Published On : Thu, Jul 19th, 2018

वन विकास महामंडल को 10 लाख का जुर्माना

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Nagpur Bench of Bombay High Court

नागपुर: रोजगार गारंटी योजना के अंतर्गत किए गए वृक्षारोपण में लगभग 134 करोड़ का घोटाला होने की शिकायत करने के बाद शिकायतकर्ता के खिलाफ ही कार्रवाई किए जाने को लेकर समाचार पत्रों में छपी खबर पर हाईकोर्ट की ओर से स्वयं संज्ञान लिया गया. जिस पर बुधवार को सुनवाई के बाद न्यायाधीश भूषण धर्माधिकारी और न्यायाधीश झका हक ने 10 वर्ष में किए गए कार्य का आडिट करने के आदेश को नजरअंदाज किए जाने पर वन विकास महामंडल को 10 लाख रु. का जुर्माना ठोंक दिया.

गत सुनवाई के दौरान अदालत ने इस संदर्भ में ऑडिट करनेवाली सीए कम्पनी दानी एंड एसोसिएट्स को प्रतिवादी बनाने के आदेश देकर नोटिस जारी कर दिया था. साथ ही अदालत ने ऑडिट करने के बाद वर्ष के अनुसार खर्च का चार्ट क्यों तैयार नहीं किया गया, इसका जवाब भी देने के आदेश दिए थे. साथ ही अदालत ने मामले को उजागर करनेवाले सेवानिवृत्त कर्मचारी को भी अगली सुनवाई के दौरान उपस्थित रहने के आदेश दिए.

मस्टर पर जानकारी नहीं, तैयार किए वाउचर
समाचार पत्रों में छपी खबरों के अनुसार वित्तीय वर्ष 1997-98 में खामगांव वन प्रकल्प के अंतर्गत 19,300 हेक्टेयर वन जमीन पर रोजगार गारंटी योजना के माध्यम से वन विकास महामंडल द्वारा वृक्षारोपण किया गया. लेकिन आश्चर्यजनक यह रहा कि हजारों हेक्टेयर में वृक्षारोपण होने के बावजूद सागवन के एक भी पौधे का संवर्धन नहीं हो पाया. आलम यह रहा कि वन विकास महामंडल के अधिकारियों की ओर से वृक्षारोपण के दौरान वन क्षेत्र अधिकारी के पास मस्टर पर इसकी जानकारी दर्ज करनी चाहिए थी, लेकिन केवल वाउचर तैयार किए गए.

जिलाधिकारी द्वारा मंजूर किए गए अनुदान से अधिक खर्च होने एवं इसमें लगभग 134 करोड़ का घोटाला होने की शिकायत वन विकास महामंडल के लिपिक मधुकर चोपड़े ने 31 दिसंबर 1997 को जिलाधिकारी और अमरावती विभागीय आयुक्त से की थी. विभागीय आयुक्त की ओर से जांच करने के बाद उन्होंने लिपिक पर ही आरोप निश्चित कर निलंबित कर दिया. यहां तक कि 7 बार वेतन वृद्धि भी रोक दी.

कार्रवाई की रिपोर्ट भी नहीं
गत सुनवाई के दौरान अदालत द्वारा महामंडल से वृक्षारोपण के लिए मजदूरों को किए गए भुगतान को लेकर वाउचर के संदर्भ में पूछे जाने पर पहले वन विकास महामंडल की ओर से सकारात्मक जवाब तो दिया गया, लेकिन बाद में वाउचर के ओरिजनल उपलब्ध नहीं होने की जानकारी अदालत को दी गई.

यहां तक कि सरकारी लेखा परीक्षक से आडिट ना कर निजी कम्पनी से ऑडिट कराए जाने को लेकर नाराजगी भी जताई. सुनवाई के दौरान कई बार अधिकारियों की ओर से जानकारी बदली जाने पर अधिकारी को तुरंत हिरासत में लेने की चेतावनी भी दी. सुनवाई के दौरान वन विभाग के सचिव विकास खरगे और वन विकास महामंडल के महाव्यवस्थापक रामबाबू भी अदालत में उपस्थित थे.