Published On : Sat, Apr 27th, 2024

गोंदिया: पुलिस ने मुर्दे को जिंदा दबोच कोर्ट में किया पेश , अदालत ने सुनाई 5 साल की कैद

उसका मृत्यु प्रमाण पत्र भी बन चुका था , कोर्ट और पुलिस रिकॉर्ड में था मुर्दा , हुआ जिंदा
Advertisement

गोंदिया। किसी मरे हुए इंसान को जिंदा किया जा सकता है ? पढ़ने में भले अजीब लगे लेकिन ऐसा मुमकिन है। खुफिया इंटेलिजेंस का गजब इस्तेमाल कर पुलिस ने मृत व्यक्ति की जिंदा गिरफ्तारी करते हुए सबको सन्न कर दिया है।

इस कहानी की शुरुआत 7 अक्टूबर 2017 को होती है प्रबंधक जिला न्यायालय गोंदिया की ओर से फरियादी पुलिसकर्मी मेथिलाल बृजलाल भंडारी की ओर से गोंदिया शहर थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी कि कोर्ट ने न्यायालय प्रविष्टि क्रिमिनल अपील क्रमांक 12/15 श्रीकांत भैयालाल मोटघरे विरुद्ध महाराष्ट्र शासन पर अंतिम न्याय निर्णय 14 अगस्त 2017 को आया जिसमें निशानी क्रमांक 19 प्रामाणे 10 हजार रुपए के आर्थिक दंड की शिक्षा सुनाई गई थी।

मा. प्रबंधक जिला न्यायालय गोंदिया में इस केस के संदर्भ में आरोपी अपीलार्थी प्रवीण सुभाष गभने ने नोटिस प्राप्ति पश्चात अदालत की दिशाभूल करने का षड्यंत्र रचते हुए अपने साले आरोपित श्रीकांत भैयालाल मोटघरे का मृत्यु प्रमाण पत्र कोर्ट में दाखिल कर उसकी मृत्यु हो गई है ऐसा बताकर कोर्ट को गुमराह करते अदालती कार्रवाई खत्म करने की चेष्टा की।

मामले में उस वक्त नया मोड़ आ गया जब पुलिस को उसके जीवित होने की जानकारी मिली , क्योंकि उसका मृत्यु प्रमाण पत्र भी बन चुका था लिहाज़ा उसके जिंदा होने की सूचना मिलते ही पुलिस एक्शन मोड में आ गई।

पुलिस ने सटीक सूचना के आधार पर आरोपी श्रीकांत को दबिश देकर उसे डिटेन किया और अदालत में जिंदा पेश कर दिया।
कोर्ट के समक्ष बात उजागर होने पर फरियादी पुलिसकर्मी की ओर से दोनों आरोपियों के विरुद्ध धोखाधड़ी और ठगबाजी का जुर्म अपराध क्रमांक 555/17 की धारा 420 , 468 के तहत दर्ज कराया गया।
कोर्ट केस क्रमांक 325 / 2019 के तहत चल रहे इस प्रकरण में माजरा देख अदालत भी हैरान रह गई क्योंकि जिसका मृत्यु प्रमाण पत्र बन चुका था वह मुर्दा इंसान कोर्ट के सामने जिंदा खड़ा था , मजबूत सबूत के आधार पर अदालत द्वारा दोनों आरोपियों को दोषी पाया गया जिसके आधार पर शुक्रवार 26 अप्रैल 2024 को माननीय गोंदिया न्यायालय ने फैसला सुनाते हुए 5 साल की कैद और 1000 रुपए जुर्माना का फैसला सुनाया है।

इस मामले की जांच सहायक पुलिस निरीक्षक विवेक नार्वेकर ने की तथा कोर्ट में सरकार की ओर से अपना पक्ष एडवोकेट कमलेश दिवेवार ने रखा।

रवि आर्य