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नागपुर: पेट्रोल डीजल की कीमतों में एक बार फिर अप्रत्याशित बढोत्तरी हुई है। ये पूरी तरह से सरकारी लूट है। इससे बड़ा कोई झूठ हो ही नहीं सकता कि जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड आयल की कीमत लगातार गिर रही हो, ऐसे में देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कमी नहीं हो सकती। सरकार इस दिशा में लगातार झूठ का सहारा ले रही है।
इसके पहले कांग्रेस शासन में पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ती थी, तो राज्यों के मुख्यमंत्रियों की साइकिल पर जाते हुए तस्वीर अखबारों की सुर्खियां बन जाती थी। भाजपा के यही नेता सड़कों पर आकर प्रदर्शन करते थे। बड़ी बड़ी बातें करते थे, आज वही जब सत्ता पर हैं, तोएक अलग ही राग अलाप रहे हैं। जब से पेट्रोल डीजल की कीमतें रोज ही बदलने लगी हैं, तब से ही यह गोरखधंधा शुरू हुआ है।इन दिनों एक अजीब ही तरह का माहौल देश में बनता जा रहा है। लोगों को यह बताया जा रहा है कि आज देश में जिस तरह से महंगाई बढ़ रही है, उससे आगे चलकर देश का ही भला होगा, लोगों को चीजें सस्ती मिलेंगी। इससे लोग इस बात पर आश्वस्त हैं कि यही सरकार हमें आगे चलकर काफी राहत देगी। लेकिन सरकार ने इस दिशा में टैक्स बढ़ाकर लूटने का जो फंडा अपनाया है, शायद यही फंडा आने वाले चुनाव में असर दिखा सकता है।
हमारे देश में पेट्रोल-डीजल के भाव किस तरह से तय होते हैं। इसे समझने के लिए आज की तारीख में दिल्ली में पेट्रोल किस तरह से 70.39 रुपए लिटर के भाव से बिकता है, इसका विश्लेषण करें। पेट्रोलियम प्रोडक्ट की मार्केटिंग करने वाली कंपनियों को रिफाइनरियों के पास से पेट्रोल केवल 26.64 रुपए प्रति लिटर के भाव से मिल रहा है। इस पर आइल मार्केटिंग कंपनी प्रति लिटर 4.05 रुपए कमिशन लेती है। इस तरह से भाव हो गया 30.70 रुपए। इस पर पेट्रोल पंप मालिक अपना कमिशन लेते हैं 3.24 रुपए। अब भाव हो गया 33.94 रुपए। इस पर केंद्र सरकार प्रति लिटर 21.48 रुपए एक्साइज ड्यूटी वसूल करती है। इस तरह से भाव हो गया 55.42 रुपए। उस पर राज्य सरकार 27 प्रतिशत के हिसाब से वैट वसूल करती है, इस तरह से एक लिटर पेट्रोल की कीमत हो जाती है 70.39 रुपए। वैट की दर हर राज्य में अलग-अलग है, जिसके आधार पर पेट्रोल महंगा से महंगा होते रहता है।
पेट्रोल का पूरा गणित बहुत ही थोड़े में समझना है, तो जो पेट्रोल रिफाइनरी में 26.64 रुपए प्रति लटर के भाव बेचा जाता है, उस पर केंद्र और राज्य सरकार मिलकर कुल 36.44 रुपए टैक्स वसूल करती है। राज्य सरकारें भी अलग-अलग तरह से टैक्स वसूलती है। दूसरे शब्दों में कहा जाए, तो पेट्रोल-डीजल की जो मूल कीमत है, उस पर केंद्र-राज्य सरकारों द्वारा 140% टैक्स वसूल करती है। गरीबों के हितों की बात करने वाली सरकार की यह खुली लूट है। केंद्र सरकार का कहना है कि क्रूड आयल की कीमतें बढ़ रही हैं, इसलिए इनके दाम बढ़ रहे हैं, यह सरासर झूठ है। असलियत यह है कि पिछले तीन सालों में केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा पेट्रोलियम उत्पादों पर टैक्स का जो बेशुमार भार बढ़ाया गया है, उसके कारण ही पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें बढ़ी हैँ। 2014 में जब केंद्र में यूपीए की सरकार थी, तब पेट्रोल पर प्रति लिटर 9.48 रुपए एक्साइज ड्यूटी लगती थी। इसके बाद केंद्र में एनडीए सरकार आई तो धीरे-धीरे एक्साइज ड्यूटी बढ़ने लगी। इस तरह से केंद्र सरकार ने कुल 12 बार इसमें बढोत्तरी की। तब पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 21@48 रुपए हो गई। इस तरह से 2014 किे अप्रैल में डीजल पर एक्साइज ड्यूटी 3.64 रुपए से 17.33 रूपए हो गई।
यदि केंद्र सरकार पेट्रोल-डीजल में मुनाफाखोरी करती है, तो राज्य सरकारें क्यों पीछे रहें? इन सरकारों ने भी तीन साल में वैट में बेशुमार इजाफा किया। तीन सालों में पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी में 120% की वृद्धि कर दी गई। वैट में भी 46% की वृद्धि कर दी गई। 3 साल में डीजल पर एक्साइज ड्यूटी में 154% की वृद्धि कर दी गई। इधर वैट में 48% की बढोत्तरी हुई है। 2014-15 में केंद्र-राज्य सरकारों ने मिलकर पेट्रोलियम उत्पादों की बिक्री से 3.32 लाख करोड़ रुपए का टैक्स वसूला है। जो 2015-16 में बढ़कर 5.24 लाख करोड़ तक पहुंच गया है। जब केंद्र-राज्य सरकारें प्रजा को लूटने में लगी हों, तो फिर पेट्रोल पंप मालिक कैसे पीछे रहें? उन्होंने भी तीन सालों में अपने कमिशन में 73% की वृद्धि करवा ली। केंद्र-राज्य सरकारों के बाद पेट्रोल पंप मालिकों द्वारा लूटने की इस स्पर्धा में आइल कंपनियों ने क्या गुनाह किया है। इसने भी पिछले तीन सालों में अपने मुनाफे में काफी बढोत्तरी की है। ऐसे में पेट्रोलियम उत्पादों को किस तरह से सस्ता किया जा सकता है? इनकिे मुनाफे का असर सीधा-सीधा असर हमारी जेब पर पड़ रहा है।
केंद्र सरकार द्वारा यह दलील दी जा रही है कि पेट्रोल-डीजल की कीमतों में जो वृद्धि की जा रही है, उस राशि का उपयोग रोड, ब्रिज, रेल्वे आदि के लोकहित कार्यों में किया जा रहा है। यदि इस दलील को सच मान भी लें, तो हाइवे पर स्थित जितने भी टोल नाके हैं, उसे खत्म कर दिया जाना चाहिए। देश में सरकार जब जीएसटी लागू करने का अभियान चला रही थी, तब हमें यह कहा गया था कि जीएसटी लागू होने से पेट्रोल-डीजल की कीमतें कम हो जाएंगी। यदि पेट्रोल पर 28% जीएसटी लग रहा है, तो भी दिल्ली में 43.44 रुपए में पेट्रोल मिलना चाहिए। केंद्र और राज्य सरकारों को प्रजा के खून का चस्का लग गया है। इसलिए वह अपना मुनाफा किसी भी हालत में कम नहीं करना चाहती। शायद इसीलिए पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के कानून से बाहर रखा गया है।