Published On : Fri, Oct 18th, 2019

ठगे जा रहे BOI के लाखों ग्राहक बीमा कंपनी बदली

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नागपुर: बैंक आफ इंडिया (बीओआई) से हेल्थ इंश्योरेंस लेने वाले सिटी सहित देशभर के लाखों ग्राहकों के समक्ष संकट पैदा हो गया है. बैंक के बीमा कंपनी बदलने से लाखों ग्राहकों की पालिसी पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं. ऐसे ग्राहकों को हेल्थ इंश्योरेंस का लाभ मिलेगा, यह भी संशय है, क्योंकि बैंक ने सरकारी कंपनी नेशनल इंश्योरेंस को छोड़ निजी क्षेत्र की कंपनी रिलायंस इंश्योरेंस से करार कर लिया है. रिलायंस अपनी शर्तों पर कागजात मांग रही है, जो बैंक के अधिकारियों के पास नहीं है. अब ग्राहकों को कागजात यानी पुरानी पालिसी जुटाने के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ रही है. बैंक के अधिकारी इसमें किसी भी तरह से मदद करने को तैयार नहीं हैं. नागपुर में ही हजारों की संख्या में पालिसी लैप्स होने की स्थिति उत्पन्न हो गई है. जहां भविष्य खराब होता दिख रहा है, वहीं वर्षों तक भरे गए प्रीमियम की राशि के भी पानी में जाने का खतरा मंडराने लगा है.

ग्राहकों ने बैंक के अनुरोध पर ही हेल्थ बीमा पालिसी ली थी. बैंक ने सरकारी कंपनी नेशनल इंश्योरेंस के साथ गठजोड़ किया था, परंतु इस वर्ष बैंक ने सरकारी कंपनी नेशनल इंश्योरेंस का साथ छोड़ दिया है और रिलायंस इंश्योरेंस के साथ हाथ मिला लिया है. नेशनल के पालिसीधारक जब शाखाओं में रिन्यूवल के लिए पहुंच रहे हैं तब उन्हें इसकी जानकारी दी जा रही है और बताया जा रहा है कि रिलायंस की शर्तों को मानने पर ही उनकी पिछली पालिसी में भरे गए पैसों को मान्य किया जाएगा, क्योंकि बैंक के पास नेशनल इंश्योरेंस की पालिसी की कोई जानकारी या रिकार्ड नहीं है. ऐसे में लाखों पालिसीधारक बीच मझधार में फंस गए हैं. 10-10 वर्षों तक पैसा भरने वाले ग्राहकों का पैसा ‘पानी’ में डूब गया है, क्योंकि रिलायंस छोटी-छोटी गलती निकालकर पालिसीधारकों को बाहर का रास्ता दिखा रही है और बैंक मूकदर्शक बना हुआ है.

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10-11 वर्ष पूर्व बैंक ने नेशनल इंश्योरेंस की पालिसी की बिक्री शुरू की और अपने खाताधारकों को पालिसी लेने के लिए प्रेरित किया. शहर में ही लाखों की संख्या में खाताधारकों ने पालिसी ले ली. बैंक 10 वर्षों से खाते से पैसे काटता और भरता आया. समयावधि होने पर ग्राहकों को सूचित कर पालिसी रिन्यू कर दिया जाता था. इस प्रकार पालिसीधारक भी संतुष्ट थे, परंतु अब अचानक बैंक अधिकारियों का कहना है कि नेशनल की स्कीम बंद हो गई है और बैंक का टाईअप रिलायंस से हो गया है.

