Published On : Fri, Aug 12th, 2016

‘कूल जार’ बन सकता है जानलेवा

Advertisement

एफडीए, बीआईएस ने कार्रवाई से कन्नी काटी
कोई प्रमाण पत्र नहीं, कोई धड़पकड़ नहीं
बिना मानक गली-गली में हो रहा तैयार

Cool Water Jar
नागपुर:
कूल कैन आज हर प्रमुख स्थानों पर अपनी जगह बना चुका है. जागरूकता के अभाव में इसकी पहुंच दिनों दिन बढ़ती जा रही है, परंतु लोगों को यह नहीं मालूम कि ‘कूल जार’ में जो पानी आ रहा है, वह घटिया दर्जे का है और इसका कोई वाली नहीं है. देखने और पीने में कूल लगने वाले कैन के लिए किसी प्रकार के गुणवत्ता प्रमाण पत्र की जरूरत नहीं होती. बोर, कुओं के पानी को केवल ठंडा कर इसकी आपूर्ति की जा रही है. आज इस केन ने होटल, कैटरर्स, दूकान, आफिस, डाक्टर, हास्पिटल सभी जगह अपना स्थान बना लिया है, परंतु यह बहुत ही घातक है, क्योंकि ‘कूल जार’ कहां पैक हो रहा है और इसके उत्पादक कौन हैं, इसकी जानकारी किसी भी सरकारी कार्यालय में नहीं है.

पैकेज ड्रिंकिंग वाटर (यानी बोतल बंद पेय) के लिए कई प्रकार के लाइसेंस की जरूरत होती है. इन्हें आईएसआई मार्क लेना अनिवार्य होता है. लैब में पानी की जांच कराई जाती है. इसी प्रकार सरकारी विभाग बाजार से पानी का सैंपल लेकर फैक्टरियों पर कार्रवाई कर सकते हैं, क्योंकि इनका नाम, पता सभी कुछ कई कार्यालयों में दर्ज होते हैं. वहीं दूसरी ओर ‘कूल जार’ वाले का कोई ‘पता-ठिकाना कहीं भी दर्ज नहीं होता. बीआईएस, एफडीए, डीआईसी, महावितरण किसी को भी इस प्रकार के एक भी फैक्टरी की जानकारी नहीं है. यानी ये गुमनामी में पानी को ठंडा कर रहे हैं और बड़े पैमाने पर इसकी आपूर्ति भी बाजार में कर रहे हैं.

एक भी कंपनी नहीं, पहुंच हर जगह
आईटीआई के जरिए भी खुलासा हुआ कि एेसे किसी भी ‘कूल पैक’ बनाने वाले शहर या जिले में एक भी नहीं है. न तो बीआईएस के पास, न ही डीआईसी में और न ही एफडीए के पास. अभिषेक सिन्हा ने इस संबंध में मुख्यमंत्री से लेकर अधिकांश अधिकारियों को पत्र लिखकर इस गोरखधंधे की जानकारी दी है. एफडीए, डीआईसी, बीआईएस यहां तक की महावितरण से एेसे इकाइयों की सूची देने की मांग आरटीआई के जरिए की है, परंतु सभी का कहना है कि ‘कूल जार’ का कोई इकाई नहीं है. अब प्रश्न यह उठता है कि जब शहर या जिले में इकाई ही नहीं है, तो दूकान-दूकान, आफिस-आफिस, हास्पिटल-हास्पिटल ‘कूल केन’ की आपूर्ति कहां से हो रही है. आश्यर्च की बात यह है कि अब तक न तो एफडीए की ओर से किसी प्रकार की कार्रवाई की गई है और न ही बीआईएस की ओर से.

गूगल में सैकड़ों कंपनियां
मजेदार बात तो यह है कि जहां सरकारी विभाग के पास एक भी कंपनी की जानकारी नहीं है, जैसा कि उन्होंने आरटीआई में जवाब दिया है. वहीं गूगल में ‘कूल जार’ बेचने वाले सैकड़ों कंपनियों का नाम, पता, फोननंबर के साथ देखा जा सकता है. कंपनियां मजे में गूगल के जरिए अपना उत्पाद बेच रही हैं. आरटीआई से जानकारी मांगने वाले सिन्हा का कहना है कि ये कारोबार केवल मिलीभगत से फल-फूल रहा है. सभी के आंखों के सामने वाहनों में पानी की आपूर्ति हो रही है, लेकिन विभाग वाले को कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है.

