Published On : Mon, Aug 29th, 2022
By Nagpur Today Nagpur News

नागपुर विश्वविद्यालय से ‘MKCL’ का करार रद्द

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– उच्च व तकनीकी शिक्षणमंत्री ने 8 दिनों में जाँच अधिकारी से रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया

नागपुर -राष्ट्रसंत टुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय ने कुछ महीने पहले MKCL के परीक्षा के काम में ठेका रद्द करने का फैसला किया है. मामले की जांच के लिए एक अधिकारी को नियुक्त करते हुए उच्च व तकनीकी शिक्षण मंत्री चंद्रकांत पाटिल ने उन्हें 8 दिनों के भीतर रिपोर्ट देने का भी आदेश दिया।

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कुलपति डॉ. सुभाष चौधरी ने फिर एमकेसीएल को परीक्षा का ठेका देने का फैसला किया। इस बीच विश्वविद्यालय द्वारा रोके गए साढ़े तीन करोड़ रुपये वापस करने का निर्णय लिया गया. सीनेट सदस्यों द्वारा इस निर्णय का विरोध करने के बाद भी कुलपति ने स्वयं जिम्मेदारी लेते हुए उन्हें ठेका दे दिया। साथ ही प्रथम वर्ष की परीक्षा से लेकर मार्कशीट देने तक का काम दिया। हालांकि, कंपनी पांच महीने के लिए प्रथम वर्ष के परिणाम पोस्ट करने में विफल रही। इस बीच गुरुवार को उक्त मामले का विरोध करते हुए विधायक अभिजीत वंजारी ने विधान परिषद में सवाल उठाया और जांच की मांग की।

इसके अलावा विधायक प्रवीण दटके ने एमकेसीएल का भुगतान करने के लिए छात्रों की फीस बढ़ाने का मुद्दा भी उठाया। उच्च एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री चंद्रकांत पाटिल ने पूरे मामले की जांच का वादा किया।

उक्त मामले को लेकर उन्होंने रविवार को यूनिवर्सिटी में रिजल्ट और ‘एमकेसीएल’ के मुद्दे पर बैठक की. इस समय विवि की ओर से ‘एमकेसीएल’ का काम तत्काल बंद करने का आदेश दिया गया। साथ ही ‘प्रोमार्क’ कंपनी को अगले छह महीने के लिए एक्सटेंशन दिया गया था। पूरे मामले की जांच के लिए एक उच्च स्तरीय समिति नियुक्त की जाएगी और यह समिति आठ दिनों के भीतर अपनी रिपोर्ट देगी। इस बैठक में विधायक एड. अभिजीत वंजारी, विधायक प्रवीण दटके, विष्णु चांगड़े, शिवानी दानी समेत विश्वविद्यालय के अधिकारी मौजूद रहे।

कुलपति डॉ. चौधरी अड़चन में
चंद्रकांत पाटिल की बैठक में एक गंभीर मामला सामने आया कि परीक्षा विभाग ही ‘एमकेसीएल’ को काम देने से अनभिज्ञ है. तो क्या कुलपति ने परस्पर ‘एमकेसीएल’ को काम दिया ?
इस तरह की आशंका जताई जा रही है। चंद्रकांत पाटिल ने भी आश्वासन दिया कि दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। साथ ही टेंडर प्रक्रिया व अन्य लेन-देन की जांच के आदेश दिए। इसलिए ‘एमकेसीएल’ के मामले में कुलपति डॉ. चौधरी के मुश्किल में पड़ने की आशंका है।

उल्लेखनीय यह है कि विश्वविद्यालय में 2016 तक परीक्षा कार्य की जिम्मेदारी ‘एमकेसीएल’ को दी गई थी। हालांकि, समझौते के अनुसार विश्वविद्यालय को सेवाएं प्रदान नहीं करने के लिए एमकेसीएल को दोषी ठहराया गया था। दिलचस्प बात यह है कि एमकेसीएल द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं की बड़ी मात्रा के कारण विश्वविद्यालय ने 2014 और 2016 के बीच साढ़े तीन करोड़ के बिल को रोक दिया था। इसके अलावा एमकेसीएल को 2016 से परीक्षा कार्य के लिए आयोजित निविदा प्रक्रिया में भी काली सूची में डाला गया था।

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