नागपुर: शिक्षा के अधिकार के तहत ग़रीब बच्चों को मिले अधिकार का शहर के कुछ बड़े स्कूलों ने मखौल बनाकर रख दिया है। ध्यान देने वाली बात ये है की आरटीआई ड्रॉ में नंबर लगने के बाद जिन बच्चों का एडमिशन स्कूलों ने रद्द कर दिया है वह अभिभावक जब इंसाफ़ के लिए शिक्षा विभाग के पास जा रहे है तो उन्हें वहाँ से भी हताशा ही हाथ लग रही है। शहर के हिलटॉप इलाके में रहने वाले सागर रामटेके अपनी बच्ची के एडमिशन के लिए दर दर भटक रहे हैं। सागर की चार वर्ष की बेटी का आरटीआई के अंतर्गत दूसरे राउंड में सिविल लाइन स्थित भवंस स्कूल में नंबर लगा था। लेकिन स्कूल ने घर और स्कूल की दूरी नियम से ज्यादा होने का कारण देते हुए एडमिशन को रद्द कर दिया। स्कूल द्वारा एडमिशन नकार देने के बाद सागर रामटेके ने प्रायमरी शिक्षा उपसंचालक के दफ़्तर से न्याय की गुहार लगाई लेकिन उन्हें अब तक न्याय नहीं मिला है। शिक्षा उपसंचालक कार्यालय बस रामटेके की अपील पर स्कूल को नोटिस देने की खानापूर्ति में लगा है।
स्कूल की दलील ऐसी कि गले न उतरे
सागर रामटेके के मुताबिक वह बीते 15 दिनों से प्रायमरी शिक्षा उपसंचालक के दफ़्तर के चक्कर काट रहे हैं पर कार्यवाही के नाम पर कुछ नहीं हो रहा। बच्ची का एडमिशन रद्द हो जाने के बाद सागर ने शिक्षा उपसंचालक को जो पत्र लिखा था उसके जवाब में स्कूल ने स्पष्ट किया कि उन्होंने घर से स्कूल की दूरी नियम के अनुसार 3 किलोमीटर से ज्यादा होने की वजह से एडमिशन रद्द किया है । पर ध्यान देने वाली बात ये है कि नियम का हवाला देने वाली भवंस स्कूल ने अपनी बात को साबित करने के लिए दुरी नापने का जो सबूत पेश किया वह रोड मैप से था। जबकि नियम स्पष्ट है कि दूरी सिर्फ एरियल मैप से ही मापी जानी चाहिए।
भवंस स्कूल द्वारा 17- 4 – 2017 को लिखे पत्र का जवाब कुछ ऐसा दिया गया
एडमिशन रद्द करने की दलील पर आपत्ति दर्ज कराते हुए सागर ने 15 -4 2017 को प्रायमरी शिक्षा विभाग को फिर एक पत्र लिखा जिस पर कार्यालय ने स्कूल का जवाब माँगा। इस पत्र के जवाब में स्कूल ने पिछले पत्र के जवाब में की गई गलती तो नहीं दोहराई। नियम के मुताबिक अपनी बात को सही साबित करने के लिए एरियल मैप का इस्तेमाल किया और इस बार भी स्कूल द्वारा किये गए आकलन में दूरी नियम से ज्यादा थी। लेकिन सागर का कहना है कि इस बार स्कूल ने उनके घर का पता ही बदल दिया। जिस जगह से स्कूल से घर की दूरी मापी गई है वह उनके घर से 300 मीटर दूर है।
दिनांक 25-4 -2017 के जवाब में 2 -5 2017 को जारी स्कूल का पत्र
इस पत्र के जवाब में स्कूल ने दलील दी है की आरटीई के तहत निवेदन किये गए व्यक्ति का पता सही नहीं है। सागर स्कूल की इस दलील को भी सिरे से खारिज़ कर रहे हैं। उनका कहना है कि स्कूल के प्रतिनधि सर्वे के लिए उनके घर पहुँचे थे और उन्हें बाकायदा स्कूल का पत्र पोस्ट के द्वारा इसी पते पर प्राप्त हुआ था। अब थक हारकर सागर अपनी बच्ची के लिए शिक्षा विभाग से न्याय की गुहार लगा रहे हैं लेकिन शिक्षा विभाग ने यह कहते हुए अपने हाथ ऊपर खड़े कर लिए कि उनके पास पत्र भेजने के अलावा और कोई चारा नहीं है। उनकी तसल्ली के लिए वह स्कूल को एक और पत्र भेजेंगे। यहां ध्यान देने वाली बात यह भी है कि शिक्षा विभाग ने अब तक सागर को यह भी नहीं बताया है की अगर वह स्कूल के जवाब से संतुष्ट नहीं है तो किसका दरवाजा खटखटाएं।
नियम को ताक पर रख रही है भवंस स्कूल – आरटीआई कार्यकर्त्ता
इस मामले पर आरटीआई और मानवाधिकार कार्यकर्ता शाहिद शरीफ़ ने भवंस स्कूल को कटघरे में खड़ा किया। शरीफ़ के मुताबिक इस स्कूल के साथ यह कोई पहला मामला नहीं है। स्कूल नियमों को ताक पर रख रही है। और गरीब बच्चों को मिले शिक्षा के अधिकार का हनन किया जा रहा है। आरटीआई कार्यकर्ता ने शिक्षा विभाग को भी आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि राजनीतिक दबाव की वजह से अधिकारी स्कूल के ख़िलाफ़ कार्यवाही करने की हिम्मत नहीं जुटा पर रहे है।
स्कूल की प्रिंसिपल ने फ़ोन उठाया लेकिन बात नहीं की
इस मामले में नागपुर टुडे ने स्कूल का पक्ष जानने के लिए भवंस स्कूल की प्रिंसिपल अंजू भुटानी को फोन लगाया उन्होंने फोन उठाया भी लेकिन जैसे ही हमने आरटीआई एडमिशन का जिक्र किया उन्होंने फ़ोन काट दिया उनसे कई बार संपर्क करने के बावजूद उनका पक्ष सामने नहीं आ पाया।