नागपुर : मराठा आरक्षण का आंदोलन के प्रेरणास्त्रोत एक तीर से कई निशाने साधने के फ़िराक में मदमस्त है. वही सत्ताधारी दिग्गजों का मानना है कि इस आंदोलन से न सरकार और न मुख्यमंत्री को कोई खतरा है. लेकिन फिर भी मराठा आंदोलन का बढ़ता स्वरुप इन दिनों सियासत के गलियारों में गर्मागर्म चर्चा का विषय बनी हुई है. ३० सितंबर को नागपुर विभागीय मराठा समाज का आरक्षण हेतु आंदोलन नियोजित है.
राज्य में आम चर्चा है कि मराठा आरक्षण और कोपर्डी बलात्कार कांड के बाद जिस प्रकार से मराठा नेताओं की सियासत शुरू हुई, यह सियासत मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के लिए आफत बन गई है. मराठा समाज द्धारा सम्पूर्ण राज्य में लाखों की संख्या में मोर्चा निकाला जा रहा है. इस मोर्चे में एनसीपी के साथ काँग्रेस के मराठा नेताओं के अलावा भाजपा के नेता व प्रदेश भाजपाध्यक्ष राव साहेब दानवे का भी समावेश है. इस मोर्चे को भाजपा मंत्री चंद्रकांत दादा पाटिल और विनोद तावड़े पीछे से हवा दे रहे है.
यह भी कड़वा सत्य है कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भाजपा प्रधानमंत्री और राष्ट्रीय अध्यक्ष के शह पर पूर्व में मुख्यमंत्री पद के सभी दावेदारों (पंकजा मुंडे, एकनाथराव खडसे, विनोद तावडे) का बुरी तरह पर क़तर कर ठंडा कर दिया. अब मराठा आरक्षण के बहाने सभी एक होकर आरक्षण के मांगकर्ता के प्रेरणास्त्रोत के सलाह पर समर्थन कर मुख्यमंत्री फडणवीस की हवा निकालने में भिड़े है. इन तिकड़ी के साथ दानवे की वजह से मुख्यमंत्री फ़िलहाल अड़चन में है.
कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष अशोकराव चौहाण सह एनसीपी के मराठा नेता यह कहते फिर रहे है कि मराठा आरक्षण का आंदोलन सर्वदलीय है लेकिन यह भी चाहत है कि युति के मंत्री एवं मराठा नेता चंद्रकांत दादा पाटिल को मुख्यमंत्री बनाया गया तो आंदोलन की तीव्रता कम हो सकती है.
उल्लेखनीय यह है कि दरअसल उक्त कोपर्डी बलात्कार कांड की आड़ में मौकापरस्त शरद पवार एक तीर से कई निशाना साधना चाह लिए राज्यभर में मराठा समाज का शक्ति-प्रदर्शन कर राज्य की राजनीति में पुनः उबाल लाकर खुद व खुद की पार्टी को मजबूती देने हेतु सक्रीय है.
वर्ष २०१८ में राष्ट्रपति का चुनाव है, इस बार उक्त आंदोलन की आड़ में खुद को राष्ट्रपति का उम्मीदवार सत्तापक्ष द्वारा घोषित करवाना पहली चाहत है.
दूसरी चाहत वर्ष २०१८ में पृथक विदर्भ का समर्थन कर विदर्भ में भाजपा की सत्ता और शेष महाराष्ट्र में एनसीपी की सत्ता की मंशा लिए सक्रिय है. पृथक विदर्भ के समर्थक भाजपाई भी थे और सत्ता पाने के बाद पृथक विदर्भ न होना, भाजपा के लिए कई राजनैतिक संकट खड़ा कर देंगा, इसलिए अगले विधानसभा चुनाव के पूर्व पृथक विदर्भ करना भाजपा के लिए स्वास्थ्यवर्धक साबित हो सकता है.
उक्त योजना को साकार करने के लिए एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार “मराठा’ आरक्षण के लिए आंदोलन दिनों-दिन तीव्र करते जा रहे है,जब तक उनके मनमाफिक राजनैतिक समझौता नहीं होता.
वही यह भी साफ़ है कि उक्त आंदोलन में सहयोग करने वालों की आँख में धूल झोंक कर वर्त्तमान मुख्यमंत्री फडणवीस को हटाकर किसी और को मुख्यमंत्री बनाने से शरद पवार का कोई हित सधने वाला नहीं है. यह तो समय ही बतायेगा कि किसकी आड़ में इस आंदोलन से किसका भला होने वाला है, यह तय है कि आम मराठा समाज के नागरिको को कोई फायदा नहीं होने वाला है?
राज्य में ओबीसी नेतृत्व ध्वस्त करने का षड्यंत्र
देश समेत राज्य में ओबीसी समाज बड़ी प्रभावी संख्या में है, लेकिन इनके नेतृत्वकर्ताओं में एकता नहीं होने के कारण समाज बिखरा हुआ है. राज्य में स्वर्गीय गोपीनाथ मुंडे और छगन भुजबल ओबीसी नेताओं में अग्रणी थे. मुंडे के निधन के बाद एकनाथराव खडसे और भुजबल सक्रीय थे. भाजपा नित के कारण खडसे को मुख्यधारा से अलग कर घर बैठा दिया गया तो तय रणनीति के आधार पर भुजबल को जेल भेज दिया गया. जबकि भुजबल जैसा गुनाह कई एनसीपी नेताओं ने किया था. इसके बाद से ओबीसी नेतृत्व राज्य में राजनैतिक रूप से समाप्त सी हो गई थी कि स्वर्गीय मुंडे की जाबाज व हरफनमौला पुत्री व युति सरकार में मंत्री पंकजा मुंडे ने दो दिन पूर्व अस्पताल पहुँच भुजबल “काका” से मुलाकात कर अपने पारिवारिक सदस्य होने का अहसास दिलवाया वही उत्सुक जनता-जनार्दन को संदेशा दिया की, आज भी ओबीसी नेता भले ही किसी भी पक्ष का हो, उसके क़द्रदान राज्य में है.पंकजा के पहल को शिवसेना ने सराहा और भुजबल से दुरी बनाने वालों को पंकजा से नसीहत लेने की सलाह क्या दी कि भुजबल से मिलने वालों की कतार सी लग गई, सभी खुद को भुजबल समर्थक दर्शाने में जूझे हुए है.
– राजीव रंजन कुशवाहा
