- मांगा 2 हजार करोड़ का पैकेज
- अच्छे दिन आएंगे में बड़ी किसानों की आत्महत्याएं
यवतमाल। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किसानों को उनके जीवन में अच्छे दिन आएंगे, यह सपना पूरा करने के लिए यवतमाल के किसानों ने पत्र लिखा है. उस पत्र में 2 हजार करोड़ का पैकेज मांगा है और किसानों की आत्महत्या का सिलसिला रोकने की गुजारीश की गई है. यह पत्र स्थानीय गांधी नगर निवासी राजेंद्र मधुकर वाघ ने लिखी है. उनके साथ अन्य किसान भी शामिल है.
उन्होंन कहा कि, यवतमाल जिले में 2009 से अबतक कभी गिला तो कभी सूखा अकाल पडऩे से किसानों की फसल चौपट हो गई. जिससे उन्होंने लिया हुआ फसलकर्ज बढ़ता चला गया. ऐसे में कर्जा लौटाने की कोई गुंजाईश नहीं देखकर किसानों ने आत्महत्या का रास्ता अपना लिया है. प्रधानमंत्री मोदी द्वारा अच्छे दिन आने की आशा की किरण दिखाई जाने से किसानों ने ईकट्ठा होकर राज्य और केंद्र में उनकी सरकार बनाई. मगर सरकार बनाने से लेकर अबतक 500 के ऊपर किसानों ने आत्महत्या कर ली है, फिर भी किसानों को किया हुआ वादा वें क्यों नहीं निभा रहें है? यह सवाल किसानों के दिलों में उठा है. जिसका जवाब कोई नहीं दें रहा है. सभी ने मौनवृ्रत धारण कर लिया है. किसानों को फसल नहीं होने के कारण जिला बैंक से लिया हुआ कर्जा, वैसाही पड़ा है. जिससे इस बैंक का एनपीए 26 फिसदी तक जा पहुंचा है. इसलिए किसानों को संपूर्ण कर्जमुक्ति और खेती से सलग्र व्यवसाय के लिए 7/12 पर नया कर्जा देने की मांग की गई है. साहूकार दामदुप्पट कानून के कारण किसानों को कर्जा नहीं देते. बैंक में बकाया होने से खड़ा नहीं किया जाता.
किसानों की पत्नियों के जेवर पहले ही बैंक में गिरवी रखें है, अब राशि कहां से मिलेंगी? इसका भी कोई जवाब नहीं है. शरद पवार जब कृषिमंत्री थे तब कर्जमाफी दी गई थी, मगर उसका लाभ विदर्भ के किसानों को नहीं मिला. क्योंकि उसमें जो शर्त थी कि किसानों को 5 एकड़ से कम खेती हों. इस शर्त के कारण उसका लाभ पश्चिम महाराष्ट्र के किसानों ने उठा लिया. उद्धव ठाकरे ने भी कहा था कि वे फसल कर्ज माफ करेंगे, मगर वे भी अब चुप्पी साधे हुए है. गोपीनाथ मुंडे ने भी यही वादा किया था, मगर अब वें नहीं रहें. जिससे किसान अकाल से परेशान हो गए है. अगर यह सरकार किसानों को कर्जमुक्त नहींकरना चाहती है तो इन किसानों ने एक विकल्प भी इस पत्र मे लिखा है. जिसमें कहां है कि, सरकार को यह किसान पूरी खेती दे देंगे. जिसके बाद खेती सरकार को करनी होगी और किसानों को केंद्रीय कर्मियों के समान 6 वें, 7 वें वेतन आयोग के अनुसार वेतन और 100 फिसदी महंगाई भत्ता देना पड़ेंगा. तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह ने चुनाव के पहले 7 फिसदी महंगाई भत्ता बढ़ाया था. मोदी ने चुनकर आने के बाद कोई महंगाई नहीं बढऩे के बावजूद इतने ही फिसदी यह भत्ता फिर बढ़ा दिया. यह भत्ता भी किसानों को दिया जाए. अंग्रेजों के जमाने चली आ रही आनेवारी का तरीका आज भी किसानों की जान लें रहा है, तो उसे क्यों प्रयोग किया जा रहा है. किसानों को यह अंग्रेजों की आनेवारी चलती है तो केंद्रीय कर्मियों को भी अंग्रेजों के जमाने के वेतन क्यों नहीं दिए जाते? किसान औेर कर्मियों में भेदभाव क्यों किया जा रहा है?
