गोंदिया। कभी देश भर में राइस सिटी के नाम से मशहूर रहा गोंदिया आज अपने ही नाम को बचाने के लिए जूझ रहा है इस क्षेत्र में धड़ाधड़ बंद हो रही राइस मिलों की वजह से अर्थव्यवस्था और हजारों मजदूरों के रोजगार पर संकट गहराता जा रहा है।
महाराष्ट्र के पूर्वी विदर्भ क्षेत्र – गोंदिया, भंडारा, गड़चिरोली, चंद्रपुर एवं नागपुर में स्थापित लघु एवं अत्याधुनिक राईस मिलें वर्तमान में आर्थिक संकट का सामना कर रहीं हैं। ये राईस मिलें, जो कभी इस क्षेत्र की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था की रीढ़ थीं, आज बंद होने के कगार पर हैं।
राइस मिलों के पास कार्य के लिए पर्याप्त धान नहीं
बता दें कि पूर्व विदर्भ के इस क्षेत्र में प्रतिवर्ष लगभग 40 लाख मीट्रिक टन धान का उत्पादन होता है इसमें से लगभग 10 से 15 लाख मीट्रिक टन धान राज्य सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीदती है , शेष धान का बड़ा हिस्सा छत्तीसगढ़ जैसे पड़ोसी राज्यों में चला जाता है, जहां MSP महाराष्ट्र की तुलना में अधिक है।
स्थानीय राईस मिलों के पास कार्य के लिए पर्याप्त धान नहीं बचता, जिससे वे केवल कस्टम मिलिंग पर निर्भर रह गई हैं।
बैंकों से भारी कर्ज लेकर चल रहे इन उद्योगों की प्रतिस्पर्धा पड़ोसी राज्यों के उद्योगों से है किंतु महाराष्ट्र के पूर्व विदर्भ में यह उद्योग बंद होने की कगार पर है।
राइस उद्योग के दुर्दशा पर सरकार ले तत्काल संज्ञान
विगत 12 वर्षों से मिल रहा राज्य सरकार से मिलिंग इंसेंटिव नहीं दिया जा रहा , राज्य सरकार द्वारा केवल 10 रूपए प्रति क्विंटल की दर से मिलिंग ( पिसाई ) का भुगतान हो रहा है, जबकि देश के अन्य राज्यों में उद्योगों को उच्च इन्सेंटिव दिया जाता है।
धान-चावल परिवहन के लिए ट्रांसपोर्ट दरों में अस्वाभाविक कटौती की गई है, जिससे लॉजिस्टिक खर्च वहन करना असंभव हो गया है।
केंद्र सरकार सहित कई राज्यों में ट्रकों में धान चावल की लोडिंग- अनलोडिंग करने की हमाली ( मजदूरी ) सुविधा दी जाती है लेकिन महाराष्ट्र में इसकी पूर्णत: अनदेखी की गई है।
कस्टम मिलिंग के 1000 करोड़ रुपए की राशि का बकाया भुगतान कब ?
पूर्व विदर्भ के राइस मिलर्स को वर्ष 2021 के बाद से कस्टम मिलिंग कार्य की लगभग 1000 करोड़ की राशि का भुगतान नहीं किया गया , नतीजतन राइस मिलों को आर्थिक संकट से जूझना पड़ रहा है।
उसी प्रकार वर्ष 2016 से 2021 तक की अवधि के लिए कस्टम मिलिंग का लगभग 56 करोड़ का बकाया अभी तक लंबित है।
इस स्थिति में अधिकांश राईस मिलें या तो बंद हो चुकी हैं या फिर भयंकर घाटे में चल रही हैं। इन मिलों पर बैंकों के कर्ज का बोझ लगातार बढ़ रहा है लिहाज़ा हमारी मांग है कि महाराष्ट्र शासन इन उद्योगों की तरफ विशेष ध्यानाकर्षण देकर इन्हें संजीवनी प्रदान करे।
रवि आर्य