Published On : Wed, May 14th, 2025
By Nagpur Today Nagpur News

प्राचार्य नियुक्ति में जाली दस्तावेज मामला: दस्तावेजों की जांच किए बिना मिली मंजूरी,

प्राचार्य नियुक्ति में जाली दस्तावेज मामला: दस्तावेजों की जांच किए बिना मिली मंजूरी, शिक्षणाधिकारी को हाईकोर्ट से अंतरिम राहत
Advertisement

नागपुर। शहर में बोगस शिक्षकों की नियुक्तियों को लेकर उठे विवाद के बीच एक और मामला सामने आया है, जिसमें कथित तौर पर जाली दस्तावेजों के आधार पर एक व्यक्ति को प्राचार्य के रूप में नियुक्त किया गया। इस गंभीर प्रकरण में शिक्षणाधिकारी संजय डोर्लीकर के खिलाफ मामला दर्ज हुआ है। गिरफ्तारी की आशंका के चलते डोर्लीकर ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जहां कोर्ट ने शर्तों के आधार पर उन्हें अंतरिम अग्रिम जमानत प्रदान की।

क्या है मामला?

Gold Rate
22 dec 2025
Gold 24 KT ₹ 1,33,300/-
Gold 22 KT ₹ 1,24,000 /-
Silver/Kg ₹ 2,09,200/-
Platinum ₹ 60,000/-
Recommended rate for Nagpur sarafa Making charges minimum 13% and above

सदर पुलिस थाने में शिक्षणाधिकारी संजय डोर्लीकर के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी), 465 (जालसाजी), 468, 471, 472, 409 (सरकारी सेवक द्वारा विश्वासघात), और 120-बी (षड्यंत्र) के तहत मामला दर्ज किया गया है। अभियोजन पक्ष का आरोप है कि डोर्लीकर ने बिना दस्तावेजों की जांच किए पुडके नामक व्यक्ति को प्राचार्य के रूप में मंजूरी दी, जबकि पुडके ने कथित रूप से फर्जी अनुभव प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया था।

कोर्ट की टिप्पणी और अंतरिम राहत

हाईकोर्ट में दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने कहा कि प्राथमिकी में पैसों की मांग का सीधा आरोप नहीं है। आरोप केवल इतना है कि याचिकाकर्ता ने दस्तावेजों की जांच किए बिना मंजूरी दी। कोर्ट ने माना कि मामले में हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता नहीं है और इस आधार पर याचिकाकर्ता को अंतरिम अग्रिम जमानत दी गई।

दस्तावेजों की जांच किसकी जिम्मेदारी?

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील का कहना है कि दस्तावेजों की जांच और सत्यापन स्कूल प्रबंधन की जिम्मेदारी है। उन्होंने तर्क दिया कि शिक्षा अधिकारी पर यह जिम्मेदारी नहीं डाली जा सकती कि वे हर दस्तावेज की जांच करें। उन्होंने यह भी बताया कि अनुभव प्रमाणपत्र पर पूर्व प्राचार्य और प्रबंधन के हस्ताक्षर मौजूद हैं और उसी के आधार पर मंजूरी दी गई थी।

बॉक्स: पुलिस का पक्ष

वहीं, सरकारी पक्ष की ओर से एपीपी ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि इस नियुक्ति में भी रविन्द्र सलामे द्वारा ₹8 लाख की राशि लेने का उल्लेख अभियोजन पक्ष के बयान में है। इस प्रकार कई कड़ियां जुड़ी हुई हैं और जांच अभी अधूरी है। ऐसे में याचिकाकर्ता को कोई राहत न दिए जाने की मांग की गई।

यह मामला दर्शाता है कि शिक्षा विभाग में दस्तावेजों के सत्यापन को लेकर कितनी गंभीर लापरवाही बरती जा रही है। अब देखना यह है कि आगे की जांच में और क्या तथ्य सामने आते हैं।

GET YOUR OWN WEBSITE
FOR ₹9,999
Domain & Hosting FREE for 1 Year
No Hidden Charges
Advertisement
Advertisement