रिलायंस की शर्त, बैंक खामोश
ग्राहकों ने बीओआई बैंक का चेहरा देखकर रिलायंस से भी पालिसी निकालने की कोशिश की, लेकिन बैंक अधिकारियों ने बताया कि रिलायंस की शर्त है कि पहले के सारे पालिसी के कागजात उन्हें दिए जाएं. ऐसे में अगर किसी ग्राहक के पास पालिसी न होकर नेशनल का कार्ड है, तो उसे भी बैंक अधिकारी यह कह कर अमान्य कर रहे हैं कि रिलायंस को यह नहीं चलता. इसके चलते हजारों ग्राहकों द्वारा भरा गया पैसा पानी में जाने का खतरा उत्पन्न हो गया है. कई ग्राहकों ने इसकी शिकायत भी की, परंतु बैंक के अधिकारियों के कानों में जूं तक नहीं रेंग रही है.

निरंतरता हो रही खत्म
ऐसे कई पालिसीधारकों ने ‘नवभारत’ को बताया कि कंपनी बदले या पैसा डूबे, इसकी चिंता उन्हें नहीं है. मुद्दा यह है कि हेल्थ इंश्योरेंस में निरंतरता (लगातार 3-4 वर्ष तक पालिसी लेना) जरूरी है तभी क्लेम सेटल होता है. कई लोगों की 10-10 वर्ष पुरानी पालिसी है, जो एक झटके में खत्म हो जाएगी. रिलायंस क्लेम देने वाली नहीं है. उनका कहना है कि क्या बैंक के अधिकारी इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं. बैंक ने ग्राहकों के साथ सीधे-सीधे धोखा किया है. अधिकारी कागजात के रूप में केवल पालिसी मांग रहे हैं, जबकि कंपनी की ओर से उपलब्ध कराये गए ‘स्मार्ट कार्ड’ को अमान्य कर रहे हैं, जबकि कार्ड में सब कुछ दर्ज रहता है. बैंक का यह काम था कि नेशनल से पुराने डाक्यूमेंट मंगाकर अपने ग्राहकों को राहत पहुंचाई जाती, परंतु बैंक अधिकारी अपने-अपने कार्यों में ही व्यस्त हैं.

ऋण अधिकारी बेचते हैं पालिसी
पालिसीधारकों ने बताया कि वास्तव में बैंक की अलग-अलग शाखाओं में किसी को भी पालिसी बेचने की जिम्मेदारी दे दी जाती है, जिन्हें बीमा पालिसी के बारे में कोई जानकारी होती ही नहीं है. एक ग्राहक ने बताया कि बेसा शाखा में भी एक ऋण अधिकारी को पालिसी की जिम्मेदारी दी गई है, जिसे कुछ मालूम नहीं रहता. इतना ही नहीं ऐसे अधिकारी बैंक के नियमित ग्राहकों का हित न देखते हुए निजी बीमा कंपनियों के हितों की बात ज्यादा करते हैं. ग्राहकों की समस्या का समाधान करने के बजाय इनका टका का जवाब होता है कि रिलायंस कंपनी नहीं मान रही है आपको यह कागजात देने ही होंगे, नहीं तो आपको पिछला लाभ नहीं मिलेगा. ग्राहकों का कहना है कि हम बैंक के स्थायी ग्राहक हैं, उस पर भरोसा किए हुए हैं और खाते में लाखों रुपये जमा है. ऐसे में अधिकारी निजी कंपनी का पक्ष कैसे ले रहे हैं. मजेदार बात यह है कि अधिकारी बदलते ही कागजात, रिकार्ड सब गायब हो जाते हैं और नए अधिकारी को ग्राहक के पालिसी इतिहास के बारे में कोई जानकारी तक नहीं होती.

क्या मिलेगा न्याय
ऐसे ग्राहकों का कहना है कि यह गंभीर मुद्दा है. देशभर के ग्राहक बैंक की एक पहल से ठगे गए हैं. धन तो डूब ही रहा है, नई पालिसी का लाभ भी 2-3 वर्ष बाद मिलेगा. क्या ग्राहक पंचायत या सरकारी अधिकारी ऐसे मुद्दों का हल निकालेंगे जिससे लोगों का समाधान हो सके और बीमारी, हास्पिटल में एडमिट होने के वक्त उन्हें हेल्थ इंश्योरेंस का लाभ मिल सके.

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