जिनकी बुद्धि कभी एकाग्र नहीं वह देश , धर्म , राष्ट्र समाज की सेवा नहीं कर सकता ?
गोंदिया। गुरु आचार्य विशुद्ध महाराज जी के शिष्य जैन मुनि श्री प्रणीत सागरजी तथा मुनि श्री निर्मोह सागरजी का गोंदिया नगर आगमन हुआ इस अवसर पर स्थानीय गोरेलाल चौक स्थित दिगंबर जैन मंदिर में बुधवार 21 दिसंबर को आयोजित पत्र परिषद के दौरान अपने सुविचार व्यक्त करते हुए प्राणित सागर जी ने कहा- देश में आत्महत्या बंद हो और देश व्यसन मुक्त हो तथा देश में शाकाहार आए इन्हीं उद्देश्यों को लेकर हम मार्गदर्शन और जन जागरण कर रहे हैं।
मानव जीवन बहुत ही सरल है जीवन में तनाव तब रहता है जब अपेक्षाएं होती है ? जिन- जिन के जीवन में अपेक्षाएं हैं वहां वहां तनाव है , अपेक्षा की जो उपेक्षा करता है वह कभी आत्मघाती नहीं हो सकता ?
आत्महत्या से बचना है तो मनोविज्ञान आना चाहिए ?
मुनि श्री प्रणित सागर जी ने कहा- आज राजस्थान के कोटा से लेकर समूचे देश में छात्रों और बच्चों में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ रही है जो कि बेहद चिंताजनक है ।
आत्महत्या से बचना है तो मनोविज्ञान आना चाहिए ?
हर माता-पिता अपने बच्चों की शक्तियां उनकी कमजोरियां तथा उनके पास कौन-कौन से अवसर हैं और उसे किन-किन बातों से डर है इस बात को समझना होगा।
बच्चों को भी अपनी शक्तियों का अवलोकन करना चाहिए तो उनके मन में आत्महत्या का विचार नहीं आएगा।
आपको आपकी योग्यता का नहीं पता तो आप अपेक्षा करेंगे और जहां अपेक्षा करेंगे और अपेक्षा पूरी नहीं होगी तो वहां आपके मन में हीन भावना जागृत होगी और आत्महत्या के विचार उत्पन्न होंगे।
अगर आपके पास शक्ति है , अवसर भी है लेकिन आपके मन में डर ( संकोच) है तब भी आप अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकते ?
आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण बनता है मोबाइल
मुनि श्री प्रणित सागर जी ने कहा- मेरा ऐसा मानना है कि आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण ही मोबाइल है ?
अगर अभिभावक चाहते हैं कि बालक के मन में आत्महत्या का भाव ही उत्पन्न ना हो तो 25 साल तक बालक- बालिकाओं को मोबाइल का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए ।
स्कूल कॉलेज जाना आना है तो संपर्क सूत्र के लिए कीपैड मोबाइल दिया जाए , एंड्राइड फोन उसको बिल्कुल भी न दिया जाए ? यह उपाय करने से निश्चित तौर पर मेरा मानना है कि देश में आत्महत्या रुकेगी।
परिवार में आत्महत्या रोकना है तो घरों से घातक शस्त्र और अग्नियास्त्र हटा दो
मुनि श्री ने कहा- इसे विडंबना नहीं तो और क्या कहें कि लोगों ने घरों में शस्त्र और अग्नेयास्त्र रखना शुरू कर दिए हैं।
अगर आत्महत्या से परिवार को बचाना है तो इस तरह के घातक शस्त्र और अग्नि अस्त्र रखना ही नहीं चाहिए उसे हटा देना चाहिए।
अभिभावकों को व्यस्तता के चलते पता ही नहीं चलता कि बच्चा कहां जा रहा है , मोबाइल में क्या सर्च कर रहा है, कहां से आ रहा है ?
यहीं से बच्चे को विषय मिलता है फिर आत्महत्या का विचार आता है और घर में रखा अग्नि अस्त्र ही उसकी मौत का कारण बन जाता है।
हमने बालक- बालिका को जन्म नहीं दिया था हमने वासना को जन्म दिया था ?
मुनि श्री प्रणित सागर जी ने कहा- इस संसार में जो बालक हैं उन्हें जन्म दिया नहीं गया है , उनका जन्म हो गया है ?
हमने बालक- बालिका को जन्म नहीं दिया हमने वासना को जन्म दिया था और वह शिशु अपने पूर्व जन्म के पुण्य के नियोग से संसार में आ गया और हमने उन्हें बता दिया कि अब जो भी है बेटा , हम तुम्हारे हैं और तुमको हमारे आदेश को मानना है।
मुनि श्री ने कड़वे वचन रखते हुए कहा- मेरा ऐसा मानना है कि अगर किसी बालक- बालिका को अपने जीवन में उत्थान करना है तो सबसे पहले अपने माता-पिता को छोड़ना होगा ?
जीवन का मूल मंत्र , प्रत्येक जीव है स्वतंत्र ? सबसे पहले यह सिखाओ मुनि श्री बोले – हमने अपने माता पिता को छोड़कर नहीं आए क्या ?
आपको विश्व का कल्याण करना है तो सबसे पहले अपने परिवार वालों से दृष्टि हटानी पड़ेगी। क्योंकि परिवार में दो या चार हैं लेकिन विश्व में 200 या 400 करोड़ है।
माता-पिता को यह समझना चाहिए कि तुम हमारे बेटे नहीं हो , विश्व के बेटे हो , देश के बेटे हो , देश का कल्याण करना है तुमने।
हर बच्चे को हर समय हमें संस्कारों से परिपूर्ण लक्ष्य देना पड़ेगा ?
जितने नहीं रहते हैं व्यस्त वो रहते हैं अपने जीवन से त्रस्त ?
मानव की बुद्धि का व्यस्त होना आवश्यक है जितने व्यस्त नहीं रहते उन्हीं में आत्महत्या के भाव जागृत होते हैं।
पत्र परिषद से पूर्व कार्यक्रम की प्रस्तावना रखते हुए पूर्व विधायक राजेंद्र जैन ने दोनों मुनि श्री के विषय में जानकारी देते कहा- गुरु आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज के दोनों ही शिष्य हैं तथा इन्होंने सामान्य आदमी तक अपनी बात पहुंचाने के लिए कई ग्रंथ लिखे हैं।
मुनि श्री प्रणित सागर जी का जन्म 1984 इंदौर में हुआ।2013 में 29 साल की आयु में गुरु दीक्षा ली , मुनि श्री ने एमबीए , एम.काम और चार्टर्ड अकाउंटेंट की एग्जाम क्लियर की है तथा घर परिवार त्याग दिया , दिगंबर अवस्था में भ्रमण कर रहे हैं और 24 घंटे में जैन मुनि श्री एक ही बार आहार करते हैं।
मुनि श्री निर्मोह सागरजी मध्यप्रदेश के पन्ना जिले के रहने वाले हैं 1975 में उनका जन्म हुआ, आचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज से उन्होंने दीक्षा ली और देश व्यसन मुक्त हो , देश में आत्महत्या बंद हो , सत्य अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए सामान्य भाषा में जन जन तक अपना संदेश पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैैं।
रवि आर्य