Published On : Tue, Mar 6th, 2018

कांग्रेसी रंग में कलरफुल हो रही है मोदी-शाह की भाजपा

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की कर्मठता ने भले कांग्रेस पार्टी को राजनीति की खूंटी पर करीब-करीब टांग दिया हो, लेकिन कांग्रेसी संस्कृति की छाप अब भाजपा पर भी साफ नजर आने लगी है। त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड तीन राज्यों में मिली सफलता के बाद इसका साफ संकेत देखा जा सकता है।

यह कांग्रेस का कल्चर रहा है कि सफलता मिलने पर उसके नेता समवेत एक स्वर में अपने शीर्ष नेता को बधाई देने, गुणगान करने, फोटो खिंचवाने में लग जाते हैं। लेकिन सोमवार को भाजपा के सांसदों ने भी इसी परंपरा को निभाया।

सोमवार को प्रधानमंत्री के संसद भवन परिसर में आने का समय होते ही भाजपा के नेता एक कतार में स्वागत के लिए खड़े हो गए। स्वागत की इस रस्म का सुख पाने के लिए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भी सदन में प्रवेश करने के रास्ते से जाने की बजाय अलग गेट को चुना।

थोड़ी देर बाद जब प्रधानमंत्री आए तो तीन राज्यों में मिली सफलता का श्रेय केन्द्र सरकार और भाजपा अध्यक्ष को देते हुए सांसदों ने उन दोनों का स्वागत किया।

क्यों है कांग्रेसी संस्कृति?

तीन राज्यों के चुनाव परिणाम आने के बाद प्रधानमंत्री पार्टी मुख्यालय गए थे। उनकी अध्यक्षता में भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक हुई थी। इस दौरान पार्टी के नेताओं, सांसदों ने प्रधानमंत्री और भाजपा अध्यक्ष को मिली सफलता के लिए उनका स्वागत किया और बधाई दी थी। सोमवार पांच मार्च को बजट सत्र के दूसरा चरण शुरू होने के पहले दिन पार्टी के सांसदों ने प्रधानमंत्री और भाजपाध्यक्ष का स्वागत करते हुए उन्हें सफलता के लिए बधाई दी। मंगलवार को भाजपा संसदीय दल की बैठक है। परंपरा के अनुसार संसद सत्र में हर मंगलवार को होती है।

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार मंगलवार को फिर संसद भवन परिसर में पार्टी के सांसद प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को तीन राज्यों में मिली सफलता के लिए एक बार फिर दोनों का स्वागत कर सकते हैं। सूत्र का कहना है कि मानकर चलिए, ऐसा होना ही है। इस बारे में भाजपा के उ.प्र. से आने वाले एक सांसद का कहना है कि आखिर इसमें बुराई क्या है? पार्टी तीन राज्यों में सफल चुनाव अभियान चलाने के बाद सरकार बनाने की स्थिति में है। ऐसे में शीर्ष नेता का स्वागत तो होना ही चाहिए।

प्रधानमंत्री करते रहे हैं ताकीद

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पार्टी की हर बड़ी सफलता के बाद अपने कार्यकर्ताओं, नेताओं को कांग्रेसी संस्कृति से दूर रहने के लिए ताकीद करते रहे हैं। 2014 के आम चुनाव से लेकर हर मोर्चे पर प्रधानमंत्री नेताओं को जनता का सेवक बताते हुए लालफीताशाही संस्कृति का विरोध करते रहे हैं। लेकिन पार्टी के सांसद, नेता अभी भी इससे नहीं ऊबर पा रहे हैं।