Published On : Wed, May 17th, 2017

‘मिशन -जीने दो’ रोकेगी 10वीं और 12 वीं के छात्रों की आत्महत्या

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नागपुर: 
जल्द ही दसवीं और बारवीं कक्षा के रिजल्ट आनेवाले है. जिसके कारण विद्यार्थी समेत परिजनों में भी बेचैनी देखी जा रही है. रिजल्ट के दिनों में विद्यार्थियों को अतिरिक्त तनाव सहन करना पड़ता है. ऐसे में रिजल्ट में कम अंक आने पर कई बार कुछ विद्यार्थी आत्महत्या जैसे घातक कदम भी उठा लेते हैं. विद्यार्थियों को ऐसी सोच से रोकने और अभिभावकों में जागरूगता लाने के उद्देश्य से स्वयं सामाजिक संस्था की ओर से ‘ मिशन -जीने दो ’ की शुरुवात की गई. इस दौरान तिलक पत्रकार भवन में संस्था की ओर से पत्र परिषद का आयोजन किया गया था. जहां स्वयं सामाजिक संस्था के अध्यक्ष विशाल मुत्तेमवार साथ ही शहर के प्रसिद्ध करियर काउंसिलर डॉ. युगल रायलु व डॉ नरेंद्र भुसारी उपस्थित थे.

पत्रकारों को संबोधित करते हुए विशाल मुत्तेमवार ने बताया कि अभिभावकों की ओर से बच्चों को ज्यादा परसेंटेज के लिए दबाव डाला जाता है. जिसके कारण बच्चे तनाव में आ जाते हैं और कई बार आत्महत्या की ओर कदम बढ़ाते हैं. ऐसे बच्चों को उचित मार्गदर्शन की जरूरत है. जिससे की वे आत्महत्या जैसे गंभीर विचार अपने मन में न लाएं. ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए ‘मिशन -जीने दो’ की शुरुवात की गई है. यह मिशन बुधवार से शुरू किया गया है जो गुरुवार 18 मई से शहर के गार्डन में, चौराहों पर फलक के माध्यम से अभिभावकों को जागरुक किया जाएगा. इस दौरान बच्चों के अभिभावकों से प्रतिज्ञापत्र पर हस्ताक्षर अभियान के तहत उनको भी जानकारी दी जाएगी. विशाल मुत्तेमवार ने बताया कि विद्यार्थियों को काउंसलिंग की जरुरत है और वे विद्यार्थियों के समाचारपत्र ‘माय करिय’ के माध्यम से भी उनका मार्गदर्शन करते हैं. इस अभियान का लक्ष्य विद्यार्थियों की बढ़ती आत्महत्या को रोकना है. 4 जून को शहर में स्वयं सामाजिक संस्था की ओर से रैली का आयोजन भी किया जाएगा. जिसके समय की जानकारी एक तारीख को दी जाएगी. उन्होंने विद्यार्थियों की बढ़ती आत्महत्या को लेकर कहा कि राष्ट्रीय अपराध सांख्यिकीय के रिकॉर्ड बताते हैं कि देश की कुल आत्महत्याओ के मुकाबले विद्यार्थियों का प्रमाण 6.7 प्रतिशत है. 2015 में देश में 8 हजार 952 विद्यार्थियों ने आत्महत्या की थी. यह संख्या 2014 में 8 हजार 68 थी. देश में सबसे ज्यादा आत्महत्या 2015 में हुई थी. महाराष्ट्र में 2015 में कुल 1 हजार 230 विद्यार्थियों ने आत्महत्या की थी.

इस दौरान डॉ. युगल रायलु ने कहा कि कट थ्रू कॉम्पिटशन की अब शुरुवात हुई है. जिससे समाज के वातावरण में बदलाव की जरूरत है. अभिभावक अपने बच्चों को बहुत अच्छा बनाना चाहते हैं. लेकिन सभी बच्चे विभिन्न है. सभी एक जैसे प्रतिभा के धनी नहीं हो सकते. उन्होंने कहा कि पढ़ाई के तनाव को लेकर या परसेंटेज कम आने को लेकर विद्यार्थी की आत्महत्या की घटना छोटी घटना नहीं होती. यह एक बड़ी घटना है. कई बार आत्महत्या करनेवाले विद्यार्थी अपने माता पिता की इकलौती संतान होती है. उन्होंने बताया कि बच्चों अंकों को लेकर उसके माता पिता या उसके आस पास के लोग उसे परेशान न करें. छात्र की रुचि के मुताबिक उसे अपना जो भी भविष्य बनाना है, उसको वह करने दें. उन्होंने कहा कि भारत भर के 200 जगहों पर जाकर उन्होंने विद्यार्थियों की काउंसलिंग की है. उन्होंने सरकार से मांग की है की सभी विद्यालय और महाविद्यालयों में कौंसिलर होना चाहिए. जिससे की आत्महत्या का प्रमाण कम हो.

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डॉ.नरेंद्र भुसारी ने पत्र परिषद में जानकारी देते हुए बताया कि दसवीं और बारहवीं कक्षा के बाद अभिभावकों को ऐसा लगता है कि आईआईटी, एनआईटी , इंजीनियरिंग, मेडिकल में बच्चे को प्रवेश मिल गया तो बच्चे की जिंदगी बन गई. यह सोच ही गलत है. उन्होंने बताया कि देश में आईएएस अधिकारी बननेवाले 40 प्रतिशत आर्ट्स के विद्यार्थी होते है. उन्होंने भारत की आईएएस टॉपर टीना डाबी का उदाहरण देते हुए बताया कि उन्होंने इतिहास विषय लेकर देश में टॉप किया है. डॉ. भुसारी ने बताया कि पहले बच्चों को एप्टिट्यूड टेस्ट और कॉउंसलिंग की जरुरत है और उसके बाद अभिभावकों को यह निर्णय लेना चाहिए की अपने बच्चों को वे किस क्षेत्र में भेजें. इस दौरान स्वयं सामाजिक संस्था के सभी सदस्य प्रमुख रूप से मौजूद थे.

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