Published On : Mon, Sep 24th, 2018

अधिकारी बेचारा काम का मारा

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नागपुर सरकारी दफ़्तर में सरकारी बाबुओं के कामकाज सवाल उठते रहते है। टेबल पर फ़ाइलों के अम्बार को देख कामचोरी का तमगा लगा देना समाज की आदत है। ये हाल आम तौर पर छोटे-मोटे कर्मचारियों के साथ होता है लेकिन रसूखदार और उच्च पदों पर बैठे अधिकारी अपनी जिम्मेदारी से मुक्त ही नहीं हो पाते। कलेक्टर -कमिश्नर के पद पर बैठे शक्श को 24 घंटे चौकन्ना रहना पड़ता है क्यूँकि उनके पास जो कुर्सी है वहाँ बैठकर लिए गए फ़ैसले का असर सब पर होता है। लेकिन सवाल है कि एक जिम्मेदार आदमी कितनी जिम्मेदारी को उठाने की काबिलियत,इच्छाशक्ति और ताकत रखता है। इन पदों पर बैठे आदमी से एक गलती कई लोगों को प्रभावित रखती है। इसलिए कोशिश होती है की काम शांति और बिना तनाव के हो,काम के घंटे तय है सरकारी नियम कहता है की 8 घंटे काम करना है। मगर इन सब बातों और तर्क नागपुर के जिलाधिकारी पर लागू नहीं होते। जिलाधिकारी जैसे पद की जिम्मेदारी संभाल रहे अश्विन मुदगल जो जिले में पांच प्रमुख पदों की जिम्मेदारी संभाल रहे थे उन पर एक और जिम्मेदारी रसीद कर दी गई है। ऐसे हालत में सिर्फ और सिर्फ जिलाधिकारी के कॉन्फिडेंस और काम करने की शक्ति की दाद ही दी जा सकती है।

जिलाधिकारी,नागपुर सुधार प्रन्यास चेयरमैन,महानगर विकास प्राधिकरण आयुक्त,एमएडीसी के सहव्यवस्थापक के साथ जिला मध्यवर्ती बैंक का कामकाज अश्विन मुदगल इन दिनों संभाल रहे है। ये सभी जिम्मेदारी अहम है काम के घंटे तय बावजूद इसके वो कैसे इन जिम्मेदारियों को संभालते होंगे ये दिलचस्प है। ये सब तो ठीक था कि भारतीय प्रशासनिक सेवा केंद्र मसूरी में ट्रेनिंग लेने गए विभागीय आयुक्त संजीव कुमार की जवाबदारी भी सरकार ने मुदगल के कंधे पर डाल दी है।

व्यवस्था यह है की अहम पदों पर जितने लोग होंगे काम उतनी तेज गति से होगा। लेकिन नागपुर के हालत को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है की सरकारी विभागों में काम किस तेजी से होता होगा। क्या सच में इतनी जिम्मेदारी का बोझ ढोने वाला व्यक्ति जनता-जनादर्न के साथ सही न्याय कर पा रहा होगा ? विशेष बात तो यह है की ये सब मुख्यमंत्री के अपने शहर में हो रहा है।