Published On : Sat, Oct 2nd, 2021

जानिए आखिर समुद्र का पानी विषाक्त खारा क्यों होता है?

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नागपुर। सभी जानते हैं कि समुद्रों और महासागरों का पानी विषाक्त-खारा होता है, लेकिन बहुत कम लोगों को ही इसकी वजह पता होगी। समुद्रों का पानी इतना खारा होता है कि इसे पीने के उपयोग में बिल्कुल नहीं लाया जा सकता है। आखिर समुद्रों में इतना सारा नमक कहां से आया कि पानी खारा हो गया?

हमारी पृथ्वी का 70 फीसदी हिस्सा पानी का है और इस पानी का 97 फीसदी हिस्सा महासागरों और समुद्रों में है। अमेरिका के नेशनल ओसियानिक और एटमॉस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन के मुताबिक, अगर सभी समुद्रों से पूरा नमक निकाल कर जमीन पर फैला दिया जाए तो उसकी परत 500 मीटर ऊंची हो जाएगी।

समुद्र-महासागरों में नमक के स्रोत
समुद्रों में नमक आने के दो स्रोत हैं। समुद्रों में सबसे ज्यादा नमक नदियों से आता है। बता दें कि बारिश का पानी थोड़ा अम्लीय होता है, जब यह पानी जमीन की चट्टानों पर पड़ती है तो उसका अपरदन कर देता है और इससे बनने वाले आयन नदी के रास्ते समुद्रों में मिल जाते हैं। यह प्रक्रिया लाखों करोड़ों सालों से चली आ रही है।

इसके अलावा समुद्रों में नमक आने का एक दूसरा स्रोत भी है, जो मुद्रीय तल से मिलने वाले उष्णजलीय द्रव्य है। ये खास द्रव्य समुद्र में हर जगह से नहीं आते, बल्कि उन्हीं छेदों और दरारों से से आते हैं जिनका पृथ्वी की अंदरुनी सतहों से संपर्क होता है। इन छेदों और दरारों से समुद्र का पानी पृथ्वी की अंदरूनी सतह के संपर्क में आकर गर्म हो जाता है। इसकी वजह से कई तरह की रासायनिक प्रतिक्रियाएं होती हैं।

समुद्रों में आयर्न की मात्रा
महासागरों और समुद्रों के पानी में सबसे अधिक क्लोरीन और सोडियम के आयन होते हैं। ये दोनों आयन मिलकर महासागरों में घुले आयनों का 85 फीसदी हिस्सा बनाते हैं। इसके बाद मैग्नीशियम और सल्फेट 10 फीसदी हिस्सा बनाते हैं। इनके अलावा बाकी आयनों की मात्रा बहुत कम होती है।
बता दें कि समुद्रों के पानी में खारापन या लवणता एक समान नहीं होता है। तापमान, वाष्पीकरण और वर्षण के कारण अलग-अलग
जगहों के पानी में अंतर देखने को मिलता है। भूमध्यरेखा और ध्रुवों के पास के इलाकों में खारापन की मात्रा बहुत कम होती है। लेकिन बाकी जगह यह बहुत ज्यादा होता है।

जीवधारियों में विषाक्त-नमक
इस संबंध मे राष्ट्रीय पर्यावरण समन्वय समिति के संयोजक और आल इंडिया सोशल आर्गेनाइजेशन के अध्यक्ष श्री टेकचंद सनोडिया शास्त्री के मुताबिक पृथ्वी पर रहने वाले थलचर मनुष्य सहित अन्य प्राणियों तथा आकाशीय-नभचर प्राणियों के शरीर का पसीना कफलार मैल मलमूत्र बरसांत मे बहकर नंदी नालों के जरिए समुद्र में जाता है।क्यों थलचरीय मनुष्य सहित सभी प्राणियों के शरीर में नमकीन-चरपरापन- मीठापन व अल्कोहल की मात्रा पायी जाती हैं।इसलिए भी समुद्र का जल विषाक्त और नमक-मय होता है।