गोंदिया/ भंडारा। साढ़े 3 लाख और 4 लाख वोटों से जीत का दावा करने वाले बीजेपी का चुनाव हार जाना हैरान कर देने वाला है , महा विकास आघाड़ी से कांग्रेस प्रत्याशी प्रशांत पडोले ने अपनी जीत का श्रेय पार्टी संगठन , कार्यकर्ताओं और जनता को दिया है।
इस हार का सबसे बड़ा कारण संविधान बदल देने व आरक्षण खत्म कर देने का डर दलित आदिवासी और ओबीसी वोटरों में बिठाकर मतदान को प्रभावित करना तथा भाजपा द्वारा अफवाहों का सही ढंग से काउंटर नहीं करना , बेरोजगारी , महंगाई , जातिगत समीकरणों , मराठा आरक्षण का मुद्दा हावी होना , अबकी बार 400 पार जैसे अति आत्मविश्वास भरे नारों के चलते भाजपा कार्यकर्ताओं का इस बार चुनाव में सक्रिय नहीं रहना , महायुति के मित्र दलों द्वारा वोटर को बूथ तक लेकर नहीं जाना इन मुद्दों ने काफी हद तक मतदान को प्रभावित किया।
हालाकि बीजेपी के बड़े नेता चुनावी सभाओं में जनता को स्पष्टीकरण देते रहे की संविधान बदल देने व आरक्षण खत्म कर देने जैसी कोई मंशा भाजपा की नहीं है परंतु चुनाव में यह मुद्दा बन ही गया और इसे केंद्र में रखकर मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया जिसका खामियाज़ा हार के रूप में बीजेपी को झेलना पड़ा है।
31 राउंड तक चली काउंटिंग के बाद गोंदिया भंडारा लोकसभा संसदीय सीट से कांग्रेस प्रत्याशी को 506415 वोट प्राप्त हुए , वहीं भाजपा के सुनील मेंढे को 477252 मत प्राप्त हुए , बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार संजय कुंभलकर को 21260 वोट मिले वहीं वंचित आघाड़ी के श्री केवट को 21447 तथा कांग्रेस के बागी निर्दलीय उम्मीदवार सेवक वाघाये को 11900 वोटो से ही संतोष करना पड़ा।
महाविकास आघाड़ी कांग्रेस के उम्मीदवार डॉ प्रशांत पडोले ने 29163 वोटो से यह चुनाव जीत लिया तथा 25 साल बाद कांग्रेस दोबारा इस संसदीय क्षेत्र में लौटी है।
बता दें कि पूरे चुनाव में राम मंदिर , धारा 370 और मोदी लहर का मुद्दा फेल हो गया ।
सुबह से ही दोनों प्रत्याशियों के बीच कांटे का मुकाबला चला लेकिन शाम होते-होते डॉ प्रशांत पडोले ने बाजी मार ली , उन्हें गरीब मध्यम वर्गीय हर वर्ग ने वोट दिया खासकर पवार समाज के व्यक्ति को टिकट न दिए जाने की वजह से पवार समाज की नाराजगी हार की प्रमुख वजह रही क्योंकि कांग्रेस इस ओबीसी वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाब रही साथ ही मुस्लिम और दलित समाज के बड़े तबके ने भी कांग्रेस के पक्ष में एक तरफा मतदान किया।
अब हार के बाद जहां भाजपा में पार्टी के भीतर चिंतन और मंथन का दौर शुरू हो गया है वहीं बीजेपी की केंद्र में सरकार बन जाने के बाद भी सहयोगी दल के कद्दावर नेता को क्या मंत्री पद नसीब होगा ? इस पर भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए बहस छिड़ चुकी है क्योंकि पूर्व विदर्भ की 5 सीटों में से 4 पर भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा है जबकि बताया जा रहा है कि उस नेता ने पार्टी आलाकमान को 4 सीटों पर जीत दिलाने का भरोसा दिया था जिसमें वे विफल रहे हैं।
रवि आर्य