‘आम्ही बी घडलो, तुम्ही बी घडाना’ उपक्रम
यवतमाल। अगर मौका मिला तो एचआईवी और एड्स पीडि़त भी उनकी क्षमता सिद्ध करने के लिए हमेशा तैयार रहते है. उन्हें सिर्फ सहानभूति नहीं तो प्यार
चाहिए, ऐसे विचार पंढरपुर के ‘पालवी’ संस्था की संचालीका तथा प्रभा-हिरा प्रतिष्ठान की संस्थापक संचालिका मंगलाताई शाह ने व्यक्त किए. वह स्थानीय
नंदूरकर विद्यालय में हुए ‘आम्ही बी घडलो, तुम्ही बी घडाना’ इस उपक्रम में बोल रही थी. गत 8 माह में 8 मान्यवरों ने इससे पहले विचार यवतमालवासियों के सामने रखे.
आजभी समाज में एचआईवी और एड्स के बारे में खुलकर बोला नहीं जाता. इस बारे में बोलना भी अपराध माना जाता है. जिससे इस बिमारी के बारे में चाहिए
वैसी जनजागृति नहीं हो पाई है. जो सहायता उन्हें घरके सदस्यों से मिलनी चाहिए वह उन्हें नहीं मिल पाती. वहीं सदस्य इन मरीजों के दुश्मन बनते है. मगर ऐसे मरीजों को थोडा प्यार दिया जाए तो वे किसी भी स्थिति का सामना कर सकते है, ऐसा अनूभव भी उन्होंने कथन किया. उनकी प्रकट मुलाखात प्रयास और सेवांकुर संस्था अमरावती के अविनाश सावजी ने ली. उन्हीं के द्वारा पुछे गए सवालों के जवाब वह दें रही थी. उन्होंने कहा कि, छोटे बच्चों के लिए एक संस्था निकालने की उनकी ईच्छा थी. जब इस बारे में पूछा गया तो एक जानकारी ऐसी मिली की 2 एचआईवी पीडि़त लड़कियों पर उनके घरवाले ही ध्यान नहीं दें रहें है. तब वह उनकी पुत्री डिंपल के साथ उन लड़कियों के घर पहुंची. उन्हें इस बारे में पूछने पर उसके चाचा ने कहा कि, तूम्हें इन बच्चियों की इतनी फिक्र है तो तुुम अपने घर क्यों नहीं ले जाती? बस उसीपर उन बच्चियों को लेकर मंगलताई घर पहुंची. दूसरे दिन किसी संस्था में उन्हें रखा जा सकता है क्या? इसके बारे में पूछताछ करने पर ऐसी कोई संस्था कार्यरत नहीं है. जिससे उन्होंने ऐसे ही बच्चों के लिए पालवी नामक संस्था शुरू की. आज इस संस्था में सौ के ऊपर बच्चे रह रहें है. इस संस्था में 500 बच्चे तक रखने का मानस भी उन्होंने व्यक्त किया. मंगलाताई ने यह संस्था उनकी उम्र के 48 वें वर्ष में शुरू की. आज इस संस्था में उनकी कन्या डिंपल, उनका पुत्र, बहु, जमाई और नाती तेजस भी शामिल है. जिससे पालवी और फलनेफूलनेवाली है. अबतक इस संस्था में 32 मरिजों की मौत हो चुकी है. यह बात उन्होंने पूछे गए सवाल के जवाब में बताई.
एक बार वह डिंपल के साथ वेश्याबस्ती में गई थी, वहां से वापस घर लौट रहीं थी. तब उसी बस्ती की एक 6 वर्ष की लड़की और उससे उम्र में थोड़ा बड़ा लड़का दोनों खेल रहें थे. खेलते समय लड़के ने लड़की को कहा तू सोजा मै तेरे लिए गिराईक लाता हूं. यह शब्द सुनते ही मंगलाताई और उनकी कन्या दोनों हक्काबक्का रह गए. अपने घर में छोटे बच्चे डाक्टर-डाक्टर खेलते है, मगर उस बस्ती में जो हकीकत वह देखते है वहीं वे बोल रहें थे. इसलिए इन बच्चों के लिए कुछ करने के उद्देश्य भी पालवी का जन्म हुआ, यह बात बोलणा भी वह नहीं भूली. उनके घर चौकीदारी करनेवाले एक बाबा के घर जब वह पहुंची वहां की स्थिति देखने के बाद उन्होंने लगातार 18 वर्षों तक उन्हें दोनों समय का भोजन का डिब्बा दिया. ऐसे कार्यों से भी बड़ी तपश्चर्या की जा सकती, ऐसा भी उन्होंने बताया.
रेल स्टेशन, एसटी स्टैंड, कुड़े का ढेर, मोक्षधाम, अस्पताल आदि स्थानों पर एचआईवी और एड्स बाधित बच्चों को फेंक दिया जाता है. ऐसे बच्चों को उनके मूलभूत अधिकार मिले इसलिए पालवी लढ़ रही है. इन बच्चों को पोषण आहार, प्राथमिक शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा दी जा रही है. इतना ही नहीं तो उन्हें व्यवसाईक शिक्षा देकर उनके पैरों पर खड़ा किया जा रहा है. अविनाशा सावजी का सत्कार वसंत उपगन्लावार तो मंगलाताई का सत्कार अविनाश सावजी ने किया. इसी कार्यक्रम में यवतमाल के तीन छात्रों को वर्धा रेल स्टेशन पर मुंबई जानेवाली गाड़ी में बैठने के कुछ मिनट पहले 15 नवंबर रेल पुलिस की मदद से पकड़कर उनके अभिभावकों को सौंपनेवाली वर्धा के शंकरप्रसाद अग्रीहोत्री इंजिनिअरिंग महाविद्यालय की बी.ई. द्वितीय कम्प्यूटर इंजिनीअरींग व साईन्स की छात्रा बिंदीया बीरेंद्र चौबे का सत्कार भी अविनाश सावजी ने किया. इस कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगित से हुआ. उसके बाद झोली यह एक नया उपक्रम शुरू किया गया. जिसमें उपस्थितों ने उनकी ईच्छा के अनुसार पैसे ड़ाले. यह पैसे पालवी को दिए गए. कार्यक्रम का शानदार संचालन एवं आभार निखिल परोपटे ने माना.