Published On : Sat, Sep 20th, 2014

चिखली : संघ के गढ़ में फिर खिल पाएगा कमल ?

Advertisement


भाजपा के दर्जन भर से अधिक इच्छुक, पार्टी का सिरदर्द बढ़ा

सवांदाता /राजु सोनुने

चिखली (बुलढाणा)। जिले की राजनीतिक राजधानी और संघ परिवार का गढ़ समझे जाने वाले चिखली निर्वाचन क्षेत्र में इन दिनों भाजपा में टिकट पाने के लिए मानो युद्ध छिड़ा हुआ है. वैसे तो यह युद्ध पिछले साल भर से चल रहा है, मगर उसने अब एक गंभीर मोड़ ले लिया है. अनेक उम्मीदवारों ने सघन प्रचार भी शुरू कर दिया है. कोई दर्जन भर इच्छुक हैं, जिसमें कोई संघ परिवार से जुड़ा है तो कोई वरिष्ठता के कारण दावा ठोंक रहा है. युवा तुर्क भी ताल ठोंक ही रहे हैं. इससे भाजपा का सिरदर्द बढ़ गया है. आखिर कौन है जो सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक कसौटी पर खरा उतरेगा?

Gold Rate
15 july 2025
Gold 24 KT 98,200 /-
Gold 22 KT 91,300 /-
Silver/Kg 1,12,500/-
Platinum 44,000/-
Recommended rate for Nagpur sarafa Making charges minimum 13% and above

लोकसभा से पहले ही हलचलें शुरू
जिले के 6 निर्वाचन क्षेत्रों में लोकसभा चुनाव के काफी देर बाद विधानसभा चुनाव की हलचल शुरू हुई, मगर चिखली उससे एकदम अलग रहा. वहां तो लोकसभा चुनाव से पहले ही विधानसभा चुनाव के लिए काम शुरू हो गया था. लोकसभा के प्रचार में भी यह दृष्य दिखाई देता रहा. इस क्षेत्र से महायुती को मिली तीस हजार की लीड में वरिष्ठ नेताओं के साथ ही संजय चेकेपाटिल जैसे नए, मगर सामाजिक क्षेत्र में अपने फाउंडेशन के माध्यम से काम कर रहे कार्यकर्ता का योगदान भी था. भाजपा में सुरेश अप्पा कबुतरे, विजय कोठारी, सतीश गुप्त जैसे वरिष्ठ और संजय चेकेपाटिल जैसे नए इच्छुक मैदान में उतरने की तैयारी में हैं.

कमल को खिलने में लगे पूरे 33 साल
चिखली भले ही संघ परिवार का गढ़ रहा हो, मगर 1962 से 1990 तक सातों चुनावों में कांग्रेस जनसंघ-भाजपा को पटखनी देती रही. यहां पर कमल को खिलने में पूरे 33 साल लग गए. 1995 में पहली बार भाजपा चुनी गई. फिर 1999 और 2004 में जीत के साथ उसने हैटट्रिक बना ली. इसमें मराठा समाज के मतों का योगदान बहुत अधिक रहा. रेखाताई खेड़ेकर का मतों का आंकड़ा लगातार बढ़ता ही रहा. 2009 में पार्टी ने उन्हें टिकट देने से मना कर दिया. और जीत कांग्रेस खींचकर ले गई. लेकिन हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव महायुती के उम्मीदवार को यहां से तीस हजार से अधिक की बढ़त मिली है.

आसान नहीं होगा उम्मीदवार का चयन
यही समीकरण और इतिहास को देखते हुए ही इच्छुक उम्मीदवारों की संख्या दर्जन भर से अधिक हो गई है. ऐसे में भाजपा के लिए किसी एक उम्मीदवार को चुनना आसान नहीं है. दूसरी ओर विधायक राहुल बोंद्रे को कम करके नहीं आंका जाना चाहिए. उनकी इस क्षेत्र में अच्छी पकड़ है. ऐसे में संघ के इस गढ़ पर एक बार फिर कमल का खिलना आसान नहीं होगा.

Representational Pic

Representational Pic

Advertisement
Advertisement