ताड़ोबा राष्ट्रीय उद्यान साल में मानसून के दौरान 3 महीने बंद रखा जाता है. चूंकि ताड़ोबा जंगल के भीतरी रास्ते और पगडंडियां बारिश में वाहनों के चलने लायक नहीं रह जाता, साथ ही वन्यजीवों का यह संसर्गकाल भी होता है. यही नहीं वन कर्मियों को जानवरों की विशेष देख भाल का जिम्मा होता है. ऐसे में पर्यटक की आवाजाही से वन्य जीवन में खलल पड़ता है.
पिछले वर्ष वर्ष की तरह इस वर्ष भी बाघों के लिए विश्वविख्यात ताडोबा अंधारी व्याघ्र प्रकल्प को मानसून में 3 महीने जुलाई से सितंबर तक पूरी तरह से पर्यटकों के लिए बंद रखने का निर्णय लिया गया था. लेकिन फिलहाल ऐसे किसी नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है. सामान्य पर्यटक के यहां पहुंचने पर वन विभाग उनसे एक डिक्लेरेशन फॉर्म इन दिनों भरवा रहा है.
जिसमें जंगल के सभी जोखिम या दुर्घटना की जिम्मेदारी पर्यटकों पर डाली जा रही है. ऐसे में सवाल उठता है कि आख़िर जंगल का नियंत्रण रखनेवाला वन विभाग नियमों को ताक पर रखने पर आमादा है.
वहीं पर्यावरण प्रेमी संगठनों ने इसका विरोध किया था. उनका कहना है कि यह निर्णय राजनीतिक दबाव में लिया गया है. बफर जोन के चुनिंदा स्थानों पर मानसून में पर्यटन शुरू करने का वन्यजीव प्रेमी संगठनों ने विरोध जताया था. उनका कहना है कि यह समय सभी वन्यजीवों के सहवास का समय होता है. इन्सानों की गतिविधियों से वे विचलित हो सकते हैं.
इसके बावजूद नेताओं के दबाव में आकर पर्यटन को अनुमति दिया जाना ग़लत है. वन्यजीव प्रेमियों का कहना है कि मानसून अधिवेशन में शामिल हुए नेताओं, संबंधित अधिकारियों और कर्मियों को यहां घूमने और पर्यटन का अवसर नहीं मिल पा रहा है, जिससे वे काफी नाराज हैं. उनकी इसी नाराजगी को दूर करने के लिए बफर जोन में पर्यटन की अनुमति देकर उन्हें खुश करने का प्रयास किया जा रहा है.
वन नियमों में एनटीसीए के निर्देशानुसार भी वर्षा ऋतु में वन को बंद रखने का आग्रह है. बावजूद इसके न जाने किस दबाव में वन विभाग के आला अधिकारी सब जानते हुए भी नियमों से खिलवाड़ करने में तुले हुए हैं.
By Narendra Puri

