नागपुर: राज्य विधानमंडल का मानसून सत्र खत्म हो गया, लेकिन इस बार सत्र के दौरान मानसून ने जो तेवर दिखाए और उससे सिटी की जो छवि खराब हुई उससे निपटने के लिए अब निगमायुक्त वीरेन्द्र सिंह को ही कमर कसनी होगी. ऐसा कयास लगाया जा रहा है कि सोमवार के बाद निगमायुक्त सिटी की समस्याओं को सुलझाने के लिए नये तेवर के साथ मैदान में उतरेंगे.
कैसे खत्म होगा जगह-जगह जलभराव
निगमायुक्त को सबसे पहले तो यह सुनिश्चित करना होगा कि 6 जुलाई की जिस बारिश ने महाराष्ट्र की उपराजधानी का नाम जर्जर सिविक इन्फ्रास्ट्रक्चर वाली सिटी में डाल दिया है, उस दाग को कैसे धोया जाए. संविधान चौक स्थित डा. आम्बेडकर की प्रतिमा के पीछे वाली निजी बिल्डिंग का नाले पर जो अतिक्रमण है, जिसके कारण विधानभवन के अंदर जलजमाव हुआ, क्या इसकी जानकारी वीरेन्द्र सिंह को नहीं है. विधानभवन के 3 कि.मी. परिसर में यानी सिविल लाइन्स में जो नाले हैं, क्या उनकी सफाई सचमुच की गई.
वह सफाई हो जाती तो विधानभवन में पानी भी जमा नहीं होता और ‘इज्जत’ भी नहीं जाती. सिटी के इतिहास में पहली बार एयरपोर्ट के सामने वर्धा रोड पर जलजमाव हुआ. इसका कारण मनपा को पता लगाना पड़ेगा. क्या मेट्रो वालों ने अपने निर्माण कार्य के चक्कर में वहां की स्ट्राम वाटर ड्रेनेज वाली लाइन को ध्वस्त करके उसमें सीमेन्ट भर दिया है. झांसी रानी चौक तो हमेशा से ही जलजमाव का केन्द्र रहता है, लेकिन रेलवे स्टेशन के भीतर और बाहर जो पानी जमा हो गया, उसका क्या कारण है?
सीवरेज लाइन की सफाई
मेट्रो और सीमेन्ट रोड के निर्माण कार्य के चक्कर में सीवरेज लाइन को तहस-नहस किया जा रहा है और जो इनके प्रकोप से बची हुई भी हैं, उनकी आखिरी बार सफाई कब हुई थी, इसकी जानकारी शायद मनपा अफसरों को भी नहीं होगी. यही कारण है कि निगमायुक्त को सीवरेज सफाई पर अधिकारियों से अपटेड डाटा ही मांगना पड़ेगा. सीमेन्ट सड़कों पर भी पानी निकासी की समस्या किसी गंभीर चुनौती से कम नहीं है. ऐसे में प्रशासन को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि पूर्व मनपा आयुक्त टी. चंद्रशेखर ने जिस तरह सड़कें चौड़ी करते समय स्ट्राम वाटर ड्रेनेज की लाइनें डलवाईं थीं, वही सीमेन्ट सड़कों के किनारे भी बनी हैं या नहीं.
उड़ रही धूल, उचट रही गिट्टी
सिटी में इन दिनों एक नई समस्या नजर आ रही है. भारी बारिश के कारण डामर रोड की धज्जियां उड़ गईं हैं. सड़कों पर ऐसे थिगड़े लग गए हैं कि वाहन चलाना भी दूभर हो गया है. बारिश नहीं होने की स्थिति में उखड़ी रोड की गिट्टियां उचटकर कई लोगों को जख्मी कर चुकी हैं. दूसरी ओर जब सड़क सूखी रहती है तो धूल इतनी ज्यादा उड़ती है, जैसे किसी सीमेन्ट फैक्टरी के एरिया में काम चल रहा हो. इसका इंतजाम भी मनपा प्रशासन को तुरंत ही करना होगा.
हाईकोर्ट के हंटर का न करें इंतजार
मनपा प्रशासन को इन दिनों आदत पड़ गई है कि हर काम के लिए हाईकोर्ट की ओर मुंह ताकते खड़े रहता है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी धार्मिक अतिक्रमण में हीला-हवाला करने के कारण हाईकोर्ट ने हंटर लगाया था. यहां तक कि अधिकारियों का वेतन काटने तक की चेतावनी दी गई थी. हंटर के बाद प्रशासन हरकत में तो आया, लेकिन धर्मस्थल हटाने में उसका भेदभाव देखते हुए जनता में रोष बढ़ता जा रहा है. अब बाकी मुद्दों पर भी हाईकोर्ट के हंटर का इंतजार करने की बजाय खुद होकर मनपा को सिटी संभालने के लिए पहल करनी पड़ेगी. इतना ही नहीं खुद मनपा आयुक्त को आगे आकर सड़कों पर उतरकर हालात का जायजा लेकर युद्ध स्तर पर काम करना होगा.
समस्याओं की सुध लेने वाला कोई नहीं
सिटी इन दिनों एक अजीब से ‘डेवलपमेन्टल सिंड्रोम’ से गुजर रही है. मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस की सिटी और हैवीवेट कैबिनेट मंत्री नितिन गडकरी का गढ़ होने के कारण धड़ल्ले से इन्फ्रास्ट्रक्चर के काम चल रहे हैं. 2 मुख्य मार्गों पर मेट्रो ट्रेन का निर्माण चल रहा है तो कई जगह सीमेन्ट रोड की खुदाई हो रखी है. कहीं सड़कें चौड़ी हो रही हैं तो पारडी जैसे इलाके में फ्लाईओवर के लिए सड़क के बीच खुदाई की गई है. बहुत कुछ एक साथ हो रहा है, जिस कारण इतनी किचकिच हो गई है कि न ही विभागों को कुछ समझ में आ रहा है और न ही अधिकारियों को.
‘राजा बोले-दाढ़ी हाले’ वाली कहावत चरितार्थ हो गई है. देवेन्द्र-गडकरी आते हैं तो अफसर कतार में खड़े हो जाते हैं और उनके जाते ही फिर सब कुछ भगवान भरोसे हो जाता है. फालोअप लेने के लिए कोई ऐसा नेतृत्व दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा जो विकास कार्यों का सही नियोजन कर सके. ऐसा विकास भी लोगों को हजम नहीं हो रहा, जिसका लाभ भविष्य में जब होगा तब होगा, लेकिन तात्कालिक रूप से उसका नुकसान ही ज्यादा हो रहा.