गोंदिया। ठीक विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी बदलने वाले नेताओं की फेहरिस्त ( सूची ) काफी लंबी है लेकिन इनमें से कुछ देर सबेर अपनी मूल पार्टी में लौट रहे हैं।
21 जून को भाजपा छोड़ , कांग्रेसी नेता प्रदेश अध्यक्ष नानाभाऊ पटोले से बातचीत कर रहे पूर्व विधायक रमेशभाऊ कुथे ने 26 जुलाई शुक्रवार को मुंबई पहुंच शिवसेना का दामन थाम लिया और मातोश्री में पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे की उपस्थिति में शिव बंधन बांधकर शिवसेना की पुनः सदस्यता ग्रहण की।
आपको बता दें कि रमेश भाऊ कुथे शिवसेना के ” धनुषबाण ” चुनाव चिन्ह से दो मर्तबा 1995 और 1999 में गोंदिया विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए जबकि 2004 में वे कांग्रेस उम्मीदवार गोपालदास अग्रवाल से चुनाव हार गए ।
हालांकि जिसे असली शिवसेना बताया जा रहा है उसका चुनाव चिन्ह बदलकर अब ‘ माशाल ‘ हो चुका है। राज्य में हर जगह दो हिस्सों में टूट चुकी शिवसेना का कुछ अस्तित्व आज भी बरकरार है , अबकी बार किन मुद्दों के सहारे वह पहचान बन पाएगी ? यह भी देखना दिलचस्प होगा।
तीन तिगड़ा- काम बिगड़ा , अब तक सीट शेयरिंग का फार्मूला तैयार नहीं
विधानसभा चुनाव में महज़ 3 माह का वक्त ही शेष बचा है ऐसे में विकल्प सीमित होने तथा राजनीतिक भविष्य डावांडोल होने से गोंदिया विधानसभा क्षेत्र के दो दिग्गज पूर्व विधायक यह तय नहीं कर पा रहे थे कि चुनाव जीतने के लिए किस पार्टी में प्रवेश किया जाए ?
रमेश भाऊ कुथे की शिवसेना में घर वापसी के बाद एक और पूर्व विधायक भी भाजपा को नमस्ते कर कांग्रेस में जल्द लौटेंगे इस बात की चर्चा जोरों पर है ।
बता दें कि महाराष्ट्र में इंडिया गठबंधन हो या एनडीए गठबंधन यह अपने प्रत्याशियों के चयन में दुविधा का सामना कर रहा है जिससे कार्यकर्ता असमंजस की स्थिति में है चुनाव में बमुश्किल 3 महीने रह गए हैं लेकिन इच्छुक उम्मीदवारों की ओर से प्रचार या जनसंपर्क की कोई शुरुआत नहीं हुई है , और ना ही सीट शेयरिंग का फार्मूला ही तैयार हुआ है।
सत्ता का रास्ता तलाशने निकाले ” महा विकास आघाड़ी तथा महायुति गठबंधन भले ही साथ दिखाई देता हो लेकिन चुनाव में सहयोगी दल पूर्ण मदद करेंगे इसकी उम्मीद ना के बराबर होगी।
बहरहाल राजनीतिक जीवन में लंबी छलांग लगाने के लिए महत्वाकांक्षा अनिवार्य उत्प्रेरक होती है इसी के तहत रमेश भाऊ कुथे ने 6 साल बाद शिवसेना में घर वापसी की है ।
लेकिन -चुनाव , चुनाव होता है ? जनता ही माई बाप होती है , वोटो के ध्रुवीकरण से किस उम्मीदवार को फायदा मिलेगा तथा टिकट के महत्वाकांक्षा रखने वाले रमेश भाऊ कुथे को क्या शिवसेना से उम्मीदवारी मिलेगी यह देखना दिलचस्प होगा।
रवि आर्य