उपलब्ध कराई सूची
उन्होंने सभी विभागों को कंपनी का नाम, मालिक का नाम, प्लांट का पता, फोन नंबर के साथ सूची उपलब्ध कराई है. लेकिन किसी भी विभाग को एक भी प्लांट जगह पर नहीं मिला. ये भी विभाग ने आरटीआई के जरिए जवाब दिए हैं.

वास्तविक इकाइयों को नुकसान
जहां ‘कूल जार’ के नाम पर पानी बेचने वाले बिना लाइसेंस, मंजूरी के बिंदास पानी बेच रहे हैं, वहीं पैक बंद पानी इकाई चलाने वालों को साल में लाखों रुपये का लाइसेंस शुल्क देना पड़ता है. वर्तमान में विदर्भ में लाइंसेस लेकर इकाई चलाने वालों की संख्या 130 के करीब है. इन्हें बीआईएस को सालाना 92,000 और लैब शुल्क के नाम पर सालाना 40,000 रुपये देना पड़ता है. वहीं ‘कूल जार’ वाले मस्त कारोबार कर रहे हैं.

जान को खतरा
जानकारों का कहना है कि एेसे जार जान के लिए खतरा है, क्योंकि गली-गली, बस्ती-बस्ती एेसे पानी तैयार किए जा रहे हैं. इसमें कौन का कैमिकल प्रयोग किया जा रहा है, किसी को पता नहीं है. हर जगह पैठ बना चुके ‘कूल जार’ से कभी भी हहाकार मच सकता है. क्योंकि इसका कोई फार्मूला नहीं है और गुणवत्ता के लिए कोई कदम नहीं उठाये जाते हैं.

शादी-पार्टी का फेवरेट
कूल जार शादी-पार्टी के लिए फेवरेट बन गया है, लेकिन उपयोगकर्ता को यह नहीं मालूम की यह संकट है. किसी भी दिन बड़े हादसे को दावत दे सकता है. कैटर्सस वाले को सस्ता पड़ने के कारण वे सेहत के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. एफडीए को निश्चित रूप से इस पर कड़ा रुख अखित्यार करना चाहिए ताकि किसी बड़े अनहोनी को टाला जा सके.

बिलकुल इलिगल: बीआईएस
बीआईएस नागपुर के प्रमुख आर. पी. मिश्रा से संपर्क करने पर उन्होंने कहा कि चूंकि ‘कूल जार’ में पैकिंग नहीं होता है, इसलिए इन्हें लाइसेंस नहीं लगता. यह बिल्कुल इलिगल है. बीआईएस इसकी जांच नहीं कर सकता. यह निश्चित रूप से सेहत के साथ खिलवाड़ हो रहा है. इस पर प्रतिबंध लगना चाहिए. बीआईएस इन पर कार्रवाई नहीं सकता. अन्य विभाग रेड जैसी कार्रवाई कर सकते हैं.

लाइसेंस हो, डाटा बने
जानकारों का कहना है कि एेसी इकाइयों को लाइसेंस लेने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए. गुणवत्ता बनी रहे, इसके लिए बीआईएस से जोड़ा जाना चाहिए. इससे गुणवत्ता बनी रह सकती है. एेसा नहीं होना बुहत ही आश्चर्य प्रकट करता है. जबकि केंद्र सरकार पानी को लेकर काफी गंभीर है और पैक बंद पेय बिना आईएसआई लाइसेंस के देश भर में कहीं भी बेचा नहीं जा सकता है.

नहीं कर सकते कार्रवाई: एफडीए
पानी बिक रहा है, गलत तरीके से बिक रहा है. बड़ी संख्या में लोग इसे खरीद रहे हैं. न लाइसेंस है, न गुणवत्ता का अता-पता. एेसी स्थिति में भी एफडीए कार्रवाई नहीं कर सकता. सहायक आयुक्त (फूड) एम.सी. पवार से संपर्क करने पर उनका कहना है कि विभाग ‘कूल जार’ पर कार्रवाई नहीं कर सकता, क्योंकि कोई कानून उनपर लागू नहीं होती. हां लाइसेंस लेकर जो कारोबार कर रहे हैं, उन पर हम कार्रवाई कर सकते हैं. उनका कहना है कि हम कानून नहीं होने से लाचार हैं. राज्य सरकार कानून बनाने की पहल कर रही है. कानून आने पर ही कुछ कर सकते हैं. यह सादा पानी है. ये पैक बंद नहीं है.