Published On : Tue, Jan 30th, 2018

मरीज की मदत करने के चक्कर में बुरे फंसे मेडिकल के दो डॉक्टर

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GMCH Nagpur
नागपुर: कायदे कानून का बेजा इस्तेमाल किसी के लिए कितना घातक साबित हो जाता है इसका उदहारण मेडिकल में हुई एंटी करप्शन ब्यूरो की कार्रवाई से अनुभव किया जा सकता है। मरीज को डॉक्टर ने मरीज के परिजन को एक दवा बाहर से लाने के लिए कहाँ,उसने इस बाबत शिकायत एसीबी से कर दी जिस वजह से महिला लेक्चरर चिकित्सक के साथ ही रेजीडेंट डॉक्टर को गिरफ्तार कर लिया गया। आरोप लगा रिश्वत लेने का,आनन-फानन में हुई कार्रवाई का खामियाज़ा दोनों डॉकटरो को भुगतना पड़ा जबकि हकीकत ये है की डॉक्टर ने जो दवाई मरीज के परिजन को दी थी उसकी सप्लाई मेडिकल अस्पताल में होती ही नहीं।

दरअसल मधुमेह के रोगियों में आंख की दृष्टि (विजन) कम होने पर उनका विजन बढ़ाने के लिए रेटीना विशेषज्ञों द्वारा अवस्टीन नामक इंजेक्शन लगाया जाता है। लेकिन इस इंजेक्शन का मेडिकल में सप्लाई ही नहीं है। जिसके चलते नेत्ररोग विभाग में यह इंजेक्शन बाहर से मंगवाया जाता है। यह सिलसिला काफी समय से चल रहा है। हर बार मरीज के परिजन इसमें सहयोग भी करते है लेकिन मंगलवार को रेजिडेंट डॉक्टर स्वानंद परमार और महिला लेक्चरर चिकित्सक डॉ वंदना अय्यर द्वारा मरीज को अवस्टीन इंजेक्शन का प्रिसक्रिप्शन लिखना भारी पड़ गया।

बिना बात को जाने इंजेक्शन बाहर से मंगवाने पर मरीज के परिजनों ने भ्रष्टाचार विरोधी दस्ता (एसीबी) से शिकायत कर दी और रिश्वत के आरोप में महिला लेक्चरर चिकित्सक के साथ ही रेजीडेंट डॉक्टर को पकड़ लिया गया। अब जो जानकारी सामने आ रही है वह और ज्यादा चौकाने वाली है। कहाँ जा रहा है की मेडिकल में होने वाली ड्रग सप्लाई की चैन में शामिल न होना इस दोनों डॉक्टरों के लिए भारी पड़ा है।

मधुमेह रोगियों को लगाया जाने वाला अवस्टीन इंजेक्शन करीब 24 हजार रुपए का आता है जिसमें 4 एमएल दवा होती है। एक मरीज को 0.1 मात्रा का इंजेक्शन लगाया जाता है इस हिसाब से एक इंजेक्शन का इस्तेमाल 8 मरीजों पर हो जाता है। इसीलिए हर मरीज से 3 हजार रुपए लेकर मरीज को इंजेक्शन लगाने का काम डॉक्टरो और मरीजों के परिजनों में आपसी सामंजस्य से पिछले काफी समय से मेडिकल में चल रहा है जिसमे मरीजों का ही फायदा होता है।

इस घटना के बाद मेडिकल में कार्यरत विभिन्न डॉक्टरो ने एसीबी द्वारा की गई कार्रवाई को गलत ठहराया है। डीएमईआर के संचालक डॉ.प्रवीण शिंगारे के मुताबिक मेडिकल में 4 हजार रेजीडेंट डॉक्टर हैं अक्सर मरीजों की सुविधा के लिए ऐसा किया जाता है मामला गलत नहीं है एसीबी को यह कार्रवाई नहीं करनी चाहिए थी। नेत्र विभाग प्रमुख डॉ.अशोक मदान का कहना है की जिस ड्रग के लिए पैसे लिए जाने की बात कही जा रही है वह हमारे अस्पताल में सप्लाई में ही नहीं है। इस घटना पर डॉक्टरो की संस्था मार्ड ने भी अपनी नाराजगी जाहिर की है। मार्ड के अध्यक्ष यह जो भी घटनाक्रम हुआ उसमें रेजीडेंट डॉक्टर अपने लिए रुपए नहीं ले रहा था। वह विभाग द्वारा बताए गए काम का पालन कर रहा था। हम न्यायपालिका का सहारा लेकर लड़ाई लड़ेंगे।