Published On : Mon, Aug 27th, 2018

चुनाव आयोग आज 7 राष्ट्रीय और 51 राज्य स्तरीय पार्टियों के साथ करेगा बैठक

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नई दिल्ली: 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग ने सोमवार को राजनीतिक पार्टियों की बैठक बुलाई है. चुनाव के मद्दे नजर इस मीटिंग में कई मुद्दों पर चर्चा होगी. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक विपक्षी पार्टियों और निर्वाचन आयोग के बीच प्रस्तावित बैठक में अधिकतर पार्टियां आगामी चुनावों में मतपत्र की वकालत करेंगी.

निर्वाचन आयोग ने सोमवार को सात राष्ट्रीय और 51 राज्य स्तरीय पार्टियों को चुनाव संबंधी मुद्दों पर चर्चा के लिए आयोजित बैठक में आमंत्रित किया है. इसमें मतदाता सूची, राजनीतिक दलों का खर्च और वार्षिक अंकेक्षित रिपोर्ट समय पर दाखिल करने सहित कई अन्य मुद्दों पर चर्चा होगी.

राजग के घटक दल शिवसेना सहित 17 राजनीतिक दलों ने मतपत्र के जरिये चुनाव कराने पर जोर दिया है. इन पार्टियों में कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, बसपा, जद(एस), तेलुगू देशम पार्टी, राकांपा, सपा, माकपा, राजद, द्रमुक, भाकपा, वाईएसआर कांग्रेस, केरल कांग्रेस मणि और एआईयूडीएफ शामिल हैं. विपक्षी पार्टी के एक नेता ने बताया कि हम निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव के लिए मतपत्र पर जोर देंगे. हम यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि ईवीएम टेंपर प्रूफ नहीं है. उन्होंने कहा, हम साथ ही यह मुद्दा भी उठाएंगे कि चुनाव खर्च उम्मीदवार के साथ ही राजनीतिक दलों का भी निर्धारित होना चाहिए.

तृणमूल कांग्रेस समेत 17 राजनीतिक दलों ने 2019 का लोकसभा चुनाव बैलट पेपर से कराए जाने की मांग की थी. तृणमूल कांग्रेस ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों की निष्पक्षता पर सवाल खड़ा करते हुए संसद के बाहर प्रदर्शन किया था. उसने मांग की थी कि 2019 के चुनाव में मतपत्र वापस लाया जाए. पश्चिम बंगाल के सत्तारूढ़ दल ने कहा कि यह एक ऐसा साझा कार्यक्रम है जो विपक्षी दलों को एकजुट करेगा.

निर्वाचन आयोग की इस बैठक के एजेंडे में केंद्र और राज्य में एकसाथ चुनाव कराने के मुद्दे को शामिल नहीं किया गया है. अधिकतर विपक्षी पार्टियों ने विधि अयोग के समक्ष कहा है कि यह व्यावहारिक नहीं है. कुछ दिन पहले ही सभी अटकलों पर विराम लगाते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) ओ पी रावत ने निकट भविष्य में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की संभावना से साफ इंकार कर दिया था. हाल के दिनों में ऐसी अटकलें थीं कि इस साल मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मिजोरम में निर्धारित विधानसभा चुनावों को टाला जा सकता है तथा उन्हें अगले साल मई-जून में लोकसभा चुनावों के साथ कराया जा सकता है.