नागपुर. राष्ट्रीय महामार्ग निर्माण के लिए डेप्युटी कलेक्टर की ओर से भूमि अधिग्रहण को लेकर 29 नवंबर 2012 को आदेश जारी किए गए. किंतु आदेश के अनुसार ब्याज के साथ क्षतिपूर्ति का भुगतान नहीं किया गया. जिससे दमयंति पटेल की ओर से हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर की गई. याचिका पर दोनों पक्षों की दलिलों के बाद हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता को ब्याज और क्षतिपूर्ति का हकदार बताते हुए संबंधित राशि जमा करने के आदेश प्रशासन को दिए. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने सिविल अपील नंबर 7064/2019 यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य बनाम तरसेम सिंह और अन्य से जुड़े मामलों में सर्वोच्च न्यायालय के कथित फैसले की ओर अदालत का ध्यान आकर्षित किया है. जिसका 4 फरवरी 2025 को फैसला हुआ है.
याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे वकील के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय ने उक्त आदेश में यूनियन ऑफ इंडिया बनाम तरसेम सिंह और अन्य में रिपोर्ट किए गए मामले में स्थापित सिद्धांतों की फिर से पुष्टि की है.
इस प्रकार सर्वोच्च न्यायालय ने उपरोक्त आधिकारिक समर्थन के मद्देनजर अन्यायपूर्ण गणनाओं से बचने के लिए ब्याज सहित क्षतिपूर्ति देने का लाभ बढ़ाया है. उन्होंने दावा है कि याचिका को अनुमति दी जानी चाहिए, जिससे प्रतिवादियों को न केवल क्षतिपूर्ति बल्कि उस पर ब्याज का भुगतान करने का भी निर्देश दिया जा सके. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 4 फरवरी 2025 को दिए गए फैसले के अनुसार याचिकाकर्ता का दावा घोषणा के रिकार्ड से प्रमाणित है.
यहीं कारण रहा कि एनएचएआई की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने भी इसका विरोध नहीं किया. जिस पर कोर्ट ने कहा कि यह माना जाना चाहिए कि याचिकाकर्ता न केवल क्षतिपूर्ति के हकदार हैं, बल्कि उस पर ब्याज के भी हकदार हैं. कोर्ट ने भूमि अधिग्रहण प्राधिकरण के पास उनके द्वारा की गई गणना के साथ 8 सप्ताह के भीतर क्षतिपूर्ति की राशि और उस पर अर्जित ब्याज जमा करने के आदेश अधिग्रहण विभाग को दिया.