औरंगाबाद: महाराष्ट्र में चार साल में स्थितियां काफी बदल गई हैं। 2014 के अाम चुनाव में एनडीए ने 42 सीटें जीती थीं, इनमें 18 शिवसेना की हैं। एनडीए में एक सांसद राजू शेट्टी स्वाभिमानी शेतकरी संगठन से भी थे। शेट्टी के लिए मोदी ने रैली भी की थी। अब शेट्टी एनडीए से बाहर हो गए हैं। इधर शिवसेना एनडीए में बनी हुई तो है, लेकिन 2019 का चुनाव अलग लड़ने की तैयारी में है। इसलिए भाजपा को राज्य में ज्यादा नुकसान की आशंका है।
गठबंधन तोड़ने का नुकसान
– राजू शेट्टी कहते हैं कि अगर शिवसेना-भाजपा साथ नहीं रहे तो फायदा शिवसेना को ही होगा। शिवसेना का अांकड़ा 25 तक जा सकता है। हालांकि, गठबंधन तोड़ने का नुकसान भाजपा की तरह शिवसेना को भी हो सकता है। गठबंधन का फैसला विदर्भ की 10 में से 8, मराठवाड़ा की 8 में से 4, पश्चिम महाराष्ट्र की 10 में से 9 और उत्तर महाराष्ट्र की सभी सीटों के परिणाम प्रभावित करेगा।
– विशेषज्ञ कहते हैं कि गठबंधन नहीं हुआ तो दोनों की संयुक्त सीटों का आंकड़ा 41 से घटकर 25 पर आ सकता है। यानी कुल 16 सीटें सीधे प्रभावित होंगी। इसका फायदा एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन को होगा। गठबंधन को लेकर फिलहाल भाजपा ज्यादा सतर्कता बरतती दिखाई दे रही है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस इस गठबंधन को बचाने के हर संभव प्रयास करते नजर आ रहे हैं।
शिवसेना 25 से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल करेगी
– भाजपा प्रवक्ता केशव उपाध्ये कहते हैं कि हम चाहते हैं गठबंधन हो, लेकिन यह तय है कि हम पिछली बार का रिकॉर्ड तोड़कर पहले से ज्यादा सीटें हासिल करेंगे। अगर गठबंधन नहीं होता है तो भी। दूसरी तरफ शिवसेना फिलहाल कह रही है कि गठबंधन नहीं करेगी।
– शिवसेना प्रवक्ता हर्षल प्रधान कहते हैं कि उद्धव ठाकरे ने 2019 में अकेले दम पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है। वे फैसले पर कायम हैं। इसलिए गठबंधन की कोई संभावना नहीं है। शिवसेना 25 से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल करेगी।
– दूसरी तरफ कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन पिछली बार की तरह मिलकर चुनाव लड़ने की तैयारी में है। कांग्रेस प्रवक्ता सचिन सावंत कहते हैं कि भाजपा के खिलाफ जनता का आक्रोश है। राकांपा के साथ हम आगामी चुनाव लड़ेंगे। राकांपा प्रवक्ता नवाब मलिक भी यही दोहराते हैं। वे कहते हैं कि अकेले लड़ने का तो सवाल ही नहीं है। कांग्रेस के साथ 45 से ज्यादा सीटों पर जीतेंगे। यहां किसानों की नाराजगी सबसे बड़ा मुदा है।
– हालांकि, भाजपा का दावा है कि किसान खुश हैं। लेकिन सभी भाजपा के इस दावे से इत्तेफाक नहीं रखते। जैसे औरंगाबाद के डाॅ. आंबेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रोफेसर जयदेव डोळे कहते हैं कि किसानों की समस्याएं बढ़ी हैं। समाज का यह सबसे अहम हिस्सा सरकार की नीतियों से नाराज है।
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विदर्भ: बीजेपी-सेना का गढ़
– विदर्भ में भाजपा के 6 और शिवसेना के 4 सांसद हैं। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस यहीं से हैं। भाजपा ने विदर्भ को अलग राज्य बनाने का आश्वासन दिया था। इसलिए वह मजबूत हुई। शिवसेना इसके विरोध में है। यवतमाल-वाशिम शिवसेना के गढ़ हैं। नागपुर गडकरी की पक्की सीट है।
मराठवाड़ा: बीजेपी कमज़ाेर हुई
– पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण (कांग्रेस) और बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रावसाहब दानवे यहीं से सांसद हैं। लातूर पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख का गढ़ है। यहां उनके निधन के बाद बीजेपी मजबूत हुई थी, लेकिन बीड़ में गोपीनाथ मुंडे के निधन के बाद कमजोर हुई है। गठबंधन नहीं हुआ तो बीजेपी के लिए मुश्किल होगी।
पश्चिम: मोदी लहर में भी पवार का प्रभाव रहा
– यह शरद पवार के प्रभाव वाला क्षेत्र है। शेष महाराष्ट्र की तुलना में अधिक समृद्ध है। 2014 में मोदी लहर के बावजूद 10 में से 4 सीटें एनसीपी को मिली थीं। इसमें पवार की बेटी सुप्रिया सुले भी हैं। जानकार मानते हैं कि अब भाजपा-शिवसेना मजबूत हुए हैं। गठबंधन नहीं हुआ, तो एनसीपी को फायदा हो सकता है।
उत्तर: खड़से और भुजबल का दबदबा, सेना भी तैयार
– पूर्व मंत्री एकनाथ खड़से का प्रभाव, लेकिन पार्टी से उनकी नाराजगी से भाजपा को नुकसान हो सकता है। धुलिया रक्षा राज्यमंत्री डॉ. सुभाष भामरे का क्षेत्र है। वे क्षेत्र में प्रभाव बढ़ाने में नाकाम रहे हैं। छगन भुजबल की वजह से नासिक में एनसीपी मजबूत। शिवसेना भी मजबूत हुई है। कांग्रेस का ज्यादा अस्तित्व नहीं हैै।
पिछले चुनाव में 48 सीटों की स्थिति
बीजेपी: 23
शिवसेना: 18
एनसीपी: 04
कांग्रेस: 02
स्वाभिमानी शेतकरी संगठन: 01
तीन क्षेत्रों- विदर्भ, मुंबई-कोंकण और उत्तर महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना का ज्यादा प्रभाव रहा है। तीनों में राज्य का 65% क्षेत्रफल है। शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी पश्चिम महाराष्ट्र में ज्यादा प्रभावशाली रही। यहां उसे चार सीट मिली थीं। कांग्रेस को मराठवाड़ा में केवल दो सीटों पर कामयाबी मिली थी।
मुंबई में अब भी मराठी अस्मिता बड़ा फैक्टर
– मुंबई में मराठी अस्मिता बड़ा फैक्टर है। यहां 40% आबादी मराठी भाषी है। 2014 में मराठी, गुजराती और उत्तर भारतीय वोट शिवसेना-भाजपा को मिले थे। मराठी भाषी इलाकों में उद्धव ठाकरे की पकड़ राज ठाकरे और भाजपा से अधिक है। करीब 28% उत्तर भारतीय और 15% गुजराती वोटर भाजपा के साथ हैं। हालांकि, करीब साढ़े चार लाख सदस्यों वाले गुजराती एनरिचमेंट आॅर्गनाइजेशन (जीईओ) के अध्यक्ष मनीष शाह कहते हैं, ‘जीएसटी, नोटबंदी और महारेरा की वजह से 10 में से 2 गुजराती भाषी वोटर मतदान करने नहीं जाएंगे। बचे 8 में से 3 ही भाजपा के पक्ष में रहेंगे।’
– भारत मर्चेंट चेंबर के ट्रस्टी राजीव सिंघल का कहना है कि मुंबई के व्यापारियों के लिए जीएसटी आज भी बड़ा मुद्दा है। मुंबई मनपा में पिछले चार वर्षों में भ्रष्टाचार कम न होना भी हम व्यापारियों को खटकता है।
– मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष एवं पूर्व सांसद संजय निरुपम कहते हैं कि महंगाई, भ्रष्टाचार, कालाधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तमाम वादे फेल हो गए। बेरोजगारी, महिलाओं पर अत्याचार और सुरक्षा हमारे प्रमुख मुद्दे होंगे। पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री मिलिंद देवड़ा ने कहा कि भाजपा-शिवसेना ने आपस में लड़कर समय बर्बाद किया है। मुंबई के सभी छह सांसदों का प्रदर्शन बहुत ही खराब रहा है।
– भाजपा सांसद पूनम महाजन कहती हैं कि लोग मुझे टाॅयलेट एमपी के नाम से पुकारते हैं, क्योंकि मैंने सबसे अधिक टाॅयलेट बनवाए हैं। शिवसेना सांसद अरविंद सावंत कहते हैं कि जीएसटी की वजह से व्यापारियों के परेशान होने का मुद्दा सबसे पहले मैंने उठाया। इसके बाद गुजरात चुनाव से पहले केंद्र सरकार ने उसमें जरूरी सुधार किए।
