Published On : Tue, Jan 9th, 2018

मुंबई: मां को न हो मानसिक कष्ट, बॉम्बे हाई कोर्ट ने 28 सप्ताह के गर्भ को गिराने की दी इजाजत

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मुंबई: बॉम्बे हाई कोर्ट ने मंगलवार को एक विशेष मामले में एक महिला को 28 सप्ताह के गर्भ को गिराने की इजाजत दे दी। अदालत ने भ्रूण में गंभीर असामान्यताओं और महिला को होने वाली मानसिक वेदना को देखते हुए इसकी इजाजत दी। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) ऐक्ट के प्रावधान के अनुसार भ्रूण में असामान्यता होने के बावजूद 20 सप्ताह की स्वीकृत अवधि के बाद गर्भ गिराने की अनुमति नहीं है।

दरअसल, अदालत ने बच्चे की सेहत को संभावित जोखिम और मां को होने वाले मानसिक कष्ट को देखते हुए एमटीपी ऐक्ट के प्रावधान के बावजूद अपवाद के रूप में यह इजाजत दी। न्यायमूर्ति आरएम बोर्डे और न्यायमूर्ति राजेश केतकर की पीठ ने कहा, ‘हालांकि एमटीपी अधिनियम के तहत 20 सप्ताह के गर्भ के बाद महिला के मानसिक स्वास्थ्य और भ्रूण में असामान्यता पर विचार नहीं किया जाता लेकिन अदालतों को इसके प्रावधानों की उदार व्याख्या करनी चाहिए।’

याचिकाकर्ता महिला की वकील मीनाज काकालिया ने दलील दी कि यदि गर्भपात की इजाजत नहीं दी जाती है तो न सिर्फ बच्चा असामान्यताओं के साथ जन्म लेगा बल्कि उसे बाद में परेशानी का सामना भी करना पडे़गा। उन्होंने कहा कि महिला को गर्भ रखने पर मजबूर करने से न सिर्फ उसको आघात पहुंचेगा बल्कि उसका मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित होगा। इस तरह जीवन का उसका संवैधानिक अधिकार भी प्रभावित होगा।

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बता दें कि एमटीपी अधिनियम 12 सप्ताह तक एक चिकित्सक से परामर्श के बाद गर्भ गिराने की अनुमति देता है। भ्रूण में असामान्यता होने या गर्भवती महिला का मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य जोखिम में हो तो 12 और 20 सप्ताह के बीच दो चिकित्सकों की राय की जरूरत होती है। 20 सप्ताह के बाद अपवाद के तौर पर कानूनन तभी अनुमति है जब गर्भ को रखने से मां के जीवन को खतरा हो।

इस मामले में शहर के सरकारी जेजे अस्पताल के चिकित्सकों के बोर्ड ने तीन जनवरी को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भ्रूण के मस्तिष्क में गंभीर विकृति है और इसका पेट अबतक नहीं दिखा है और इसमें गंभीर हृदय संबंधी असामान्यताएं भी हैं। हालांकि, रिपोर्ट में कहा गया है कि गर्भ और बाद में बच्चे के जन्म से याचिकाकर्ता के शारीरिक स्वास्थ्य या जीवन को कोई खतरा नहीं होगा। पर, पीठ ने एमटीपी अधिनियम के तहत महिला की सेहत और जीवन पर खतरे की व्याख्या से परे जाने का फैसला लिया।

पीठ ने सुप्रीम कोर्ट और बॉम्बे हाई कोर्ट के विभिन्न फैसलों की मिसाल दी, जिनमें महिला को होने वाले मानसिक कष्ट पर भी विचार किया गया। पीठ ने आदेश में कहा कि बच्चा ऐसी समस्याओं के साथ जन्म लेगा जिनसे उसका जीवन खतरे में होगा, यह जानते हुए याचिकाकर्ता को बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर करना उसे मानसिक कष्ट देना होगा। इससे उसका शारीरिक स्वास्थ्य भी प्रभावित होगा।

पीठ ने कहा, ‘हमारा मानना है कि अदालत का यह रुख तार्किक है और एमटीपी अधिनियम में प्रस्तावित सुधारों के अनुरूप भी है।’ गौरतलब है कि वर्ष 2014 में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने इस अधिनियम में संशोधनों का प्रस्ताव दिया था।

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