नागपुर: विदर्भ क्षेत्र के संतुलित और न्यायसंगत विकास के उद्देश्य से गठित किए गए विदर्भ वैधानिक विकास मंडल का गठन अब तक अधूरा है, क्योंकि राज्य सरकार ने इसके सदस्यों की नियुक्ति नहीं की है। इस मुद्दे को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता नितिन रोंगे की ओर से दायर जनहित याचिका पर सोमवार को सुनवाई होनी थी, लेकिन दोनों पक्षों के अनुरोध पर हाई कोर्ट ने इसे स्थगित कर दिया।
पिछली सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता और राज्य सरकार की ओर से कई महत्वपूर्ण तर्क रखे गए थे। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के उन फैसलों का भी उल्लेख किया, जिनमें यह स्पष्ट किया गया है कि किसी भी क्षेत्र को विकास से वंचित नहीं रखा जा सकता और इसके लिए राज्यपाल का कानूनी दायित्व बनता है।
कामकाज सुविधाजनक बनाने के लिए प्रस्ताव लंबित
केंद्र सरकार की ओर से अधिवक्ता देशपांडे ने बताया कि गृह मंत्रालय के विधि अधिकारी के अनुसार, संविधान के अनुच्छेद 317(2) के तहत क्षेत्रीय विकास बोर्डों के सुचारु कार्य के लिए प्रस्ताव अभी भी लंबित हैं।
कोर्ट ने आदेश में कहा कि पहले भी केंद्र सरकार को कई अवसर दिए गए, लेकिन आज तक न तो कोई हलफनामा दायर किया गया और न ही याचिका में उठाए गए गंभीर मुद्दों पर निर्देश जारी किए गए। कोर्ट ने यह भी जताया कि पूर्व के आदेशों के अनुसार केंद्र से ठोस जवाब की अपेक्षा थी, जो अब तक नहीं मिल पाया है।
क्यों अटका है सदस्यों की नियुक्ति का मामला?
बोर्ड में अब तक सदस्यों की नियुक्ति नहीं की गई है, जिससे विदर्भ के विकास संबंधी सुझाव जारी नहीं हो सके हैं। इससे पुनः विकास में पिछड़ापन बढ़ने की आशंका है।
याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए मुद्दों पर अब तक राज्य सरकार की ओर से कोई ठोस जवाब नहीं दिया गया है।
केंद्र सरकार से अपेक्षित था कि वह सकारात्मक रुख अपनाएगी, पर अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।
निष्कर्ष
हाई कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अगर क्षेत्रीय असंतुलन बना रहता है और संवैधानिक संस्थाओं की अनदेखी होती है, तो यह प्रशासनिक विफलता मानी जाएगी। अगली सुनवाई में केंद्र और राज्य सरकार से अपेक्षा की जा रही है कि वे ठोस हलफनामा दाखिल करें।