भूविकास बैंक ने किसानों की तोड़ी कमर
नाम के लिए भूविकास बैंक है, मगर किसानों को मारनेवाली बैंक के रूप में इसकी ख्याती बन गई है. इस बैंक में किसानों से 3-4 गुना राशि वसूलने के बाद भी उतनी ही राशि बकाया होने की बात साबित की है. जिससे किसानों की कमर टूट गई है. 12 दिसंबर 2011 को राज्यविधानसभा के तृतिय अधिवेशन में तारांकित सवाल के रूप में तत्कालीन विधायक देवेंद्र फड़णवीस, सुधीर मुनगंटीवार, नाना पटोले, चंद्रशेखर बावनकुले, सुधीर पारवे, विजय घोड़मारे, विजयराज शिंदे, विकास कुंभारे, कृष्णा खोपड़े, दादाराव केचे, विष्णू संवरा, एड. चिंतामण वनगा, डा. खुशाल बोपचे, राजकुमार बडोले, संजय जाधव, आर.एम. वाणी, संजय शिरसाट, पवन राजेनिंबालकर, विजय खड़से, प्रशांत ठाकुर, गिरीष महाजन, नाना श्यामकुले, अतुल देशकर, निर्मला गावित, विजय वेडेट्टीवार, दिपक आत्राम, डा. नामदेव वुसेंडी आदि ने तत्कालीन सहकार मंत्री हर्षवर्धन पाटिल से भूविकास बैंक 3-4 गुना राशि वसूल रहीं है क्या? ऐसा सवाल पूछा था. जिसके जवाब में नहीं कहा गया था. उसी प्रकार यवतमाल में किसानों के ट्रैक्टर और ट्रॉली जब्त कर निलामी की गई है क्या? ऐसा भी पूछा गया था. इस पर नहीं का जवाब दिया गया था. मगर हकीकत में यह जवाब गलत था. किसानों से 3-4 गुना राशि भी वसूली गई और ट्रैक्टर भी निलाम किए गए. उस समय सुधीर मुनंगटीवार ने कहा था, ब्रिटीशों ने भी 43 फिसदी ब्याज नहीं वसूला था. यह सरकार तो ब्रिटीशों से भी बत्तर है. उसी प्रकार भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गड़करी ने भी कहा था कि, विदर्भ के किसानों को भूविकास बैंक ने छलने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है.
भंडारा के मोहड़ी के किसान नरेंद्र बारई ने 1994 में भूविकास बैंक से ट्रैक्टर ट्रॉली के लिए 2.30 लाख कर्जा लिया था. उन्होंने मुद्दल में 51 हजार 100 रुपए और ब्याज में 3.40 लाख रुपए, ऐसे कुल 4 लाख तक की राशि लौटाई. फिर भी बैंक ने 29 जून 2011 को उस किसान का ट्रैक्टर ट्रॉली जब्त कर निलामी का आयोजन किया था. उसी दिन किसान ने 20 हजार रुपए और भरने से यह निलामी रुक गई. इस प्रकार उस किसान ने 4.21 लाख रुपए भर दिए. यह भरी हुई राशि मूूल राशि से दूगनी के आसपास होने के बावजूद इस बैंक के अधिकारी उस किसान के घर जाकर धमकियां दे रहें थे. इस प्रकार किसानों की आत्महत्या का सिलसिला शुरू हुआ है. अब किसानों का पक्ष रखनेवाले सभी नेता केंद्र और राज्य में महत्वपूर्ण मंत्री बने है. अब तो भी भूविकास बैंक के कर्जे से मुक्ति दिलाए और किसानों का 7/12 कोरा करें, ऐसी मांग राजेंद्र वाघ ने अन्य किसानों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से की है. उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को यह पत्र उनके ही अधिनस्थ मंत्री हंसराज अहिर के हाथों भेजवाया है. अब उस पत्र पर क्या कार्रवाई की जाती है, इस ओर विदर्भ के सभी किसानों की नजरें लगी हुई है. अबतक जिले के मंत्री, विधायक, राज्य के सभी दलों के नेताओं को ऐसे पत्र दिए गए है, मगर फिर भी एक भी अधिकारी या नेता ने किसानों के लिए कुछ नहीं किया, इसलिए अब प्रधानमंत्री से आस है, ऐसा किसानों ने बताया. राज्य के विरोधी पक्ष नेता एकनाथ शिंदे को भी कल इस पत्र की प्रतिलिपि दी गई है. उनसे भी यही मांगें की गई है.
भूविकास बैंक का भविष्य मंत्री मंडल की उपसमिति के हाथ में 28 नवंबर 2014 को भूविकास बैंकों का भविष्य मंत्रीमंडल की उपसमिति के हाथ में होने की बात राज्य सरकार ने कि है. इस समिति के अध्यक्ष सुधीर मुनगंटीवार है. इसलिए उन्होंने किसानों का उस समय पक्ष रखते समय 43 फिसदी ब्याज वसूला जा रहा है, ऐसा तत्कालीन मंत्रीयों से कहा था. अब वें इस समिति के अध्यक्ष होने के नाते किसानों का कर्जा पूरी तरह खत्म करें, ताकि इन किसानों को नया कर्जा मिल सके.