Published On : Sun, Aug 5th, 2018

मेयो में एक ही दिन 3 कॉक्लियर ईम्प्लांट

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नागपुर: इंदिरा गांधी शासकीय वैद्यकीय महाविद्यालय व अस्पताल में शनिवार को एक साथ 3 मूकबधिर बच्चों में कॉक्लियर इम्प्लांट किया गया. अब यह बच्चे भविष्य में न केवल बोल सकेंगे, बल्कि सुनने की क्षमता भी बढ़ जाएगी. अब तक 8 आपरेशन करने वाला मेयो मध्य भारत का एकमात्र शासकीय मेडिकल कालेज बन गया है. इसी तरह मेडिकल में भी केंद्र को मंजूरी मिल गई है. यहां रविवार को पहली सर्जरी होगी.

जिन बच्चों का आपरेशन किया गया, उनमें शीतल सोनकुसरे (४ वर्ष) भंडारा, क्रीति सरकार (४ वर्ष) चंद्रपुर और रेणुका शिंदे (५ वर्ष ) नागपुर का समावेश रहा. शीतल के पिता चाय की दूकान चलाते हैं, जबकि अन्य दोनों बच्चे भी मध्यमवर्गीय परिवार के हैं. शीतल की तबीयत 14 महीनों में बेहद गंभीर हो गई थी. मस्तिष्क में ज्वर होने से धीरे-धीरे सुनने की क्षमता खत्म हो गई थी, जबकि अन्य दोनों बच्चे जन्म से बोल व सुन नहीं सकते थे. तीनों बच्चों का मेयो में उपचार किया गया. इसके बाद डाक्टरों ने कॉक्लियर इम्प्लांट की सलाह दी थी.

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डा. वेदी की टीम को मिल रही सफलता
मेयो मे केंद्र सरकार की एडीप योजना के तहत तीनों बच्चों का पंजीयन किया गया था. कान में प्रत्यारोपित किए जाने वाला यंत्र उपलब्ध होते ही तीनों बच्चों का शनिवार को सफल प्रत्यारोपण किया गया. इस आपरेशन में डा.जीवन वेदी, डा. विपिन इखार, डा. मिलिंद कीर्तने और उनकी टीम ने कार्य किया. अब तीनों बच्चों को 3 वर्ष तक स्पीच थेरपी केंद्र में विशिष्ट प्रशिक्षण दिया जाएगा.

इसके लिए केंद्र सरकार द्वारा मेयो को निधि उपलब्ध कराई जाएगी. मेयो में कॉक्लियर इम्प्लांट केंद्र को २०१७ में मंजूरी मिली. तब से लेकर अब तक 5 बालकों में प्रत्यारोपण किया गया है. प्रशिक्षण के बाद पांचों बच्चे कुछ बोल पाते हैं. मेयो में भविष्य में आपरेशन की प्रक्रिया बढ़ाई जाने की जानकारी विभाग प्रमुख डा. जीवन वेदी ने दी.

आज मेडिकल में भी होगी सर्जरी
मेयो की तरह ही मेडिकल में केंद्र को मंजूरी मिली है. पहली बार रविवार को एक बच्चे का आपरेशन कर यंत्र प्रत्यारोपित किया जाएगा. मेडिकल के ईएनटी विभाग के प्रा. डा. अशोक नितनवरे ने बताया कि प्रत्यारोपण के लिए पूरी टीम तैयार है. दरअसल केंद्र द्वारा एडीप योजना से मूकबधिर बच्चों के लिए कॉक्लियर इम्प्लांट के लिए महंगा यंत्र उपलब्ध कराया जाता है. लेकिन इसके लिए बच्चों को 6-8 महीने का इंतजार करना पड़ता है.

निजी अस्पतालों में इसी प्रत्यारोपण के लिए 7-14 लाख रुपये तक खर्च आता है. यही वजह है कि शासकीय मेडिकल कालेज में उपचार होने से निर्धन व मध्यमवर्ग के लोगों के लिए वरदान साबित होगा.

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