नागपुर टुडे.
एक कहावत है, ‘बंद मुट्ठी लाख की, खुल गई तो खाक की.’ भारतीय जनता पार्टी पर यह कहावत दिनोंदिन चरितार्थ होती जा रही है. पूर्ण बहुमत के साथ पार्टी ने केंद्र में सत्ता हासिल की और नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपानीत एनडीए की सरकार बनी. कहा गया कि देश की जनता ने कांग्रेस के खिलाफ जनादेश देकर भाजपा को केंद्र में सत्तारूढ़ किया. इस संदर्भ में देखें तो देश की जनता को भाजपा से बहुत उम्मीदें रही होंगी. पिछले ढाई-पौने तीन साल से सत्तारूढ़ भाजपा और उसके नेताओं ने जिस बेकद्री से इस देश की जनता के साथ ही अपने वोटरों के अरमानों को भी ध्वस्त किया है, वह भारतीय राजनीति में नया रिकॉर्ड है. हर महीने भाजपा के शीर्ष और अशीर्ष नेताओं के ऐसे बयान आते रहते हैं, जिससे मालूम होता है कि यह पार्टी इस देश और देश के लोगों को अपनी निजी संपत्ति समझती है. दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के सुपुत्र, सांसद प्रवेश सिंह वर्मा इस क्रम में ताजातरीन नाम है.
संविधान की धज्जियाँ
भारतीय जनता पार्टी के नेता जिस तरह से बयानबाजी करते हैं उससे न सिर्फ इस देश की संप्रभुता और एकता खंडित होती है, बल्कि संविधान की मूल भावनाओं और उसमें निहित मूल नागरी अधिकारों का घोर उल्लंघन होता है. यदि कोई राजनीतिक दल देश के संविधान के प्रति निष्ठावान नहीं है तो वह राष्ट्रभक्त पार्टी कैसे हो सकती है? जैसे कि भाजपा सांसद प्रवेश सिंह वर्मा दावा करते हैं!
साझा संस्कृति पर हमला
अंग्रेजों की दासता से देश को आजाद कराने के लिए इस देश के हिन्दू और मुसलमानों ने, दलित और आदिवासियों ने एक बराबर की कुर्बानियां दी है, संघर्ष किया है, योगदान दिया है. भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता तो अमूमन इसी भावना से लैस रहते हैं कि यह देश सिर्फ हिन्दुओं, वह भी सवर्ण और द्विज हिन्दुओं के लिए है, कार्यकर्ताओं की यह ग़लतफ़हमी बनाए रखने में ही भाजपा को अपना अस्तित्व दिखाई देता है, इसलिए वे बजाय कि अपने कार्यकर्ताओं की मानसिकता को सही करें, इसी कोशिश में रहते हैं कि इस देश का हिन्दू उनके वोट बैंक से ज्यादा कुछ न बनने पाए. भाजपा नेताओं के पिछले कुछ समय के बयानों पर गौर करें तो पता चलता है कि उनके लिए देश के हिन्दू और मुसलमानों में वैमनस्य बनाए रखना ही राजनीति है.
लेकिन ऐसे नेताओं को जनता माफ़ नहीं करती है.
वोट बैंक में तब्दील हिन्दू खासकर सवर्ण हिन्दू भले ही भाजपा नेताओं के बड़बोलेपन को पचा जाते हैं, पर इस देश की बहुसंख्यक जनता ऐसे नेताओं को माफ़ नहीं करती है. देश की एकता और अखंडता पर हमले करने वाले हमेशा से इस देश के सुजान नागरिकों के निशाने पर रहते आए हैं, रहे हैं और रहेंगे. क्योंकि यहाँ वोट बैंक शब्द का इस्तेमाल किया गया है इसलिए कहा जा सकता है कि हिन्दू और मुसलमान को देश के नागरिक की बजाय वोट बैंक की तरह देखने वाले नेता असल में किसी भी राजनीतिक दल के लिए ‘एनपीए’ यानी ‘नॉन परफार्मिंग एसेट’ यानी ‘अनर्जक अस्ति’ मतलब कि ऐसी संपत्ति या परिसंपत्ति जिससे किसी भी तरह से गुंजाइश न हो. प्रवेश सिंह भाजपा के नए ‘एनपीए’ हैं. एक ऐसे नेता जो थोथे चने की भांति बजता तो खूब घना है, लेकिन जिससे न तो पार्टी और न ही इस देश को किसी तरह की गुंजाइश है!
..पुष्पेन्द्र फाल्गुन