Published On : Thu, Dec 11th, 2014

नागपुर जिले की सरकारी स्वस्थ्य सेवा चौपट!

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  • विधानमण्डल ध्यानाकर्षण
  • सरकारी केन्द्रों से खदेड़े गए मरीजों से निजी अस्पतालों में मची लूट
  • सरकारी की नीतियाँ सही, अमल करने वाले अधिकारी  भर रहे हैं अपनी झोली
  • केन्द्रों पर तैनात डॉक्टर, कर्मचारियों की दादागिरी से मरीज परेशान
  • विज्ञापनों पर करोड़ों खर्च, केन्द्रों में दवाओं-सुविधाओं का घोर अभाव
  • मरीजों की कोई नहीं सुनवाई, खुद सरकार देखें जाकर सचाई

सवांदाता / निशांत ताकरखेड़े

नागपुर ग्रा.। मरीजों की सेवा ही सच्ची ईश्वर सेवा मानकर बाबा आमटे ने प्रत्येक मरीजों की मुफ्त सेवा की, फिर भी मरीज कह रहे हैं अब निजी अस्पताल लूटने का अड्डा बन गए हैं और सरकारी अस्पतालों में कोई सुविधाएँ नहीं दी जा रही हैं. ऐसी ही प्रतिक्रियाएँ चहुँओर से सुनने को मिल रही हैं. आम जनता को बीमारी का इलाज करवाना दिनोदिन महंगी पड़ रही है. इसका कारण निजी अस्पतालों में आने वाले खर्च सामान्य लोगों की पहुँच दूर की कौड़ी हो गई है. बड़ी बीमारियों से ग्रस्त मरीजों को निजी अस्पतालों में उपचार करवाना यानी कर्ज में घिर जाना है, ऐसी सोच अब सामान्य लोगों में बनने लगी है. निजी अस्पतालों की संख्या बड़े पैमाने में बढऩे से ऐसे अस्पताल जरूरतमंद मरीजों की सेवा कम और पैसे कमाने वाली मशीन बन चुकने से सरकार सामान्य लोगों को भूल गई है.

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सरकारी अस्पताल ‘धोबी का कुत्ता, न घर का न घाट का’ कहावत को चरितार्थ करते नजर आ रहे हैं. मरीजों के प्रति सहानुभूति व सेवा का घोर अभाव देखा जा रहा है. कभी दवाएँ तो कभी डॉक्टर व कर्मचारी अपनी जगह नहीं मिलते. अस्पतालों में सुविधाओं के घोर अभाव से मरीजों की हालत खस्ता हो गयी है. ग्रामीण क्षेत्रों के अस्पतालों की परिस्थिति बहुत खराब है. सरकार द्वारा मरीजों के लिए विभिन्न योजनाएं संचालित की जाती हैं, परंतु वास्तविक रूप में ये योजनाएँ हवा में ही होती हैं, मरीजों तक पहुँच ही नहीं पातीं. गरीब जरूरतमंदों तक अस्पताल को आवंटित निधि का लाभ नहीं मिल पाता. योजनाओं के प्रचार के लिए विज्ञापन पर करोड़ों रुपये की निधि खर्च की जाती है. यदि यही निधि मरीजों के लिए उपयोग में लायी जाए तो इससे लाखों मरीजों को निश्चित रूप से लाभ मिलेगा. वहीं निजी अस्पतालों पर लूट-खसोट पर सरकार का नियंत्रण नहीं है. मरीजों से अनर्गल कई प्रकार की खर्च जोड़ कर रुपये ऐंठे जाते हैं. यहाँ के डॉक्टर करोड़ों के मालिक बन बैठे हैं.

सरकार की योजनाओं का लाभ गरीब लोगों तक पहुँचाने के लिए कड़े उपाय योजना कर निजी अस्पतालों से होने वाली लूट पर नियंत्रण व भय बनाना होगा. ऐसी माँग नागरिकों द्वारा की जा रही है. वर्तमान स्थिति में सम्पूर्ण जिले के स्वास्थ्य सेवा बुरी तरह लडख़ड़ा जाने व तालुका के गाँव-खेड़ा के स्वास्थ्य केन्द्र के प्रशिक्षित डॉक्टरों की अनुपस्थिति और दवाइयों से जरूरतमंद मरीजों को योग्य उपचार का लाभ नहीं मिलने के संकेत स्पष्ट देखे जा रहे हैं. ग्रामीण इलाकों में प्रसुति के लिए आने वाली महिलाओं के लिए केन्द्र सिरदर्द बनता जा रहा है. सीजरिंग की केन्द्र में व्यवस्था नहीं होने से उन्हें तत्काल निजी अस्पतालों की ओर रुख करना पड़ रहा है, जिससे उनकी जमा पूंजी निजी अस्पतालों द्वारा लूटा जा रहा है. वहीं इन स्वास्थ्य केन्द्रों में अप्रशिक्षित परिचारिकाएं काम पर लगी हुई हैं. उन कर्मचारियों के ताने मरीजों को अलग सहने पड़ते हैं. वहीं ज्यादातर केन्द्रों को परिचारिकाएँ संभाल रही हैं, जिसकी टोह सरकारी अफसर कभी लेने नहीं पहुँचते. वैद्यकीय अधिकारी सिर्फ अपनी ड्यूटी दोपहर तक निभा कर दूसरे पहर का कामकाज दूसरों को सौंप जाते हैं.

सरकार नागरिकों के स्वास्थ्य के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, पर अधिकारी व कर्मचारियों की निष्क्रियता से यह सेवा गरीब मरीजों तक नहीं पहुंँचती. यह एक कटु सत्य है. सरकारी योजनाओं में पल्स पोलियो, परिवार नियोजन, हाथी रोग, एचआईवी, क्षय रोग कार्यक्रमों के अलावा दूसरी सेवाओं से जरूरतमंद मरीजों को वंचित रहना पड़ता है. यही हाल हैं ग्रामीण क्षेत्रों के स्वास्थ्य सेवा का. ऐसी कई सतही समस्याओं के कारण आज मरीजों को जो स्वास्थ्य सेवाएँ मिलनी चाहिए, उन्हें नहीं मिल रही हैं. इसके लिए सरकार को निचले पायदान पर ‘स्क्रू टाइट’ करने की जरूरत पर पीडि़त ग्रामीण जन बल दे रहे हैं. अब देखना है यह अव्यवस्था का आलम को हमारे नए मुख्यमंत्री सुधार पाने में सक्षम हो भी पाते हैं या नहीं?

Representational Pic

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