Published On : Tue, Feb 28th, 2017

“पेरिफेरल डेवलपमेंट चार्ज” देने वाले हिसाब नहीं माँग सकते

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NIT Nagpur

नागपुर: नागपुर सुधार प्रन्यास के मुख्य अधीक्षक अभियंता सतीश पुरुषोत्तम पासेबंद ने नागपुर टुडे से एक खास बातचीत में कहा कि अप्रैल २०१७ में नासुप्र का कार्यभार मनपा को सौंप दिए जाएंगे। अब नासुप्र के अधीनस्थ लेआउट, परिसर आदि का विकास मनपा करेंगी।

श्री पासेबंद ने आगे कहा कि नासुप्र ने आजतक जिन-जिन बिल्डर या लेआउट धारकों से पेरिफेरल डेवलपमेंट चार्ज वसूला है, उन्हें यह जानने का हक़ नहीं कि उस दिए गए पैसों का क्या किया गया। उस पेरिफेरल डेवलपमेंट चार्ज से देने वाले के परिसर या लेआउट का विकास किया जाना जरुरी नहीं है। पेरिफेरल डेवलपमेंट चार्ज “एमआरटीपी एक्ट” के तहत वसूला जाता है।

उल्लेखनीय यह है कि राय उद्योग समूह द्वारा कोराडी रोड स्थित रजत हाइट्स परिसर के नाम पर वर्ष २००५ में ३४ लाख रूपए पेरिफेरल डेवलपमेंट भरा गया था। इस परिसर में पिछले ११ साल से नासुप्र ने कोई विकास कार्य नहीं किया और न ही रहवासी व व्यावसायिक संकुल निर्माण के दौरान कोई निरिक्षण किया। बिल्डर ने मंजूर नक्शा को दरकिनार कर अपने मनमर्जी से वैध-अवैध आधे-अधूरे निर्माणकार्य किये। वर्ष २००९ से उक्त बिल्डर ने खरीददारों को फ्लैट वितरित कर दिया और फ्लैट धारक रहने भी लगे।

वर्ष २०१५ से फ्लैटधारकों ने नासुप्र की चक्कर काटने शुरु किए तो नासुप्र का उत्तर नागपुर विभाग ने “एसटीपी” और संकुल परिसर से लगी बरसाती नाले की दीवार सह सीवरेज लाइन बिछाने का प्रस्ताव बनाया और संकुल में रहने वालों से ही ७ लाख रूपए अतिरिक्त मांगे। तत्कालीन सभापति श्याम वर्धने के हस्तक्षेप से यह मामला रुका। आज भी पेरिफेरल डेवलपमेंट चार्ज के नाम पर नासुप्र का उत्तर नागपुर विभाग और श्री पासेबंद नाले की दीवार खड़ी करने पर तुले हुए हैं। जबकि नासुप्र नक़्शे में नाला अस्तित्व में नहीं है।

श्री पासेबंद का कहना है कि संकुल किनारे की तरफ नाला पर दीवार खड़ी कर देते हैं। अगर यह किया गया तो बरसात में दूसरे किनारे का सम्पूर्ण परिसर डूब जायेगा।

श्री पासेबंद ने यह भी कहा कि भले ही “आरटीआई” के तहत पेरिफेरल डेवलपमेंट चार्ज” से देने वाले परिसर की विकास की बात कही गई हो, इस आधार पर जिसे जहाँ जाना है जाये, हम अपना जवाब मांगकर्ता को लिखित रूप से दे देंगे।

जब ३४ लाख रूपए लेने वजह पूछने पर श्री पासेबंद ने जवाब दिया कि “एमआरटीपी” एक्ट पढ़ लो। उन्होंने यह भी कहा कि उक्त संकुल परिसर में सीवरेज लाइन बिछाने का काम जारी है, इसी लाइन से आसपास के अन्य सीवरेज लाइन बिछाया जायेगा, भले ही उन्होंने कोई शुल्क नासुप्र को नहीं दिए हो। श्री पासेबंद ने सफ़ेद झूठ कहते हुए जानकारी दी कि उक्त संकुल परिसर मनपा को हस्तांतरित कर दिया गया है, जबकि ऐसा कुछ हुआ ही नहीं है। मंजूर नक़्शे के हिसाब से आधे-अधूरे निर्माणकार्य सह अधूरी सुविधा मुहैया कराने वाले बिल्डर/लेआउट धारकों पर कार्यवाई करने संबंधी नासुप्र कोई ठोस पहल नहीं करती, लेकिन उसी बिल्डर/लेआउट धारक को उनके अन्य प्रकल्प को मंजूरी लगातार देती आ रही है।

३ साल से अधूरी है नासुप्र की “बैलेंस शीट”
नागपुर के आरटीआई कार्यकर्ता संदीप अग्रवाल ने आरटीआई के तहत विगत माह नासुप्र से जानकारी मांगी थी कि नासुप्र प्रशासन द्वारा किये गए “फिक्स्ड डिपाजिट” की जानकारी दी जाये,तो नासुप्र ने अग्रवाल को लिखित जानकारी दी कि पिछले ३ साल से उनकी बैलेंस शीट अधूरी है और प्रशासन की फिक्सड डिपाजिट की जानकारी नहीं है, जबकि सच्चाई यह है कि नासुप्र के पास फिक्स्ड डिपाजिट थी,वह भी ५०० से १००० करोड़ के मध्य। जिसे विभिन्न प्रकल्पों के लिए तोड़ा गया है।

यह भी कड़वा सत्य है कि जब मनपा को नासुप्र हस्तांतरित होगी तब तक नासुप्र के खजाने में मामूली रकम ही रह जाएगी।