्र से लेकर राज्य तक इन दिनों भाजपा और शिवसेना के बीच चल रहा विवाद अन्य पार्टियों के लिए ‘मन की मौज’ बन गया है। कांग्रेस सहित अन्य राजनीतिक पार्टियां अब तो भाजपा और शिवसेना के ‘दोस्ती’ की फिरकी भी लेने लगी है, लेकिन कार्यकर्ताओं के बीच चल रही जुबानी जंग थमने का नाम नहीं ले रही है। दोनों पार्टियों को ‘पोस्टर वार’ में मजा आ रहा है। दोनों यह भूल गये हैं कि जनता ने उन्हें इसलिए ही सत्ता में काबिज नहीं किया है कि उनके आपसी विवाद को सुबह की चाय की चुस्की के साथ पी जाएं। फिलहाल शिवसेना और भाजपा के बीच कडवाहट का पौधा बारिश के साथ पनपता जा रहा है। दोनों पार्टियों के बीच तेजी से बिगड़ रहे रिश्तों के बीच बीजेपी ने मुंबई में शिवसेना के एक कार्यक्रम का बहिष्कार किया। मुंबई महानगर पालिका के एक कार्यक्रम में भाजपा अध्यक्ष आशीष शेलार को उद्धव ठाकरे के साथ मंच साझा करना था। लेकिन शिवेसना के बीजेपी नेताओं के खिलाफ प्रदर्शन को लेकर विरोध जताते हुए बीजेपी नेता आशीष शेलार, शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से दूरी बनाते नजर आए। उधर मुंबई में ही शिवसेना के कार्यकर्ताओं ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और आशीष शेलार का मजाक उड़ाता हुआ पोस्टर निकाला और उसे आग के हवाले कर दिया। वहीं शिवसैनिकों के प्रदर्शन के दौरान अमित शाह और भाजपा के मुख्य प्रवक्ता माधव भंडारी के पोस्टरों को फिल्म शोले के किरदारों की तरह कपड़े पहनाए और फिर प्रदर्शन के बाद उन्हें आग के हवाले कर दिया।
अब तो कार्यकर्ता भी सोचने लगे हैं कि दोनों पार्टियों के बीच आखिर क्या चल रहा है। वहीं दोनों पार्टियों को वोट देकर सत्ता और राज्य में काबिज करने वाला आम मतदाता खुद को ठगा सा महसूस कर रहा है। क्या इसी दिन के लिए उन्होंने गठबंधन को अवसर दिया था। राजनीति में भले ही कुछ भी होता हो, लेकिन इतना तय है कि दोनों दल गठबंधन का सम्मान नहीं कर रहे है। अपनी-अपनी ताकत को बढ़ाने के चक्कर में यह भूलते जा रहे हैं कि मतदाता क्या सोच रहा होगा। राजनीतिक पंडित इस विवाद को महाराष्ट्र में होने वाले महानगर पालिका चुनाव से जोड़ रहे हैं। मुंबई महानगर पालिका चुनाव से पहले दोनों पार्टियां आपस में ही विवाद का माहौल तैयार कर कार्यकर्ताओं की भीड़ एकत्रित करना चाह रही है,लेकिन यह भूल रहे हैं कि आम आदमी क्या सोच रहा होगा? दरअसल शिवसेना की छटपटाहट की मुख्य वजह राज्य और केंद्र में उनके मंत्रियों की लगाम खींचना है। भाजपा में शामिल होकर भी शिवसेना अलग-थलग पड़ी है। कुछ महीनों बाद मुंबई, नागपुर सहित अन्य महानगर पालिकाओं में चुनाव होने हैं। मुंबई में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने पहले ही ऐलान कर दिया है कि किसी गठबंधन की राह देखे बिना कार्यकर्ता चुनाव जीतने के लिए कमर कस लें। इसका सीधा असर राज्य की राजनीति पर पड़ा है। जहां तक बात नागपुर महानगर पालिका की है, तो शिवसेना पहले से ही अलग चुनाव लडऩे के मूड में है। इस हालत में भाजपा के साथ मनमुटाव पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को अपनी अलग राह तलाशने के लिए एक अवसर दे रही है। जबकि कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के नजरों में विवाद एक ‘राजनीतिक स्टंट’ माना जा रहा है। पहले आपस में खूब लडऩा और फिर जनता के पास अपने-अपने हिस्से के वोट मांगने जाना।
दोनों पार्टियों के बीच मतभेद सत्ता में आने के पहले से ही देखे जा रहे हैं। राज्य में सरकार बनाने में की गई देरी को जनता ने देख लिया है। वहीं शिवसेना की बार-बार धमकी को भी जनता ने आजमा लिया है। आखिर इन सभी घटनाक्रम से परिणाम कुछ भी नहीं निकल सका है। कुल मिलाकर एक ही बात सामने आई है कि दोनों पार्टियां खुद को ताकतवर दिखाना चाहती हैं। लेकिन यह भूल रहे है कि उनकी ताकत बेकार की बयानबाजी और विवाद से नहीं बल्कि जनता के सहयोग से है।
यह वही जनता है जो चुपचाप पूरे घटनाक्रम पर नजरें रखे हुए है। महानगर पालिकाओं के चुनाव में शिवसेना को भाजपा से विवाद में फायदा नजर आ रहा है। लेकिन अब जनता भी चतुर हो गई है। वैसे इन दिनों केवल भाजपा और शिवसेना में ही नहीं बल्कि यही स्थिति कांग्रेस और राष्ट्रवादी में भी बनी हुई है। राकां नेता प्रफुल पटेल ने पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण पर सीधा हमला बोल दिया है। उन्होंने पृथ्वीराज चव्हाण को नंबर वन दुश्मन करार दिया। इससे पहले राकां सुप्रीमो ने भी विधान सभा में हार के लिए कांग्रेस को ही जिम्मेदार ठहराया था। इसके उलट पिछले दिनों नागपुर जिले की जिम्मेदारी संभालने के बाद दिलीप वलसे पाटिल ने साफ कर दिया था कि कांग्रेस उनकी ‘प्राकृतिक मित्र’ है। फिलहाल ‘मुंह में राम और बगल में छुरी’ वाली राजनीति सभी पार्टियां कर रही हैं। जब कांग्रेस और राकां का सत्ता में न होते हुए भी ‘घमंड’ कायम है तो फिर भाजपा-शिवसेना तो केंद्र से लेकर राज्य में भी सत्ता में है, ऐसे में घमंड तो होना स्वभाविक है।